Tuesday - 29 October 2024 - 12:23 PM

2024 की तैयारियों के बीच क्या संघ और मोदी के बीच सब कुछ ठीक है?

न्‍यूज डेस्‍क

2014 के आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयं संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के आलाकमान ने हिंदुत्व चेहरे और गुजरात के तीन बार के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया था,  जिसके बाद मोदी लहर में बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की।

बताया जाता है कि उस समय संघ और बीजेपी दोनों ने ही सत्‍ता में वापसी के लिए राजनीति और लोकतंत्र को लेकर अपनी-अपनी अवधारणा बदली और ये बदलाव कॉरपोरेट जगत की पसंद के मुताबिक़ किया गया। हालांकि तब भी संघ के हिंदुत्‍व ऐजेंडे से किसी ने इंकार नहीं किया।

जीत के बाद ऐसी चर्चा था कि नरेंद्र मोदी बीजेपी और संघ के बीच रिलेशनशिप ब्रिज का काम करेंगे। उस समय इस बात की भी चर्चा थी कि मोदी सरकार चलाएंगे लेकिन सत्‍ता का रिमोट कंट्रोल संघ प्रमुख के हाथ में होगा और विकास की बात कर संघ के हिंदुत्‍व के ऐजेंड का सरकार आगे बढ़ाएगी।

हालांकि, सरकार बनने के कुछ दिन बाद से ही ऐसी खबरें आने लगी कि सरकार और संघ के बीच सबकुछ सही नहीं है। सवाल उठने लगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सरकार, क्या ये एक ही राह पर चल रहे हैं या इनकी राहें जुदा हैं?

दबी जुबान में कहा जाने लगा कि बीजेपी पर नरेंद्र मोदी ने एकाधिकार स्‍थापित कर लिया है। अपने करीबी अमित शाह को बीजेपी का अध्‍यक्ष बनाकर उन्‍होंने इस चर्चा को और हवा भी दे दी थी। इस दौरान जहां एक ओर मोदी और शाह की सफल जोड़ी देश में अपना चुनावी रथ को आगे बढ़ा रहे थे। वहीं, इस बात की भी अटकलें तेज हो रहीं थी कि मोदी और संघ के बीच रिश्‍ते खराब हो रहे हैं। हालांकि सार्वजनिक मंचों से संघ की तरफ से या फिर बीजेपी की तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं आया, जिसे सुन कर यह कहा जाए कि दोनों के बीच संबंध खराब हो रहे हैं।

फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के अपने नारे को नया आयाम देते हुए ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’  में बदल दिया। मोदी ने ये नारा देकर एक नई बहस को जन्‍म दे दिया कि इस ‘विश्वास’  के जरिये वे बीजेपी की उस छवि से निजात पाने की कोशिश में हैं, जिसकी वजह से अल्पसंख्यकों में एक डर का माहौल रहता रहा है।

लेकिन अल्पसंख्यकों के भरोसे को जीतने की कोशिश में बीजेपी ‘हिंदुत्व’ को बैक सीट पर रख दे ये शायद मुमकिन नहीं, क्योंकि ये भी सच है कि मोदी की वापसी में हिंदुत्व के बढ़ाते असर की एक बड़ी भूमिका रही है। ये बात भी जग‍जाहिर है कि मोदी का चेहरे वाले बीजेपी के विजय रथ का सारथी संघ ही है जिसका मुख्‍य ऐजेंडा हिंदुत्‍व है।

हालांकि,  महाराष्‍ट्र, हरियाणा, झारखंड,  दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद संघ में मोदी और शाह के खिलाफ विरोधी स्‍वर उठने लगे हैं। पिछले कुछ दिनों आरएसएस के नेताओं के जैसे बयान आएं हैं उससे लगता है कि संघ अब बीजेपी नेतृत्‍व के भविष्‍य के लिए नए विकल्‍प तलाशना शुरू कर दिया है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद बीजेपी के प्रदर्शन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि हमेशा मोदी-शाह ही चुनाव नहीं जिता सकते हैं, इसलिए संगठन का पुनर्गठन किया जाना चाहिए।

बीजेपी ने दिल्‍ली विधानसभा की 70 सीटों में मात्र आठ पर जीत हासिल की है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने दीन दयाल उपाध्याय को कोट करते हुए दिल्ली में बीजेपी की हार की समीक्षा छापी है। समीक्षा के दौरान पार्टी की दिल्ली इकाई और चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों के बारे में अवलोकन छापा है।

लेख में कहा गया है कि एक संगठन के तौर पर हर चुनाव केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भरोसे नहीं लड़ा जा सकता। विधानसभा स्तर पर राज्य इकाइयों को ही आगे आना होगा। लेख में कहा गया है कि स्थानीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दिल्ली में संगठन के पुनर्निर्माण के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

