केपी सिंह
खबर है कि बुन्देलखण्ड के भाजपा विधायकों के क्रियाकलापों की निगरानी के लिए संघ ने अपने अय्यारों को मुस्तैद कर दिया है। वैसे सवाल यह भी है कि यह छानबीन अकेले बुन्देलखण्ड में ही क्यों कराई जा रही है क्या अन्य अंचलों के भाजपा विधायक दूध के धुले हैं।
संघ के अधिकारियों को सूबे में भाजपा को सत्ता मिलने के बाद वृंदावन में उसके साथ हुई पहली समन्वय समिति की बैठक की याद जरूर होगी। तब तक तमाम पूत पालने में अपने पांव दिखा चुके थे। संघ के अधिकारियों से लेकर भाजपा के पदाधिकारियों तक ने शीर्ष नेतृत्व के सामने उनकी करतूतों पर जमकर गुबार निकाले।
संघ के अधिकारियों और मुख्यमंत्री की मुद्रा ऐसी थी जैसी वे बड़े भोले हो और पहली बार उन्हें अपने लोगों के ओछेपन का पता चला हो। मुख्यमंत्री ने भरोसा भी दिलाया था कि लिमिट क्रास कर चुके विधायकों पर प्रभावी कार्रवाई की जायेगी ताकि सभी विधायकों में कठोर संदेश पहुंच सके। लेकिन यह बंदर भभकी किसी काम की नहीं निकली। इससे विधायकों में जो थोड़ा बहुत लिहाज था वह भी खत्म हो गया और वे खुला खेल फरूर्खाबादी खेलने लगे। अब तीन साल बाद फिर विधायकों की जासूसी की बात होने लगी है। लोग कह रहे हैं बलमा बेईमान पुटियाने आये हैं।
कहा जा रहा है कि विधायकों की नीचता की खबर तो संघ और पार्टी नेतृत्व को थी लेकिन यह उम्मीद की जा रही थी कि वे सुधर जायेंगे लेकिन माननीय जब कुत्ते की पूंछ साबित हुए तो उनकी बेकद्री भी की गई। इस महत्वपूर्ण अंचल से किसी विधायक को कैबिनेट में स्थान नहीं दिया गया। वैसे यह दलील ईमानदार लोक निर्माण राज्य मंत्री चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय की सीआर को देखते हुए बहुत बेतुकी लगती है। चन्द्रिका प्रसाद में कोई खोट था इसलिए कैबिनेट का दर्जा नहीं दिया गया या इसलिए कि किसी और का कद नीचा होने जा रहा था जिसके चलते उन्हें पार्टी की अंदरूनी साजिश का शिकार बनना पड़ा। बहरहाल संकेत यह दिया जा रहा है कि जो विधायक इस जासूसी में पार्टी की ज्यादा बदनामी कराने में पकड़े जायेंगे उनका टिकट काट दिया जायेगा। यह तो मूर्ख बनाने वाली बात है।
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नालायक लोगों का कौन सा कर्जा जनता पर है जिसे चुकाने की खातिर उन्हें पांच साल गुलछर्रे उड़ाने का मौका दिया जा रहा है। अगर समय रहते कुछ विधायक दागदार छवि के आधार पर पार्टी से निष्कासित कर दिये गये होते तो सत्तारूढ़ दल के कवच कुंडल के बिना करोड़ों रूपये बटोरने का अवसर उन्हें नहीं मिला लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो सका कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गिरोह बंद मानसिकता के बंधक हैं। जिसकी वजह से उनके रहते अपने चाहे नंगा नाचे उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती।
भारतीय जनता पार्टी को शायद याद नहीं रहा है कि इस देश में सत्ता परिवर्तन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर होता है। यहां तक कि भाजपा को भी केन्द्र और राज्य में पूर्ण बहुमत की सत्ता तब मिली जब अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में पैठ करके उसने लोगों के बीच यह विश्वास जमा लिया कि अगर पार्टी की सरकारें गठित हुई तो भ्रष्टाचार की मेहमानी एक दिन भी नहीं चल पायेगी। लेकिन भाजपा ने केन्द्र में भी इस भरोसे के साथ दगा किया और राज्य में भी। और इतिहास में जायें तो केन्द्र में पहले सत्ता परिवर्तन की भूमिका भी तब लिखी गई थी जब लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने काग्रेस सरकारों के भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा संभालने की मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद बदहवास इंदिरा गांधी ने उनको और सारे विपक्षी नेताओं को इमरजेंसी लगाकर जेल में डाल दिया। जिसके चलते चुनाव तक पूरे उत्तर भारत में उनके पैर उखड़ गये। वीपी सिंह भी न भूतो न भविष्यतो बहुमत वाली राजीव सरकार को जमीन सुंघाने में इसलिए सफल हुए क्योंकि लोगों को उनमें यह विश्वास हो गया था कि वे देश को भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था देने में सफल हो सकते हैं।
