सुरेंद्र दुबे
दिल्ली का शाहीन बाग अब नए कारणों से सुर्खियों में आ गया है। आठ फरवरी तक दिल्ली विधानसभा का चुनाव शाहीन बाग के इर्द-गिर्द ढ़ोल बजा कर लड़ा जा रहा था। दिल्ली पुलिस ने बहुत कोशिश की पर वह रास्ता नहीं खुलवा पाई। क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वयं आदेश देने के बजाए पुलिस के कंधों पर शाहीन बाग का धरना समाप्त कराने की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इसके बाद यह मामला आज 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में उठा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया। यह जरूर कहा कि आंदोलन करना लोगों का अधिकार है। परंतु इससे नागरिकों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। कोई रास्ता अनंत काल के लिए नहीं रोका जा सकता।
जब हम शाहीन बाग की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि शाहीन बाग की तर्ज पर देश भर में जितने भी सीएए के खिलाफ आंदोलन चल रहा है उससे है।
सुप्रीम कोर्ट ने फलसफा खूब झाड़ा पर हल कोई नहीं निकाला। गेंद फिर पुलिस के पाले में फेंक दी। सुप्रीम कोर्ट फिलहाल कोई आदेश देने की स्थिति में भी नहीं था क्योंकि उसके समक्ष सीएए कानून की वैधता से संबंधित कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनपर पूरी सुनवाई के बाद ही वह कोई आदेश पारित करेगी।
जनता पिछले 58 दिन से जाम से जूझ रही है और दिल्ली की पुलिस को यह नहीं सूझ रहा है कि शाहीन बाग का धरना सड़क से कैसे हटवाया जाए। जब कोर्ट ने आंदोलन के अधिकार को मान लिया है तो जाहिर है पुलिस आंदोलन बन्द नहीं करा सकती।
पर आम नागरिकों को जाम से निजात दिलाने के लिए आंदोलनकारियों को आंदोलन स्थल शिफ्ट करने या सड़क से खिसक कर फुटपाथ पर या पार्क में धरना देने की सलाह दे सकती है। पर एक बात तो तय है कि ये आंदोलन अब लंबे समय तक चलेगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस के हाथ में ऐसा कोई डंडा नहीं दिया है, जिससे वह आंदोलनकारियों को डरा धमका कर धरना समाप्त करने के लिए मजबूर कर सकती है।
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी सहित 42 लोगों की तरफ से दायर एक याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, जिसमें शाहीन बाग के बंद पड़े रास्ते को खुलवाने की मांग की गई थी। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि इस पूरे मसले में हिंसा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज या हाईकोर्ट के किसी मौजूदा जज द्वारा निगरानी कराई जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया तथा मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी तक टाल दी। दूसरी ओर आज सीएए के विरोध में जामिया मिलिया के छात्रों ने मंडी हादस से संसद तक मार्च निकाला। देश के दूरदराज इलाके से आए नागरिकों ने आज शाहीन बाग पहुंचकर प्रदर्शनकारियों का मनोबल बढ़ाया। अब यह पूरा आंदोलन केंद सरकार के लिए पक्का सिर दर्द बन गया है। क्योंकि प्रदर्शनकारी धरना खत्म करने को तैयार नहीं हैं और दिल्ली पुलिस लाठी-डंडे के बल पर धरना खत्म कराने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है।
प्रदर्शनकारी जिद्द पर अड़े हैं कि जब तक सीएए कानून वापस नहीं होगा तब तक धरना खत्म नहीं होगा। देखना होगा कि किसकी हठ सफलीभूत होती है। अगर सरकार को पीछे हटना पड़ा तो उसकी बहुत किरकिरी होगी और यदि आंदोलनकारियों ने आंदोलन वापस लिया तो भविष्य में किसी भी मुद्दे पर आंदोलन करने की जनता की ताकत बहुत कम हो जाएगी, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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