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उमर-महबूबा के बाद अब फैसल पर लगा पीएसए

न्यूज डेस्क

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बाद अब पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल के खिलाफ विवादास्पद जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया है।

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद से हिरासत में बंद फैसल पर शुक्रवार 14 फरवरी की रात को पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इस कानून के तहत, उमर की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी, लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है। इसके बाद उनकी हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है।

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पिछले साल 13 और 14 अगस्त की बीच रात में दिल्ली हवाईअड्डे पर इस्तांबुल के लिए उड़ान भरने से पहले फैसल को रोक दिया गया था और उन्हें श्रीनगर ले जाया गया था, जहां उन्हें हिरासत में लिया गया था।

इसके बाद उनके द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में जम्मू कश्मीर प्रशासन ने उनकी हिरासत को उचित ठहराते हुए जम्मू कश्मीर प्रशासन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा था कि उन्होंने देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ श्रीनगर हवाई अड्डे पर जमा लोगों को भड़काया।

याचिका में फैसल ने आरोप लगाया था कि उन्हें 14 अगस्त को दिल्ली हवाई अड्डे पर अवैध तरीके से रोका गया और वापस श्रीनगर भेज दिया जहां उन्हें नजरबंद कर दिया गया था।

इससे पहले जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटने के बाद शाह फैसल उन 40 स्थानीय नेताओं में शामिल थे, जिन्हें श्रीनगर में नजरबंद रखा गया था।

35 वर्षीय शाह फैसल एक प्रशिक्षित डॉक्टर है और उन्होंने जनवरी 2019 में आईएएस पद से इस्तीफा दिया था।

2010 सिविल सेवा परीक्षा में ऑल इंडिया टॉपर रहे पहले कश्मीरी आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने ‘कश्मीर में हो रही हत्याओं, हिंदुत्ववादियों द्वारा भारतीय मुसलमानों को हाशिये पर धकेलने, असहिष्णुता और बढ़ती नफरत’  का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया।

पूर्व नौकरशाह ने आईएएस से इस्तीफा देने के बाद ‘जम्मू कश्मीर पीपल्स मूवमेंट’  पार्टी का गठन किया था।

पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है?

पब्लिक सेफ्टी एक्ट राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के समान है जिसे सरकारें एहतियातन हिरासत में लेने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं। पीएसए किसी व्यक्ति को सुरक्षा के लिहाज से खतरा मानते हुए एहतियातन हिरासत में लेने का अधिकार देता है।

इस कानून के तहत किसी स्थान पर जाने पर रोक लगाई जा सकती है। सरकार आदेश पारित कर किसी स्थान पर लोगों के जाने पर रोक लगा सकती है। इस कानून की धारा 23 के तहत इस अधिनियम में बीच-बीच में बदलाव किए जाने का प्रावधान भी है।

राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा समझते हुए किसी महिला या पुरुष को इस कानून के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

जैसा कि इसकी परिभाषा से स्पष्ट है हिरासत में लेना सुरक्षात्मक (निवारक) कदम है न कि दंडात्मक। पीएसए बिना किसी ट्रायल के किसी व्यक्ति को दो साल हिरासत में रखने की इजाजत देता है।

इसे डिविजनल कमिश्नर या जिलाधिकारी के प्रशासनिक आदेश पर ही अमल में लाया जा सकता है न कि पुलिस से आदेश पर।

पीएसए में हिरासत में लिए गए दोनों के पास एडवाइजरी बोर्ड के पास जाने का अधिकार भी है और उसे (बोर्ड को) आठ हफ्तों के भीतर इस पर रिपोर्ट सौंपनी होगी।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पब्लिक सेफ्टी एक्ट शेख अब्दुल्लाह के शासनकाल में 8 अप्रैल 1978 को लागू किया गया था। उन्होंने इसे विधानसभा में पारित कराया था। इसके तहत 18 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है और उस पर बिना कोई मुकदमा चलाए उसे दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

हालांकि पहले यह उम्र सीमा 16 साल थी, जिसे 2012 में संशोधित कर 18 वर्ष कर दिया गया। 2018 में यह भी संशोधन किया गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर के भी किसी व्यक्ति को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

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