कुमार भवेश चंद्र
क्या ये महज इत्तेफाक है कि बुधवार को ही एक अंग्रेजी अखबार के इंटरव्यू में पूर्व वित्तमंत्री और गृहमंत्री चिदंबरम ने पूरे देश में एक साथ सख्ती से लॉकडाउन की ताकीद की और रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान कर दिया।
वैसे भारत जैसे देश में इस तरह का फैसला करने के लिए जिस मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है, मोदी अपने पिछले कई फैसलों से जाहिर कर चुके हैं।
वैसे तो होना यही चाहिए कि देश के सामने अभूतपूर्व संकट आने पर विपक्ष को विश्वास में लेकर ही सरकार कोई कड़ा फैसला करे। लेकिन इस वक्त जिस तरह की सियासी धारा चल रही है उसमें इस तरह के व्यवहार की उम्मीद करना बेमानी है।
लेकिन आखिरकार सियासी गलियारों से अच्छी खबर है। आरोप प्रत्यारोप में उलझा सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कुछ मसलों पर ही सही थोड़ी सहमति, समानता और समर्थन के सुर सुनाई दिए। वैसे विपक्ष के नेताओं में अभी भी अनुशासन की कमी साफ दिख रहे हैं। उनके नेतृत्व से कुछ और बयान आ रहे है और दूसरी और तीसरी कतार के नेता कुछ और बात कर रहे हैं। चिदंबरम की बात करने से पहले यूपी के अपने नेताओं को लिखी गई प्रियंका गांधी की चिट्ठी की चर्चा जरूरी है।
यूपी के नगर और जिला अध्यक्षों को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस चिट्ठी में उन्हें साफ निर्देश दिया कि वे कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए आगे आकर काम करें। कोरोना पर सरकार के हर कदम में नुक्श निकाल रहे विपक्ष के रुख में यह बड़ा बदलाव है।
प्रियंका की चिट्ठी का संदेश साफ है कि राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर आगे बढ़कर काम करने का वक्त है। मानवता की सेवा करने का वक्त है।
अब चिदंबरम की बात। मोदी सरकार में कथित रूप से ‘बदले की कार्रवाई’ के शिकार चिदंबरम ने न केवल मोदी के जनता कर्फ्यू का समर्थन किया है बल्कि थाली बजाने वाले अभियान की भी सराहना की है। मौजूदा सरकार से तल्खी के बावजूद पूर्व वित्तमंत्री का ये बयान महत्वपूर्ण है।
एक अंग्रेजी अखबार के साथ बातचीत में पूर्व गृहमंत्री और विदेशमंत्री चिदंबरम ने शुरुआती दिनों में सख्त फैसला न करने के लिए सरकार की आलोचना की है। लेकिन पी चिदंबरम ने साफ कहा है कि 2 मार्च को पहले पॉजिटिव केस के सामने आने के बाद ही मुख्यमंत्रियों, विशेषज्ञों, डाक्टरों और महामारी मामलों के जानकारों की बैठक बुलानी चाहिए थी। इसके बाद सिलसिलेवार कड़े कदम उठाने की जरूरत थी।
कुछ राज्यों में मुख्यमंत्रियों की ओर से प्रदेश में लॉकडाउन का फैसला करने को सही कदम बताते हुए चिदंबरम ने प्रधानमंत्री की ओर से धन्यवाद देने के लिए पांच बजे थाली बजाने की अपील का समर्थन किया है। चिदंबरम ने कहा है कि ऐसे सांकेतिक कदम जागरुकता बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चिदंबरम का स्पष्ट सुझाव था कि रविवार को सांकेतिक जनता कर्फ्यू के तत्काल बाद पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन कर देना चाहिए था। सभी तरह की सार्वजनिक और निजी परिवहन सेवाओं को भी तत्काल रोक देने की जरूरत है। केवल इमरजेंसी और जरूरी सेवाओं को जारी रखते हुए यह काम पहले ही किया जाता तो बेहतर था।
मुमकिन है चिदंबरम की इस बात से खुद उनकी पार्टी भी पूरी तरह सहमत नहीं हो। लेकिन फिर भी कांग्रेस समेत दूसरे दलों के नेताओं ने जब कोरोना पर सरकार के कदमों की आलोचना छोड़कर सहायता का रुख अपनाया तो सरकार का मनोबल बढ़ना ही था। बुधवार को राष्ट्र के नाम संदेश के सामने आए प्रधानमंत्री मोदी का ये विश्वास साफ दिख रहा था। वे बेहद मजूबत इरादे और संकल्प के साथ सामने आए और बेहद कठोर फैसला के लिए देश के मानस को तैयार करने की पृष्ठभूमि बनाकर चले गए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मजबूत से मजबूत राजनेता देश के बारे में जरूरी लेकिन कोई कठोर फैसला करते हुए जरूर ये सोचता है कि इसका राजनीतिक प्रभाव क्या होगा? मुमकिन है ऐन होली से पहले इस तरह का फैसला लेने का साहस इसलिए नहीं किया गया क्योंकि इसके राजनीतिक प्रभाव को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता था।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)