न्यूज डेस्क
आखिरकार बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को अहसास हो गया है कि नेताओं के नफरत वाले बयानों से पार्टी को सिर्फ नुकसान हो रहा है। अब बीजेपी शीर्ष नेतृत्व डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। पिछले दिनों दिल्ली की हार पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि नेताओं के आक्रामक बयान की वजह से दिल्ली में हार मिली। इसी कड़ी में अपने विवादित बयानों की वजह से अक्सर बीजेपी की भद पिटवाने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह पर भी पार्टी नकेल कसने की तैयारी में जुट गई है।
गिरिराज सिंह को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तलब किया था। शनिवार को उन्होंने दिल्ली में नड्डासे मुलाकात की, लेकिन मीडिया से उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन सूत्रों के मुताबिक भाजपा अध्यक्ष ने विवादित बयानों को लेकर गिरिराज सिंह को चेतावनी दी है और उन्हें इस तरह के बयानों से दूर रहने की सलाह दी है।
दरअसल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह पिछले दिनों सहारनपुर गए थे। वह नागरिकता संसोधन कानून के समर्थन में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि ‘मैंने एक बार कहा था कि देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है। हाफिज सईद जैसे सभी बड़े आतंकवादी वहीं (देवबंद) से निकलते हैं।’
गिरिराज के इस बयान पर खासा हंगामा हुआ था। लोगों ने इस पर आपत्ति जतायी थी। हालांकि गिरिराज सिंह ने कोई पहली बार विवादित बयान नहीं दिया है। वह अपने कामकाज की वजह से नहीं बल्कि विवादित बयानों की वजह से ही चर्चा में रहते हैं। दिल्ली चुनाव के दौरान भी उन्होंने कई विवादित बयान दिया था।
फिलहाल अब बीजेपी शीर्ष नेतृत्व आक्रामक बयानों को लेकर सचेत हो गई है। पार्टी अपनी छवि को लेकर अब वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
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वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दूबे कहते हैं दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने खूब प्रयोग किया। दिल्ली चुनाव जीतने के लिए नेताओं को बेलगाम कर दिया गया और उनसे कहा गया कि आप कुछ भी करिए, जो बोलना हो वो बोलिए लेकिन परिणाम जीत में आनी चाहिए। नेताओं के पास भी केजरीवाल के मुद्दों को कोई तोड़ नहीं था और उन्होंने नफरत की राजनीति की। जीत तो मिली नहीं अलबत्ता पार्टी की छवि जरूर खराब हो गई।
वो कहते हैं अब शीर्ष नेतृत डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। इसीलिए वह बेलगाम नेताओं पर नकेल कसने में जुट गई है। शुरुआत
गिरिराज सिंह से हुई है। अन्य नेताओं पर भी नकेल कसा जायेगा, चूंकि आगे बिहार विधानसभा चुनाव है।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं दिल्ली चुनाव ने बीजेपी को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है। बीजेपी ने अपनी विचारधारा के मुताबिक ही चुनाव लड़ा था। चूंकि केजरीवाल बीजेपी के झांसे में नहीं आए और वह काम पर वोट मांगते रहे, इसलिए बीजेपी की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति में दिल्ली की जनता नहीं आई। परिणाम केजरीवाल के पक्ष में चला गया। अब चूंकि बिहार में साल के अंत में चुनाव होना है इसलिए बीजेपी मंथन में जुटी हुई है। वह हार के कारणों की पड़ताल कर रही है ताकि बिहार के चुनाव में इसे लागू करने से बच सके।
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