सुरेंद्र दुबे
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के ही समय से भाजपा के बयानवीर नेता सियासी गुब्बारे में हवा भरने में लगे थे। सबसे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने यह कह कर गुब्बारे में हवा भरने की शुरूआत की कि ईवीएम का बटन इतनी जोर से दबाना कि शाहीन बाग को सीधे करंट लगे।
अब जब गुब्बारा बेचने वाला ही गुब्बारे में जरूरत से ज्यादा हवा भरने पर आमादा हो तो फिर मोहल्ले में उछल कूद मचा रहे बच्चों को गुब्बारे में ज्यादा से ज्यादा हवा भरने से कौन रोक सकता है। ये गुब्बारा था नागरिकता कानून का, जिसे शाहीन बाग के लोग ऊंचे से ऊंचे उडाना चाहते थे और सत्ता पक्ष किसी न किसी तरह गुब्बारे को फोड़ देना चाहता था।
केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर गुब्बारा फोड़ने के लिए इतने गुस्से में आ गए कि उन्होंने, ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो…’ का नारा उछाल दिया। चुनाव का माहौल था सो असर तो होना ही था। जैसा हमारा चुनाव आयोग वैसी ही दिल्ली पुलिस। जामिया और शाहीन बाग दोनों में बहके हुए युवकों ने सरेआम फायरिंग की।
पर शाहीन बाग और मजबूती से डट गया। भाजपा ने प्रवेश वर्मा ने लोगों को ललकारा कि अगर भाजपा चुनाव नहीं जीती तो दिल्ली के लोगों की बहू-बेटियां सुरक्षित नहीं रहेंगी। पर दिल्ली वाले काफी समझदार निकले, उन्होंने इस तरह के बयानों के बहकावे के आने के बजाय अपने मन से मनमाफिक प्रत्याशी को मतदान किया। यानी शाहीन बाग का गुब्बारा फिर भी नहीं फूटा।
इसके बाद आम आदमी पार्टी से भाजपा में आए पूर्व विधायक कपिल मिश्रा ने तो सीधे-सीधे कह दिया कि आठ फरवरी को दिल्ली में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच में मैच होगा। आग लगाने के लिए इतना काफी था। पर जनता ने फिर भी संयम से काम लिया और आपसी सौहार्द के गुब्बारे को फूटने नहीं दिया। पर गुब्बारा, गुब्बारा है। उसकी अपनी सीमित क्षमता है। चुनाव बाद भी लोग गुब्बारे में हवा भरने में लगे रहे।
शनिवार यानी 22 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाके में स्थित जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर तमाम महिलाओं ने सीएए के विरोध में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके बाद हिंसा छिटपुट घटनाएं शुरू हो गई। 23 फरवरी को भाजपा नेता ने मोर्चा संभाल लिया और लोगों को सीएए के समर्थन में प्रदर्शन करने के लिए उकसाया, जिससे दोनों पक्षों में पथराव शुरू हो गया। कई बसें फूंक दी गई।
कपिल मिश्रा ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में पुलिस से कहा ट्रंप के जाने तक ये धरना खत्म हो जाना चाहिए। वरना हम स्वयं मोर्चा संभाल लेंगे, जिसकी जिम्मेदारी पुलिस की होगी। फिर क्या था, दंगाई नेता जी का इशारा समझ गए और उन्होंने जमकर उत्पात काटा, जिसमें अब तक सात लोगों की जान जा चुकी है और साठ से अधिक लोग घायल हो गए।
जो कपिल मिश्रा चुनाव के समय भारत पाकिस्तान का मैच नहीं करा सके थे वो मैच अब पूरी हिंसा के साथ खेला गया। पुलिस तमाशबीन बनी रही क्योंकि वह भाजपा नेता पर हाथ डालने का जोखिम नहीं ले सकती थी। यहां भी एक युवक ने जामिया मिलिया व शाहीन बाग की तरह पुलिस की उपस्थिति में सरेआम फायरिंग की।
वैसे भी दिल्ली पुलिस चाहे जेएनयू हो और चाहे जामिया मिलिया या फिर शाहीन बाग वह हमेशा मूक दर्शक ही बनी रहती है। जाफराबाद में भी बनी रही। सो सौहार्द का गुब्बारा धांय से फूट गया।
दिल्ली के भाजपा सांसद गौतम गंभीर साफ-साफ कह रहे हैं कि कपिल मिश्रा के कारण हिंसा फैली। पर अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सीएए के विरूद्ध चल रहे शांतपूर्ण प्रदर्शनों की परिणति हिंसा के रूप में हुई है। हमारे सौहार्द का गुब्बारा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने ही तार-तार हो गया है।
गुजरात की गरीबी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीवाल उठा कर छिपा ले गए, पर गांधी के देश में देश की राजधानी दिल्ली में हिंसा को नहीं छिपा सके। एक ओर मोदी और ट्रंप एक-दूसरे के शान में कसीदे कढ़ रहे थे और दूसरी ओर दिल्ली में हिंसा का तांडव जारी था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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