‘ऑर्गनाइजर’ में लिखा गया है कि साल 2015 के बाद से बीजेपी ने जमीनी स्तर पर खुद की ढांचागत व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कोई काम नहीं किया। लेख में बताया गया है कि चुनाव के आखिरी चरण में प्रचार-प्रसार को चरम पर ले जाने में भी पार्टी पूरी तरह से विफल रही, जिसके कारण पार्टी को चुनाव में काफी नुकसान हुआ। ‘दिल्ली डायवर्जेंट मेंजेट’ शीर्षक से छपे इस लेख में दिल्ली के वोटरों के मिजाज को समझने की भी बात कही गई है।

लेख में कहा गया है कि शाहीनबाग नैरेटिव बीजेपी के लिए सफल नहीं रहा क्योंकि अरविंद केजरीवाल इस मामले में पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई दिए। लेख में बताया गया है कि अरविंद केजरीवाल के भगवा अवतार को बीजेपी समझ ही नहीं पाई, जबकि पार्टी के नेताओं को इस ओर ध्यान देने की जरूरत थी।

आपको बता दें कि इस विधानसभा चुनाव में भी पीएम नरेंद्र मोदी ही पार्टी का चेहरा थे और उनको ही आगे करके सभी प्रत्‍याशी चुनाव लड़ रहे थे। इस दौरान बीजेपी नेताओं ने शाहीनबाग और राष्‍ट्रवाद जैसे मुद्दों के साथ जनता से वोट मांगे। जबकि आम आदमी पार्टी और उनके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बिजली, पानी जैसे मुद्दे पर चुनाव लड़ा।

बीजेपी नेताओं से नाराज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रांची में एक कार्यक्रम में राष्ट्रवाद को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्‍होंने कहा कि राष्ट्रवाद शब्द की जगह राष्ट्र या राष्ट्रीय शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए क्योंकि इसमें नाजी और हिटलर की झलक मिलती है। उन्होंने कहा कि आरएसएस का विस्तार देश के लिए है। हमारा लक्ष्य भारत को विश्वगुरू बनाने का है।

इस दौरान भागवत इशारों ही इशारों में सरकार को अपने हिंदुत्‍व ऐजेंडे को याद दिलाते हुए कहा कि  हिंदू ही एक ऐसा शब्द है जो भारत को दुनिया के सामने सही तरीके से पेश करता है। बेशक देश में कई धर्म हैं लेकिन हर व्यक्ति एक शब्द से जुड़ा हुआ है जो हिंदू है। ये शब्द देश की संस्कृति को दुनिया के सामने दर्शाता है। उन्होंने कहा कि संघ देश में विस्तार के साथ-साथ हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ता रहेगा जो देश को जोड़ने का काम करेगा।

इतना ही नहीं कुछ दिनों पहले संघ के नेता सुरेश ‘भैय्याजी’  जोशी ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि हिंदू समुदाय का मतलब बीजेपी नहीं है। उनकी यह टिप्पणी संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच आया।

उन्होंने कहा कि बीजेपी का विरोध करना हिंदुओं का विरोध करने के बराबर नहीं है। जोशी ने यह बात यहां पास स्थित दोना पाउला में विश्वगुरु भारत पर भाषण के तहत प्रश्न उत्तर सत्र के दौरान कही। इस सवाल पर कि ‘क्यों हिंदू अपने ही समुदाय के दुश्मन बन रहे हैं’, उन्होंने कहा कि हमें भाजपा के विरोध को हिंदुओं का विरोध नहीं मानना चाहिए। यह एक राजनीतिक लड़ाई है जो चलती रहेगी। इसे हिंदुओं से नहीं जोड़ना चाहिए।

प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार चल रही है और 2024 तक इस तरह आगे चलने की संभावना भी है। लेकिन अब संघ और बीजेपी के सामने बड़ा सवाल ये कि अगले आम चुनाव में बीजेपी का चेहरा कौन होगा या फिर किस मुद्दे पर बीजेपी चुनाव लड़ेगी। मोदी सरकार लाख विकास के दावे करे लेकिन खराब अर्थव्‍यवस्‍था और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी की राह आसान नहीं लग रही है।

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विकास की बात करती है या फिर हिंदुत्‍व के ऐजेंड आगे बढ़ती है ये देखना दिलचस्‍प होगा। हालांकि जिस तरह से संघ हिंदुत्‍व के ऐजेंडे को और प्रखर तरिके से जनता के बीच उठा रही है और बीजेपी राम मंदिर निर्माण को खुद से जोड़ने की कोशिश में लगी उससे संकेत कुछ और मिल रहे हैं।

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