Tuesday - 5 November 2024 - 1:17 AM

पिता व दादी के नक्शेकदम पर चले ज्योतिरादित्य सिंधिया

न्यूज डेस्क

इतिहास खुद को दोहराता है। मध्य प्रदेश की राजनीति में मंगलवार को ऐसा ही हुआ है। वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इतिहास दोहराते हुए कांग्रेस से किनारा कर लिया। 1993 में उनके पिता स्व. माधवराव सिंधिया ने भी जब कांग्रेस में खुद को उपेक्षित महसूस किया था तो कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी ही बना ली थी।

मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य  सिंधिया ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने ट्विटर पर इस्तीफे का ऐलान किया। कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है।

मालूम हो कि इस्तीफा देने से पहले सिंधिया ने गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रधानमंत्री आवास पर मुलाकात की।
फिलहाल कांग्रेस छोडऩे के साथ ही ज्योतिरादित्य ने अपना आगे का रास्ता तय कर लिया है। वह बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं।
सिंधिया का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब पूरा देश होली मना रहा है और साथ ही उनके स्वर्गवासी पिता व पूर्व नेता माधवराव सिंधिया की जयंती है।ज्योतिरादित्य  के पिता माधवराव सिंधिया की आज 75वीं की जयंती है।

ज्योतिरादित्य ने अपने पिता की जयंती के मौके पर ने जो फैसला लिया है, वो ठीक उन्हीं के नक्शेकदम को जाहिर कर रहा है।

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गौरतलब है कि माधवराव सिंधिया भी कभी कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार थे लेकिन पार्टी में उपेक्षित होकर उन्होंने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और अपनी अलग पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी। हालांकि बाद में वे कांग्रेस में वापस लौट गए थे।

वहीं 1967 में जब मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी तब कांग्रेस में उपेक्षित होकर राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ गई थीं और जनसंघ के टिकट पर गुना लोकसभा सीट से चुनाव भी जीती थीं। मौजूदा सियासी हलचल के बीच आज एक बार फिर से इतिहास ने खुद को दोहरा दिया। ज्योतिरादित्य  सिंधिया ने भी अपने पिता और दादी की तरह कांग्रेस से अलग होने का ऐलान कर दिया।

इस सियासी ड्रामे की पटकथा 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद ही लिखी गई। मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं बन पाये तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए आगे बढ़े। उसमें भी वह चूक गए। ज्योतिरादित्य  सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, मगर दिग्विजय सिंह के रोड़े अटकाने के कारण नहीं बन पाए। फिर उन्हें लगा कि पार्टी आगे राज्यसभा भेजेगी, मगर इस राह में भी दिग्विजय सिंह ने मुश्किलें खड़ीं कर दीं।

पार्टी में लगातार उपेक्षा होते देख सिंधिया ने बीजेपी के कुछ नेताओं से भी संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में बीते 21 जनवरी को शिवराज सिंह चौहान और सिंधिया की करीब एक घंटे तक मुलाकात चली थी। उसी दौरान सिंधिया की बीजेपी से नजदीकियां बढऩे की चर्चा चली थी। अंतत: सिंधिया ने बड़ा फैसला करते हुए कांग्रेस को अलविदा कह दिया है।

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