न्यूज डेस्क
जनता दल यूनाइटेड से निकाले जान के बाद आज पहली बार चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने छुप्पी तोड़ते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में बहुत काम किया है कि लेकिन राज्य की स्थिति 2005 में जैसी थी वैसी ही आज भी है। सीएम नीतीश कुमार बीजेपी के पिछलग्गू बन गए हैं। मुख्यमंत्री और सरकार की लालच में कॉम्प्रोमाइज कर रहे हैं और उसके बाद भी बिहार का विकास नहीं कर पाए हैं।
प्रशांत किशोर ने कहा, ‘आपके झुकने से भी बिहार का विकास हो रहा है, तो मुझे आपत्ति नहीं है। क्या इस गठबंधन के साथ रहने से बिहार का विकास हो रहा है, सवाल यह है। लेकिन इतने समझौते के बाद भी बिहार में इतनी तरक्की हो गई है? क्या बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिला?’
पीके के नाम से मशहूर प्रशांंत किशोर ने कहा कि आज भी बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य और बिहार में विकास की गति धीमी है। कैपिटल इनकम में बिहार 2005 में भी 22वें नंबर पर था, आज भी उसी नंबर पर है। सबसे ज्यादा गरीब बिहार में बसते हैं। उन्होंने कहा कि देश को सबसे ज्यादा आईएएस, आईपीएस और पढ़े लिखे छात्र देने वाले बिहार राज्य में काम नहीं है। यहां के लोगों को नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। बिजली की खपत बिहार में सबसे कम है। विकास हुआ तो चमकी बुखार से बच्चे क्यों मरे, पटना कई दिनों तक बाढ़ से डूबा रहा।
पीके ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि हमने बहुत सुन लिया कि लालू सरकार से अच्छा काम नीतीश सरकार ने किया, लेकिन अन्य राज्यों में जो विकास हो रहा है उसके मुकाबले हम कहां हैं। ये बात भी नीतीश कुमार बताएं। नीतीश कुमार बताएं कि अगले 10 साल में बिहार में कितना विकास होगा।
प्रशांत किशोर ने कहा कि विकास के लिए गठबंधन जरूरी नहीं है। बीजेपी के साथ गठबंधन विकास में बाधा बन रहा है। बीजेपी का साथ बिहार को विकास नहीं दे रहा है। प्रशांत किशोर इसके लिए हम नई राजनीति की शुरूआत करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी को हराना और जीताना हमारा मकशद नहीं है। प्रशांत किशोर ने ‘बात बिहार की’ नाम से कैंपेन की शुरू करने का ऐलान किया।
प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया कि नीतीश जी उनके साथ हैं, जो गोडसे की विचारधारा को मानते हैं। गांधी और गोडसे एक साथ नहीं चल सकते हैं।
प्रशांत किशोर ने कहा कि मेरा और नीतीश जी का संबंध राजनीतिक नहीं था। वह मुझे अपना बेटा मानते थे। नीतीश जी के फैसले का मैं दिल से स्वागत करता हूं। मुझे पार्टी से निकालना उनका अधिकार है। उन्होंने कहा कि वह नीतीश के फैसले को सहृदय स्वीकार करते हैं। उस पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करेंगे। इस दौरान प्रशांत किशोर ने नीतीश के बीजेपी के साथ गठबंधन पर सवाल उठाए।
प्रशांत किशोर ने कहा, ‘नीतीश जी से मेरा संबंध विशुद्ध राजनीतिक नहीं रहा है। दिसंबर 2014 में पहली बार मिले थे, जिस तरह से नीतीश जी ने साथ रखा, वह किसी बेटे की तरह ही रखा, उन्होंने उसी तरह स्नेह दिया। जब मैं उनके दल में था, तब भी और उससे पहले भी, मैंने भी उन्हें पितातुल्य माना।’ लेकिन मैं पिछलग्गू की तरह नीतीश को नहीं चाहता था, 2014 के नीतीश मुझे पसंद थे।
प्रशांत किशोर ने बताया कि नीतीश और उनके बीच दो वैचारिक मतभेद हैं। उन्होंने कहा, ‘पहला कारण वैचारिक है। जितना मैं नीतीश जी को जानता हूं वह हमेशा गांधी, जेपी और लोहिया को नहीं छोड़ सकते हैं। मेरे मन में दुविधा यह है कि आप गांधी जी की बातों का शिलापट लगवा रहे हैं, यहां के लोगों को गांधी के विचारों से अवगत करा रहे हैं। उस समय गोडसे के साथ खड़े लोग उनके साथ भी कैसे खड़े हो सकते हैं। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती है। दूसरे बीजेपी और जेडीयू में गठबंधन में उनकी स्थिति को लेकर है। 2004 की तुलना में आज गठबंधन में उनकी स्थिति दयनीय है।’