सुरेंद्र दुबे
सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन में डटे प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक मानमनुव्वल टीम गठित की है, जो वहां के प्रदर्शनकारियों को धरना स्थल से हटने या किसी अन्य स्थान पर धरना देने के लिए मनाने का प्रयास करेगी।
शाहीन बाग जो अब पूरे देश में नागरिकता कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलनों का प्रतीक बन गया है। वहां आंदोलन का कोई नेता नहीं है और ऐसी भीड़ को हटा पाना काफी मुश्किल काम है। मान मनुव्वल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो वरिष्ठ वकीलों संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन को नामित किया है। जो दिल्ली के पूर्व मुख्य़ सूचना आयुक्तन वजहत हबीबुल्लाह की भी मदद ले सकते हैं।
शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों का कोई नेता नहीं है, पर सुनते हैं कि वहां कुछ दादी अम्माओं की बात सुनी जाती है। इसलिए वार्ताकारों को मुख्यत: इन दादी अम्माओं को ही मनान होगा। स्थिति बड़ी विकट है। प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि जब तक सीएए, एनपीआर और एनआरसी कानून वापस नहीं होगा तब तक वे अपना धरना समाप्त नहीं करेंगे।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में मिली करारी हार के बाद जहां सरकार बैकफूट में आती नजर आई। वहीं प्रदर्शनकारियों के हौसले बुलंद हो गए क्योंकि शाहीन बाग दिल्ली के चुनाव में एक बहुत बड़ा मुद्दा था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दो-तीन दिन पहले अनमने ढंग से वार्ता का निमंत्रण देते हुए बयान दिया कि जिसे सीएए पर दिक्कत है वह उन से आकर मिल सकता है। उनका मंत्रालय तीन दिन में वार्ता के लिए समय दे देगा।
अमित शाह को ये भ्रम रहा होगा कि शाहीन बाग का कोई प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने का समय मांगेगा और उन लोगों से बात कर मामला निपटा लेंगे। पर शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी ज्यादा चालाक निकले। उन्होंने पूरी भीड़ के साथ गृहमंत्रालय की ओर कूच करने के लिए निकल पड़े पर पुलिस ने उन्हें यह कह कर रोक दिया कि गृहमंत्रालय ने बातचीत के लिए अभी कोई समय नहीं दिया है। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में घोषणा कर दी कि उनकी सरकार तमाम दबावों के बावजूद सीएए कानून को वापस नहीं लेगी।
यानी मामला फिर टांय-टांय फिस्स हो गया। इस बीच कल ही सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के धरने के वजह से उत्पन्न ट्रैफिक समस्या से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र में असहमति व कानून विशेष के विरोध में धरना देने से किसी को नहीं रोका जा सकता है पर धरना के नाम पर जनता को जाम से जूझने के लिए भी मजबूर नहीं किया जा सकता है।
जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के इस रवैये से सरकार को कोई राहत नहीं मिली। क्योंकि धरना तो चलेगा ही। अब देखना ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त वार्ताकार शाहीन बाग के लोगों को धरना स्थल खाली कर कहीं अन्यत्र जाने या फिर धरना स्थल की ही एक सड़क खाली कर देने पर राजी कर सकते हैं।
हमें वर्ष 1961 में आई फिल्म घराना की याद आ रही है, जिसका एक मशहूर गीत था,
दादी-अम्मा, दादी-अम्मा मान जाओ
दादी-अम्मा, दादी-अम्मा मान जाओ
छोड़ो जी ये ग़ुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ
शाहीन बाग आंदोलन की बागडोर अब इन दादी अम्माओं पर ही है, जो सीएए कानून को वापस लेने से कम पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं। इन लोगों की ये भी अपेक्षा है कि सरकार का कोई प्रतिनिधिमंडल उनसे आकर मिले और सीएए कानून पर व्याप्त उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए कानून को वापस लेने का लिखित आश्वासन दें। ऐसा होने की संभावना न के बराबर है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कानून वापस न लेने की घोषणा कर चुके हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकारों के पास दो ही विकल्प हैं। या तो वे इन लोगों को धरना स्थल कहीं और बनाने के लिए राजी कर लें या फिर धरना स्थल की एक सड़क यातायात के लिए खोल दें। पर दादी अम्माओं को मनाना बहुत आसान नहीं है। क्योंकि वे दिल से मानती हैं कि उनके ऊपर एक गलत कानून थोप दिया गया है।
धरना स्थल कहीं और ले जाने पर भी ये लोग आसानी से नहीं मानेंगी। क्योंकि दूसरी जगह धरना का टेंपो बनाना बहुत आसान नहीं होगा। एक मात्र विकल्प धरना स्थल की एक सड़क खाली कर देने पर ही यह लोग तैयार हो सकती हैं। पर क्या सुप्रीम कोर्ट इतने मात्र से संतुष्ट हो जाएगा। जाहिर है सुप्रीम कोर्ट पुलिस को जबरन धरना स्थल खाली कराने की अनुमति नहीं देगा। देखना होगा दादी अम्मा मानती हैं या नहीं और अगर मानती भी हैं तो किस बात पर मानती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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