सुरेंद्र दुबे
पूरे देश में एक लीला चल रही है। मुख्य लीला या कहें कि राम लीला दिल्ली के शाहीन बाग में चल रही है। मुद्दा है देश में नागरिकता कानून को लेकर जारी किया गया संसोधन। सरकार कह रही है कि रामलीला ऐसे ही चलेगी। पर शाहीन बाग पर बैठी महिलाएं कह रहीं हैं कि रामलीला ऐसे नहीं चलेगी।
इस एक रामलीला की देखादेखी अकेले दिल्ली में छह-सात और लीलाएं चल रही हैं। पूरे देश में ऐसी सैकडों लीलाएं चल रही हैं, जो कम से कम आठ फरवरी तक जरूर चलेंगी, क्योंकि उस दिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। यानी उसी दिन पता चलेगा कि लगभग दो महीने से चल रही चुनावी लीला में आखिर लीला (सीता) स्वयंबर में किसके गले में माला डालेंगी।
शाहीन बाग पूरे देश में नागरिकता कानून के विरोध का प्रतीक बन गया है। देश की जिस भी स्थान पर नागरिकता कानून के विरोध में लोग धरना दे रहे हैं उस स्थान को शाहीन बाग की संज्ञा दे दी गई है। चूंकि शाहीन बाग के आंदोलन की शुरूआत महिलाओं ने की है इसलिए इसे संविधान की रक्षा करने के लिए महिलाओं के घरों से बाहर निकल आने या कहें तो सिविल नाफरमानी आंदोलन का सूत्र पात भी माना जा रहा है। जो कभी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफत में गांधी जी के नेतृत्व में हिंदुस्तानी किया करते थे।
शाहीन बाग में चल रहा धनुष यज्ञ त्रेता युग में हुए धनुष यज्ञ से बिल्कुल अलग है। होना भी चाहिए। कल युग में त्रेता युग जैसा धनुष यज्ञ कैसे हो सकता है। इस आधुनिक धनुष यज्ञ में चुनाव रूपी सीता को जीतना सभी चाहते हैं। पर धनुष तोड़ने के लिए शाहीन बाग जाने की हिम्मत किसी में नहीं है।
भाजपा की ओर से गृहमंत्री अमित शाह सहित सैकड़ों नेता दिन रात शाहीन बाग की शान में कसीदे कढ़ रहे हैं। पर कोई भी शाहीन बाग जाने की हिम्मत नहीं दिखा रहा है। दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी शाहीन बाग को लेकर लार टपक रही है। पर लीला स्थल पर जाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही हैं। लीला के लिए स्टेज सजाए शाहीन बाग की महिलाएं रोज इंतजार करती हैं कि कोई तो राजा आकर अपना बाहुबल दिखाए और सीता को ब्याह कर ले जाए।
त्रेता युग में जब सीता के विवाह के लिए महाराजा जनक ने धनुष यज्ञ का आयोजन किया था तब दूर-दूर देशों के राजा अपना बाहुबल दिखाने और धनुष भंग करने लीला स्थल पर पहुंचे थे। जब सभी राजा असमर्थ हो गए तो भगवान राम ने धनुष भंग कर सीता का वरण किया था। पर इस कलयुगी धनुष यज्ञ लीला में स्थिति बिल्कुल विपरित है। बड़े-बड़े राजा धनुष यज्ञ स्थल पर जाए बगैर धनुष भंग कर सीता का वरण करने के दुष्चक्र रचने में लगे हुए हैं।
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सत्ता धारी दल यानी कि भाजपा तो इस जुगाड़ में है कि धनुष यज्ञ होने ही न पाए। इसलिए धनुष यज्ञ को बदनाम करने का सिलसिला पिछले लगभग दो महीनों से जारी है। जब बदनामी से लीला नहीं रूकी तो पिस्टलधारियों को डराने व अफरा-तफरी फैला कर धनुष यज्ञ लीला रद्द कराने की साजिश शुरू कर दी गई। दो बार जामिया मिलिया में और एक बार शाहीन बाग में गोली चली। पर धनुष यज्ञ लीला यथावत जारी है।
शाहीन बाग में कल हिंदू सेना के 100-150 कार्यकर्ताओं ने रास्ता खुलवाने के नाम पर हंगामा मचाया। पर धुनष यज्ञ लीला यथावत जारी है। कल चुनाव आयोग ने भी धरना स्थल का दौरा किया और धरना यानी कि लीला समाप्त न करा पाने के जुर्म में वहां के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल को हटा दिया। अब दिल्ली के पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने महिलाओं से लीला समाप्त करने की अपील की है। पर ये आलेख लिखे जाने तक धनुष यज्ञ लीला जारी थी।
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दिल्ली पुलिस जो जेएनयू, जामिया इस्लामिया और शाहीन बाग कहीं पर भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकी, उसके भरोसे धनुष यज्ञ लीला भंग कराना आसान नहीं लगता। दिल्ली पुलिस तो स्वयं दिल्ली हाईकोर्ट के पास गुहार लगाने गई थी पर कोर्ट ने गेंद दिल्ली पुलिस के ही पाले में डाल दी। धरना खत्म करा सकते हैं तो कराई वरना हमारा समय मत बर्बाद करिए।
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केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर तो लीला स्थल पर बैठे लोगों को गद्दार बताकर गोली मारने तक का सुझाव दें चुकें हैं। पर लीला करने वाले टस से मस होने को तैयार नहीं हैं। आठ फरवरी को मतदान है। लगता है तब तक लीला को भंग करा पाना टेढ़ी खीर है। चुनाव में सत्ता रूपी सीता तो किसी न किसी की हो ही जाएगी पर शायद यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाए कि धनुष यज्ञ लीला संवैधानिक थी या असंवैधानिक।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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