न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस को लेकर देश में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोना की गंभीरता को देखते हुए आगे आ रहे हैं। कोरोना को हराने के लिए अब तो उद्योगपति भी सामने आ रहे हैं। वहीं दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने कोरोना वायरस को हराने के लिए सरकार को सलाह दी है।
अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि भारत को दुनियाभर में कच्चे तेल की कम हुई कीमतों का फायदा उठाना चाहिए और इससे जुटाए गए फंड को कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल करना चाहिए। उनके मुताबिक, इस फायदे को आम लोगों तक सीधा कैश ट्रांसफर के जरिए पहुंचाना चाहिए।
अरविंद पनगढ़िया के अनुसार, कोरोना संकट आकस्मिक रूप से ऐसे समय आया है, जब दुनियाभर में तेल के दाम लगातार गिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 1 मार्च से अब तक तेल के दामों में करीब 30 प्रतिशत की कमी आई है। भारत जिस तरह बड़े स्तर पर कच्चे तेल का आयात करता है, उस लिहाज से जब-जब तेल के दाम 10 डॉलर प्रति बैरल नीचे गिरे, तब भारत ने 15 अरब डॉलर (करीब 1.13 लाख करोड़ रुपए) बचाए। जब तेल के दाम 65 डॉलर प्रति बैरल से गिर कर 30 डॉलर प्रति बैरल पहुंचे, तो भारत को करीब 50 अरब डॉलर (3.80 लाख करोड़ रुपए) का फायदा हुआ।
मालूम हो नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष प्रोफेरस पनगढ़िया वर्तमान में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा, अगर इसके आधे को भी ज्यादा एक्साइज टैक्स के साथ राजस्व में बदल दें तो सरकार के पास अतिरिक्त खर्च के लिए भी राजस्व निकल आएगा। ऐसे में भारत को वित्तीय घाटा लक्ष्य 3.5 प्रतिशत के आसपास बना रहेगा।
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हालांकि कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आर्थिक घाटा निर्धारित किए गए लक्ष्य से ज्यादा रहेगा। इसीलिए कच्चे तेल के दामों में कमी से भारत को जो फायदा मिलता है उसका फायदा अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में किया जा सकता है। कोरोना वायरस महामारी भी ऐसे समय में आई है, जब अर्थव्यवस्था पहले ही स्लोडाउन के शिकंजे में है। स्लोडाउन की वजह से जो भी सुस्त राजस्व जुटेगा वह अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने में नाकाफी ही होगा।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर और प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सी रंगराजन के अनुसार, कोरोना के प्रभाव के बगैर भी इस इस वित्तीय वर्ष का घाटा बढऩे के आसार थे। अब वायरस के असर के बाद इससे बचाव, टेस्टिंग और हेल्थकेयर के लिए सरकार को खर्च बढ़ाना पड़ेगा, जिससे वित्तीय घाटा बढ़ेगा। इसलिए अर्थव्यवस्था के उभरने की संभावनाएं सीमित हैं। अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के लिए सरकार ज्यादा से ज्यादा पेट्रोल उत्पादों पर लगी एक्साइज ड्यूटी से जुटाई गई राशि के बारे में सोचा जा सकता है। कुछ राज्य कोरोनावायरस से लोगों को बचाने के लिए कड़े प्रतिबंध भी लगा रहे हैं।