न्यूज डेस्क
राजनीतिक दलों को बखूबी एहसास होता है कि वह चुनाव में जीत रहे हैं या नहीं। ऐसा ही कुछ कांग्रेस के साथ है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्या हासिल होगा उसे बखूबी एहसास है। शायद इसीलिए वह आम आदमी पार्टी की जीत में या यह कहें कि भारतीय जनता पार्टी की हार में अपनी सफलता देख रही है।
दिल्ली की सत्ता में लगातार 1998 से 2013 तक रहने वाली कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव के दंगल में कहीं दिखाई नहीं दी। पूरे चुनाव अभियान के दौरान आम आदमी पार्टी और बीजेपी ही एक-दूसरे को चुनौती देते नजर आए। दिल्ली के पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा दिखाई नहीं दिया। यह कांग्रेस की हताशा थी या रणनीति का हिस्सा कि मतदान के चार दिन पहले राहुल गांधी ने अपनी पहली चुनावी रैली की।
इस रैली से कांग्रेस ने क्या संदेश दिया? क्या दिल्ली उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं है या फिर यह कि वो दिल्ली चुनाव से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर चुकी है?
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राजनीति में बयान और भाव भंगिमा की बहुत अहमियत होती है। दिल्ली में कांग्रेस ने अपने बयान और भाव भंगिमा से जाहिर कर दिया कि वह चुनाव में कहीं है ही नहीं।
कांग्रेस के पास नेताओं की फौज है, लेकिन दिल्ली चुनाव प्रचार के लिए इनके पास समय नहीं था। बड़े नेता ट्विटर पर ही चुनाव प्रचार करते दिखे। शाहीन बाग जाने के लिए उनके पास समय था लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार के लिए समय नहीं है।
दरअसल कांग्रेस को इसका कोई एहसास नहीं है कि उनके इस आचरण से उनका जनाधार खत्म हो रहा है। मतदाताओं के मन में कांग्रेस की छवि कैसी बन रही है कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं है।
यह कांग्रेस का दुर्दिन ही है कि पिछले दो लोकसभा चुनाव में वह एक मजबूत विपक्ष होने के लायक पर्याप्त संख्या बल भी नहीं जुटा पाई और अब दिल्ली विधानसभा चुनावों में सत्ता तो दूर की बात है, अपना वजूद तक नहीं तलाश पा रही। यदि कांग्रेस दिल्ली में चुनाव सिर्फ रस्म अदायगी के लिए लड़ रही है तो यह दुखद है।
पिछले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखे तो कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह भाजपा की हार में ही अपनी सफलता देख रही है। उसे सत्ता से सरोकार नहीं है, उसे बस बीजेपी की हार से सरोकार है। झारखंड और महाराष्ट्र में वह सहयोगी पार्टी बनकर सत्ता में है।
महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए उसने अपने धुर विरोधी शिवसेना को समर्थन कर दिया। उसके पहले कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए अपने से कम सीट जीतने वाली जेडीएस को मुख्यमंत्री बना दिया था। थोड़ा और पीछे चले तो गुजरात में हारने के बावजूद कांग्रेस ने जश्न मनाया था क्योंकि उन्होंने बीजेपी की कुछ सीटों पर कब्जा जमा लिया था।
फिलहाल कांग्रेस दिल्ली चुनाव में क्या गुल खिलायेगी यह 11 फरवरी को पता चलेगा लेकिन भाजपा की हार में अपनी जीत तलाशते-तलाशते कांग्रेस अब उस मोड़ पर आ गयी है जहां वो दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत में अपनी सफलता तलाश रही है।
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