एक दिन का कर्फ्यू न मानने वाले मसखरे को सबसे पहले चपेट में लेगा कोरोना
राजीव ओझा
जोदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तबे एकला चलो रे…। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह देशभक्ति का गीत 1905 में लिखा था। अभी 19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना से बचने के लिए जनता से अपील की और फिर फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप पर कुछ लोगों ने उसका मजाक उड़ाया तो करीब 115 साल पहले लिखी टैगोर की ये लाइन याद आ गई। यह लाइन आज भी कितना प्रासंगिक है। मतलब साफ़ है अगर आप कोई भी नेक काम करना चाहते हैं तो बिना किसी के सहयोग की अपेक्षा करे अपने बलबूते पर वो काम करो जो तुम्हे करना है।
प्रधानमंत्री ने करीब आधे घंटे से भी अधिक समय तक देशवासियों को COVID19 के गंभीर खतरे से चेताया और 22 मार्च को 15 घंटे के जनता कर्फ्यू को सफल बनाने की अपील की है। यह भी अनुरोध किया है कि उसी दिन शाम 5 बजे 5 मिनट के लिए अपने अपने घरों में रहते हुए थाली या ताली पीटें, घंटा-घडियाल बजाएं।
ज्यादतर लोगों को स्थिति की गंभीरता समझ में आ रही है, लेकिन हमेशा की तरह कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों और पढ़े-लिखे लोगों ने इसका मजाक उड़ना शुरू कर दिया है कि ताली पीटने से क्या होगा। इसमें कुछ पत्रकार भी शामिल हैं। इन लोगों को नहीं पता कि सरकार की सलाह को न मानने वालों पर कोरोना की चपेट में आने का खतरा सबसे पहले है।
भगवान न करे की मजाक उड़ाने वालों के साथ कोई अनहोनी हो गई तो वही छाती पीटेंगे। जो लोग पूछ रहें हैं की थाली पीटने से क्या होगा, वो इटली और जर्मनी में अपने घरों में कैद होकर थाली और ताली पीटने वालों का ताजा वीडियो देखें। इटली, स्पेन और जर्मनी के ये लोग मूर्ख नहीं पढे-लिखे हैं। थाली और ताली पीटने का मतलब है एक तरह से लॉकडाउन के नियमों का पालन और सोशल डिसटेंसिंग का एक्नोलेजमेंट है।
अगर अब भी न समझ आया हो तो दो दिनों से सोशल मीडिया परब वायरल इस सन्देश को पढ़ें। ह्यूस्टन में अमेरिकी सरकार के लिए संचारी रोग पर शोध कर रहे एक भारतीय अमेरिकी चिकित्सा वैज्ञानिक ने अपने भारतीय डॉक्टर मित्र को फोन कर भारतीय प्रधान मंत्री के एक दिन के कर्फ्यू के आइडिया की तारीफ़ की।
अमेरिकी मित्र ने कहा कि हम छूत की बीमारियों पर पिछले 30 साल से यहां अमेरिका में शोध कर रहे हैं, पर ये 1 दिन के कर्फ्यू वाला आईडिया हमारे दिमाग में कभी नहीं आया। वो बोले कि 19 साल से अमेरिका के नागरिक हैं, पर दिल अभी भी भारतीय है। उन्होंने भी देखा कि भारत के ही लाखों लोग मोदी के 1 दिन के स्वस्फूर्त कर्फ्यू का मजाक उड़ा रहे हैं।
उन्होंने बताया की नरेन्द्र मोदी की इस घोषणा पर चर्चा करने के लिए उनकी लैब में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की 45 मिनिट की एक ऑफिसियल मीटिंग बुलाई गई। आप आश्चर्य करेंगे, 45 मिनिट की ये मीटिंग 3 घण्टे से भी अधिक चली। एक दिन के स्वघोषित कर्फ्यू से छूट की बीमारियों और खास कर कोविड 19 पर इसके प्रभाव पर चर्चा हुई।
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सभी वैज्ञानिकों इस पर एकमत थे कि 12 घण्टे तक हर व्यक्ति का दुनिया से कट कर रहना, कोरोना वायरस को फैलने से रोकने का बहुत ही प्रभावशाली उपाय है। क्योंकि कोविड-19 मानव शरीर के बाहर किसी भी सरफेस पर 12 घण्टे से अधिक जीवित नहीं रह सकता।
ऐसे में अपने घर से बाहर की दुनिया से कट जाने से निर्जीव वस्तुओं जैसे दरवाजों के हैंडल, करेंसी नोट, फाइलों, कुरियर पार्सल, वाहनों के स्टेरिंग व्हील, पेन आदि पर स्थित वायरस पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे। इस तरह से बिना एक पैसा खर्च किये और सन्डे के कारण कामकाज की हानि बिना देश को वायरस से मुक्त किया जा सकेगा।
इस विषय पर विश्व के उच्चतम स्तर के वैज्ञानिकों के दिमाग में ये उपाय नहीं सूझा। उन्होंने कहा कि एक दिन के कर्फ्यू का आइडिया जिसका भी है, अत्यंत सराहनीय है।
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यूरोप के वीडयो देखने और सोशल मीडिया पर इस संदेश को पढने के बाद मजाक उड़ाने वालों को शायद समझ में आ गया होगा। अगर अभी भी नहीं आया, तो भी ऊपर वाला उन्हें कोरोना के कहर से बचाए।