न्यूज डेस्क
एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश कर कई घोषणाएं की। इसमें सबसे ज्यादा जो चर्चा में है वह है भारतीय जीवन बीमा निगम ( (एलआईसी)। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार एलआईसी में अपनी आशिंक हिस्सेदारी बेचेगी। इसको लेकर आम लोगों से लेकर बिजनेस जगत में चर्चाएं शुरु हो गई हैं।
जानकारों की माने तो जीवन बीमा निगम को लेकर सरकार ने जो फैसला किया है, ऐसा करना आसान नहीं होगा। इसको बेचने में कई कानूनी अड़चने भी आएंगी।
तीन जनवरी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि उनकी पार्टी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के लिस्टिंग (विनिवेश) प्रस्ताव का विरोध कर सकती है। चिदंबरम ने कहा कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद एलआइसी लाभ में है।
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बजट में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा था कि एलआईसी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराया जाएगा। सूचीबद्धता से कंपनियों में वित्तीय अनुशासन बढ़ता है। सरकार का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिए एलआईसी में अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव है।
गौरतलब है कि अभी एलआईसी की पूरी हिस्सेदारी सरकार के पास है। वहीं इस बारे में एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए विनिवेश सचिव तुहीन कांत पांडेय ने कहा, च्च्बजट घोषणा और एक्शन प्लान में काफी अंतर होता है। कई बार राजनीतिक फैसले पहले लेने पड़ते हैं। क्या बजट के निर्णय बिजनेस प्लान को तय करेंगे?
जानकारों का कहना है कि एलआईसी के पास 30 करोड़ पालिसी होल्डर्स हैं। अगर सरकार अपनी घोषणा के मुताबिक काम करती है तो इससे पालिसी होल्डर्स को फायदा होगा। यह बेहतर सुशासन, अधिक खुलापन, जिम्मेदारी और उच्च स्तर की पारदर्शिता को लाएगी।
जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार को इतने बड़े स्तर पर कंपनी का विनिवेश करने के लिए कई प्रक्रियाओं और उसके समयसीमा से गुजरना पड़ेगा। इसके साथ ही पूरी प्रक्रिया बाजार के हालात पर निर्भर करेगी। फिलहाल इसको पूरा करने में कम से कम एक साल जरूर लगेंगे।
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