योगेश बंधु
आज बजट सत्र के पहले दिन संसद में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने 31 आर्थिक सर्वेक्षण 2020 पेश किया गया। चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर का आकलन किया गया हैजिसके अगले वित्त वर्ष में बढ कर 6 से 6.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है।
आर्थिक सर्वेक्षण-2020 में कहा गया है कि पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य हासिल करनासरकार के लिए चुनौती होगा, इसके लिए वैश्विक वृद्धि दर में कमजोरी को मुख्य कारण बताया गया है। आंतरिक कारणो में वित्तीय क्षेत्र की दिक्कतों के चलते निवेश में कमी को मुख्य कारण चिन्हित किया गया है।
लेकिन आर्थिक सुस्ती के लिए इतना पर्याप्त नही है, नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में नगदी की कमी , जी एस टी के क्रियान्वयन में व्यावहारिक दिक़्क़तें और तमाम सुधारो के बाद भी प्राथमिक क्षेत्र का रफ़्तार नही पकड़ना ज़्यादा चिंताजनक है।
ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले 2017 से पहले जब तक वैश्विक उत्पादन में गिरावट नहीं आईथी, भारत दूसरे देशों से ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। माँग में इस कमी का ही असर 2024-25 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य पर पड़ा है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में सकल घरेलू उत्पाद में अपेक्षित वृद्धि की संभावना कम ही है,
ऐसे में 5 ट्रिलियनडॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य एक चुनौती बना रहेगा है। वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुएइस वर्ष के लिए भारत के इसके बावजूद भी पिछले पांच साल की तरह यदि वार्षिक औसतवृदि्ध की दर 7.5 प्रतिशत और मुद्रास्फीति की वार्षिक औसत दर 4.5 रहती है तो यह लक्ष्यहासिल किया जा सकता है।
आर्थिक सर्वेक्षण में उत्साहजनक बात ये है कि अर्थव्यवस्था में नियमित क्षेत्र का विस्तार हो रहाहै और संगठित/नियमित क्षेत्र के रोजगार का हिस्सा 2011-12 के 17.9 प्रतिशत से बढ़कर2017-18 में 22.8 प्रतिशत पर पहुंच गया है और नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों के हिसाब से 2011-12 से 2017-18 के दौरान शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के 2.62 करोड़ नएअवसरों का हुआ सृजन हुआ है।
इसके साथ ही वित्त वर्ष 2011-12 से 2017-18 के बीचनियमित रोजगार में महिला श्रमिकों की संख्या आठ प्रतिशत बढ़ीं है।आर्थिक सर्वेक्षण के कुछ अन्य उत्साह जनक बातो में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, श्रम आधारितनिर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के समान भारत में असेंबल इन इंडिया और मेक इन इंडियायोजना को बढ़ावा देकर निर्यात में वृद्धि आदि तार्किक लगता है।
आर्थिक सर्वेक्षण में सबसे महत्वपूर्ण संकेत भविष्य में निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बाजार में सरकार के अधिक दखल से आर्थिक स्वतंत्रताप्रभावित होती है और सरकार को उन क्षेत्रों की बाकायदा पहचान करनी चाहिए जहां सरकारीदखल अनावश्यक है और उससे व्यवधान होता है।
इसके लिए स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि आय वितरण में समानता के लिए निजी क्षेत्र को पूँजी जमा करने की छूट देनी चाहिए। इसके लिए समीक्षा में वेल्थ क्रिएशन, कारोबार के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में भरोसामजबूत करने पर जोर दिया गया है। ये ऐसी दोधारी तलवार है जिसमें नीतियो में स्पष्टता के अभाव में नुक़सान ज़्यादा और फ़ायदे कम हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि सरकार को अपने मजबूत जनादेश का उपयोग करकेतत्परता के साथ सुधारों को अमल जाए, ताकि वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था को मजबूती केसाथ उभर सके। दूसरे शब्दों में आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए दूरगामी उपायदेखने को मिल सकते हैं, जिसके बदले में आम आदमी को किसी तात्कालिक राहत की उम्मीद कम ही दिखती है।