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भाजपा का मेंटोर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अच्छी व्यवस्था के लिए मनुष्य निर्माण पर जोर देता है। बात सही भी है कि नियम और कानून किसी व्यवस्था में तभी सफल हो पाते हैं जब वह अच्छे लोगों द्वारा संगठित हो लेकिन इसे संघ की कमजोरी कहें या कुछ और भूमिका निभाने के नाम पर उसने अपने को अमूर्त दार्शनिकता में समेट रखा है। संघ उसके सिद्धांत और आदर्श के विरूद्ध कार्य हो रहा हो तो कभी हस्तक्षेप के लिए तत्पर होता नहीं देखा गया है। मसलन सहभोज के जरिए छुआछूत मिटाने और सामाजिक समरसता बढ़ाने में संघ ने बेहतरीन प्रयास किये। लेकिन अगर किसी जगह सवर्ण दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने से रोक देते हैं तो संघ का कोई अधिकारी ऐसा जलील काम करने वालों को नीचा दिखाने के लिए नहीं पहुंचता। इस मामले में पांचजन्य के संपादक रहे तरूण विजय जैसों के इक्का-दुक्का उदाहरण हैं जिन्होंने दलितों को उत्तराखंड में मंदिर में प्रवेश से रोकने का विरोध करते हुए जानलेवा हमला झेला। संघ आरक्षण की नीति का समर्थन करता है लेकिन अपने उन सवर्ण स्वयं सेवकों को रोकना भी नहीं चाहता जो इसका विरोध दलितों और ओबीसी के आत्मसम्मान व गरिमा को ठेस पहुचाने वाली भाषा में करते हैं।
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इसी तरह सादगी और ईमानदारी पर जोर देने वाले संघ ने भाजपा में जिन लोगों को अपने को उदाहरण बनाने के लिए भेजा वे चाहे संगठन मंत्री बने हो या भाजपा की सरकारों में शासन के मंत्री उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में दूसरी सरकारों के लोगों के कान काट लिये। उत्तर प्रदेश में हाल में कई संगठन मंत्रियों को संघ को लाइन हाजिर करना पड़ा था। कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री थे तो संगठन मंत्रियों की करतूतों से बहुत नाराज रहते थे। आज भी ऐसे लोग राज प्रसादों में बैठे हुए हैं जिन्हें न जनसेवा से सरोकार है और न ही मर्यादाओं का पालन करने की चिंता। यहां तक कि संघ के दिशा निर्देश की वजह से ही वे अपनी क्षमता से बहुत अधिक प्रसाद प्राप्त करने में सफल रहे हैं। इससे यह धारणा बनती है कि संघ में भ्रष्टाचार का संस्कार होता है जबकि यह सही नहीं है। संघ में केवल वे आईकोन भ्रष्ट हैं जो सत्ता के अधिकारी बनने की वजह से दृश्यमान हो रहे हैं जबकि आम स्वयं सेवक और संघ का शीर्ष नेतृत्व निस्वार्थ भाव से देश और समाज की बेहतरी के लिए लगा है। संघ को इस मामले में कठोरता दिखानी पड़ेगी।
दूसरी ओर मोदी और योगी भी अपने आप में ईमानदार हैं इसमें कोई शक नहीं। हांलाकि यह दूसरी बात है कि खुद दौलत न बनाना ईमानदारी के लिए जितना जरूरी है उतना जरूरी यह भी है कि प्रचार का खर्चा उठाने वाले धन्नासेठों को देश की संपदा बेचने की जुर्रत न की जाये वर्ना ईमानदारी पाखंड साबित होकर रह जायेगी। योगी और मोदी को सर्व शक्तिमान बनी नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कटिबद्धता दिखानी चाहिए जो उन्होंने अभी तक नहीं दिखाई।
उत्तर प्रदेश में योगी के पास ईओडब्ल्यू और एंटीकरप्शन जैसे विभाग हैं वे क्यों नहीं छह माह के लिए इनमें विशेष अभियान छेड़ते जिसके तहत रिश्वत लेने वाले अधिकारी और कर्मचारी ताबड़तोड़ ट्रैप किये जायें व इनकी आमदनी से बहुत ज्यादा हैसियत का पता लगाकर उसे जब्त किया जाये। इससे जहां रिश्वत मांगने वालों में खौफ पैदा होगा वहीं जब्त परिसंपत्तियों से राज्य सरकार इतने संसाधन बटोर सकेगी कि न केवल नये कर लगाने की जरूरत खत्म हो जाये बल्कि करों व शुल्कों में वह दिल्ली सरकार की तरह छूट दे सके। निश्चित रूप से इसके लिए पहले जरूरी है कि उसके विधायक और सांसद व संगठन के लोग ईमानदार और जनसेवी हो। हर महीने इंटेलीजेंस व मीडिया सहित अन्य श्रोतों से पार्टी के लोगों की जानकारी इकट्ठी की जानी चाहिए और बदनाम लोगों को तत्काल पैदल करने की नीति अपनानी चाहिए तभी जन आंकाक्षाओं की पूर्ति संभव है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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