सुरेंद्र दुबे
आखिर राम मंदिर बनाने की जिम्मेदारी निभाने के लिए केंद्र सरकार ने ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी। इस ट्रस्ट का नाम है ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’। इस 15 सदस्यीय ट्रस्ट में एक दलित सदस्य होगा तथा इसमें राजनैतिक दल का कोई सदस्य नहीं होगा।
ट्रस्ट की घोषणा दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक तीन दिन पहले की गई है। ताकि हिंदू-मुस्लिम के सांप्रदायिक वातावरण के साथ ही चुनावी माहौल को राममय भी बनाया जा सके। इसीलिए जब प्रधानमंत्री ने लोकसभा में ट्रस्ट के गठन की घोषणा की, तो लोकसभा में जमकर ‘जय श्री राम’ के नारे लगे। देखते हैं कि भगवान राम क्या भाजपा की दिल्ली चुनाव में नइया पार लगा पाते हैं कि नहीं।
पिछले एक महीने से साधू-संत राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट की घोषणा किए जाने की गुहार लगा रहे थे। पर भाजपा उसके लिए सही समय का इंतेजार कर रही थी। अब इससे ज्यादा सही समय क्या हो सकता है कि आठ फरवरी को दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान होना है और पांच फरवरी को ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी गई।
वैसे भी कल छह फरवरी को शाम पांच बजे से दिल्ली चुनाव प्रचार खत्म हो जाएगा, इसलिए आज ही मौका था कि ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी जाए। ताकि चुनाव आयोग कोई उंगली न उठा सके। वैसे चुनाव आयोग कि उंगली में अब कोई दम नहीं रहा, पर चलो अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग की टूटी उंगली पर सरकार ने कोई प्रहार नहीं किया।
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण की अनुमति सुप्रीम कोर्ट से मिली है, इसलिए भाजपा युद्ध में विजय जैसा उदघोष नहीं कर सकती है। पर यह भी एक सच है कि भाजपा ही अपने आनुसांगिक संगठनों के बल पर वर्षों से अयोध्या में श्री राम जन्म स्थान पर भव्य मंदिर बनाने का आंदोलन चलाती आ रही है। भाजपा की इच्छा तो थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में कानून बनाकर राम मंदिर का निर्माण कराए। परंतु नरेंद्र मोदी ने कट्टरपंथियों की यह बात नहीं मानी और अदालत के फैसले का इंतेजार करने को कहा।
हम अदालत के फैसले से सहमत हों या असहमत पर निर्णय मंदिर के पक्ष में आ ही गया और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन सरकार से लेकर मस्जिद बनाने का फरमान सुना दिया। क्या ही अच्छा होता कि यह काम हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने आपसी सहमति से कर लिया होता, जिसके कई बार प्रयास किए गए। अगर ऐसा होता तो हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की एक अनोखी आकाश गंगा पूरी दुनिया में तैरत दिखाई पड़ती।
चलिए फिर दिल्ली विधानसभा चुनाव की ओर चलते हैं। भाजपा ने पूरी चुनावी डुग-डुगी शाहीन बाग के इर्द-गिर्द बजाई। उन्हें मालुम है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आम जनता से जुड़े कामों का पलड़ा इतना भारी है कि उसके मुकाबले तराजू के दूसरे पलडे पर उनके पास रखने को कुछ भी नहीं है।
पर राजनैतिक पार्टियां इतनी आसानी से हार नहीं मानती हैं। भाजपा ने तराजू के दूसरे पलड़े पर शाहीन बाग को रख दिया। प्रधानमंत्री व देश के गृहमंत्री सहित दर्जनों भाजपाई दिग्गज गली-गली तराजू को कंधे पर लटकाए घूमते रहे। जब जरूरत पड़ी तो पसंगे के रूप में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो…’ जैसे अभद्र नारे रख दिए। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना व राष्ट्र प्रेम सब कुछ चुनावी पलड़े पर रख दिया।
और तो और कल से हनुमान जी को भी चुनाव मैदान में मौहरा बना दिया गया। अरविंद केजरीवाल को लगा कि कहीं हिंदू नाराज न हो जाएं इसलिए उन्होंने बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ किया। भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी हनुमान चालिसा पढ़ते नजर आए। हो सकता है वो ये भी बता दें कि हनुमान जी पूर्वांचल के रहने वाले थे।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हनुमान जी की जाति व गौत्र भी इस पार्टी ने बताए थे। चलिए साम-दाम-दंड-भेद…शाहीन बाग, सीलमपुर, जामिया, जेएनयू जैसे तमाम माप तौल के बांट तराजू के एक पलड़े पर रख दिए गए हैं। देखते हैं कि राम मंदिर ट्रस्ट भी एक पलड़े पर रखने के बाद पलड़ा किसका भारी रहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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