न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। देश के लोगों की मन की बात तब सामने निकलकर आयी जब एक सर्वे की रिपोर्ट में ये पता चला कि आम आदमी पर महंगाई और आर्थिक मंदी की दोहरी मार पड़ रही है। जिसे वे खुलकर कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे है।
हालत यह है लगभग 66% लोगों को अपने घर का खर्च चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि वेतन एक तरफ बढ़ नहीं रहा है बल्कि घट रहा है, लेकिन महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रही है, जिसका असर उनके खर्चों पर दिख रहा है।
आईएएनएस-सी वोटर सर्वेक्षण के सर्वे में शामिल कुल 65.8% उत्तरदाता मानते हैं कि हाल के दिनों में उन्हें दैनिक खर्चों के प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
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सर्वेक्षण के अनुसार बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में आर्थिक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं, क्योंकि वेतन में वृद्धि हो नहीं रही, जबकि खाद्य पदार्थों सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं।
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पिछले साल जारी की गई बेरोजगारी दर का आंकड़ा 45 सालों की ऊंचाई पर है। मजे की बात ये है कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पर भी लगभग 65.9% लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चों का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं।
हालांकि 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। 2015 में लगभग 46.1% लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चों का प्रबंधन करने में दबाव महसूस कर रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि चालू वर्ष के लिए लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण में काफी वृद्धि देखी जा रही है।
इससे पता चलता है कि लोग 2020 में अपने जीवन की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं देख रहे हैं, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की संभावना और हालात में सुधार को लेकर नकारात्मक बने हुए हैं।
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सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 30% उत्तरदाताओं को लगता है कि खर्च बढ़ गया है, मगर फिर भी वे प्रबंधन कर पा रहे हैं। यह आंकड़ा 2019 की तुलना में काफी कम है, जब 45% से अधिक लोगों ने महसूस किया था कि वे खर्च बढ़ने के बावजूद प्रबंधन करने में सक्षम हैं।
इसके अलावा, 2.1% लोगों ने माना कि उनके व्यय में गिरावट आई है, जबकि इतने ही लोगों ने इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की।बजट आने में सिर्फ दो दिन बाकी है ऐसे में सी-वोटर के सर्वे में 48.4 फीसदी लोगों ने माना है कि आम आदमी के समग्र जीवन में बीते एक साल में ‘गिरावट’ आई है।
ऐसे में भारी उम्मीद है कि मोदी सरकार जारी मंदी को मात देने के उपायों के साथ आ सकती है, जो अर्थव्यवस्था को पंगु बनाती प्रतीत हो रही है। सी-वोटर ट्रैकर सर्वे सभी वर्गों के 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के सीएटीआई साक्षात्कार पर आधारित है।
ट्रैकिंग पोल का सैंपल साइज 4,292 है और ट्रैकिंग पोल फील्ड का काम जनवरी 2020 के तीसरे व चौथे हफ्ते में किया गया। कुल मिलाकर सौ बात की बात कही जाये तो गलत नहीं होगा की अब आमदनी अठन्नी हो रही है और खर्चा रुपइया है।
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