केपी सिंह
एक तो वे राजनैतिक शादियां होती हैं जो किसी राजनैतिक शहंशाह के शहजादे या शहजादी की शादी से संबंधित होती हैं। जैसे कि मुलायम सिंह यादव के पौत्र तेजू की शादी और लालू यादव के बेटे-बेटियों की शादियां। इन शादियों में जश्न के साथ-साथ राजनैतिक समीकरण भी गुने-बुने जाते हैं। जैसे कि तेजू की शादी में नरेंद्र मोदी को बुलाकर सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक समीकरणों की ऐसी गुप्त गोदावरी बहायी कि जिसमें धर्म निरपेक्ष राजनीति का पूरा उफान बह निकला। नरेंद्र मोदी को उत्तर भारत में चक्रवर्ती सम्राट का एकछत्र प्रभुत्व हासिल कराने में यह शादी भी एक प्रमुख मुकाम साबित हुई जिसे इतिहास बाद में याद करेगा।
कई निशाने साध गया शादी समारोह
लेकिन बुंदेलखंड के झांसी में सेमरी गांव में 28 जनवरी को हुआ विवाह समारोह राजनीतिक शादी के रूप में अनोखा रहा। इस शादी में शामिल होकर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों अखिलेश यादव ने जहां बुंदेलखंड में अपनी पार्टी के अंदर बाजी पलटने का सूत्रपात दिखाया वहीं उन्होंने कई और निशाने भी साधे।
स्खलन की ओर बढ़ती बहुजन समाज पार्टी का दूरगामी हश्र भांपकर बहुजन एजेंडे को हाईजैक करने की उनकी रणनीति इस दौरान साफतौर पर झलकी। जिसे लेकर प्रदेश भर में नई राजनीतिक उथल-पुथल की संभावना के मददेनजर सियासी पंडितों के कान खड़े हो गये हैं।
जब अखिलेश को चंद्रपाल के कार्यक्रम में पहुंचने की नही मिली फुर्सत
कुछ ही दिन पहले कृभको के राष्ट्रीय अध्यक्ष, राज्य सभा सदस्य और समाजवादी पार्टी के बेहद कददावर नेता चंद्रपाल सिंह यादव के सुपुत्र यशपाल सिंह यादव का विवाह हुआ था। विवाह समारोह तो राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुआ इसके दो दिन बाद झांसी में वर-वधू का आशीर्वाद समारोह उन्होंने धूमधाम से आयोजित किया। जिसमें हजारों की संख्या में लोगों की भव्य दावत उन्होंने कराई। लेकिन दोनों ही कार्यक्रमों में आने की फुर्सत अखिलेश यादव को नही मिली।
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इसके पहले चंद्रपाल सिंह यादव के सगे भाई शिशुपाल सिंह यादव के बेटे का भी विवाह समारोह पूरी तड़क-भड़क के साथ झांसी में आयोजित हुआ था। वहां भी अखिलेश का चेहरा नजर नही आया। दूसरी ओर 28 जनवरी को जिस इंजीनियर दिलीप यादव की शादी में अखिलेश यादव पूरी तैयारी के साथ शामिल होने पहुंचे उसका अभी तक कोई परिचय नही है। अलबत्ता हर राजनैतिज्ञ बिना राजनीतिक गुणा-भाग के कोई काम नही करता सो इस शादी में उनकी दिलचस्पी के निहितार्थ ढूढ़े जाना स्वाभाविक है।
जेएनयूवाद की राजनीति को अखिलेश ने दी हवा
इस विवाह समारोह के दूल्हा डा. दिलीप यादव लिखते थे जो जेएनयू के पीएचडी स्कालर हैं। जेएनयू इस समय सारे देश में चर्चाओं के केंद्र में है। वितंडा के मायावी युद्ध में दुनियां भर की और आज तक की सीआईए सहित सारी शातिर संस्थाओं और व्यक्तित्वों को पीछे छोड़ चुकी सत्तारूढ़ दल के आईटी सेल की मशीनरी ने देश के हर कोने में यह धारणा फैला दी है कि जेएनयू में देशद्रोह और चरित्रहीन लोग पढ़ते हैं जबकि जेएनयू में एडमीशन के लिए आरएसएस के लोग अपनी संतानों के मेधावी होने पर सबसे ज्यादा पापड़ बेलते रहे हैं। जाहिर है कि इस गलत धारणा के खिलाफ जेएनयूवाद के नाम से नया धुव्रीकरण भी हो रहा है। जिसमें धर्म निरपेक्ष राजनीति के फिर से उठ खड़े होने के रक्तबीज तलाशे जा रहे हैं।
जेएनयू की यादव छात्र संघ अध्यक्ष
जेएनयू की छात्रसंघ अध्यक्ष आइशे घोष बंगाल की यादव हैं। जिनसे जेएनयूवाद की राजनीति पर पकड़ बनाने के लिए अखिलेश यादव ने अपने तार जोड़ रखे हैं। डा. दिलीप यादव ने जब अपनी सहपाठी इंजीनियर पल्लवी से जीवन साथी का संबंध जोड़ने की कोशिश की तो उनके सामने बड़ा धर्म संकट पैदा हो गया।
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दलित बिरादरी की पल्लवी से विवाह रचाने पर बुंदेलखंड के उनके परिवार के रूढि़वादी समाज में उसके लिए अस्तित्व का सवाल खड़े होने की आशंका मड़राने लगी। इससे भयभीत दिलीप जब विचलित हो रहे थे तो आइशे ने उनको आगे बढ़ने का हौसला दिया और जेएनयू के छात्रों ने उनके विवाह समारोह की कमान थाम ली।
दिलीप के संकट का ऐसे हुआ समाधान
आइशे ने दिलीप को भरोसा दिलाया कि शादी समारोह उन्हीं के घर से आयोजित कराया जायेगा जिसमें यादव समाज के गाड फादर को लाकर वे इसे ऐसी स्वीकृति दिलायेगीं जिससे कोई विरोध में चूं-चपड़ न कर सके बल्कि उनकी शादी पूरे यादव समाज के लिए एक उदाहरण बन जाये। अखिलेश यादव को यही चरितार्थ करने के लिए उन्होंने बुलाया।
बहनजी के पेट में मरोड़ पैदा कर गये अखिलेश
विवाह समारोह में अनोखा नजारा देखने को मिला। दूल्हा-दुल्हन के मंडप के केंद्र में संविधान की प्रस्तावना का बैनर लगा था। इसके अलावा पूरे परिसर में चुन-चुन कर उन बहुजन महापुरुषों के चित्र लगाये गये थे जिन पर बसपा अपनी बपौती मानती है। इसलिए अखिलेश के इस पैतरे से बहनजी के पेट में निश्चित रूप से मरोड़ पैदा होगी।
विवाह समारोह में बहुजन चित्रावली
हालांकि इस विवाह समारोह में जहां सम्राट अशोक, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, ज्योतिवा फुले, सावित्री बाई फुले, वीपी मंडल, चौ. चरण सिंह, ललई यादव, फूलन देवी, रामस्वरूप वर्मा, बाबू जगजीवन राम, बाबू जगदेव सिंह के अलावा सवर्ण होने के बावजूद बैकवर्ड राजनीति का सबसे पहले जोरदार शंखनांद करने वाले महान विचारक डा. राममनोहर लोहिया के चित्र लगे थे। वहीं मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर सवर्ण समाज में सबसे बड़े खलनायक बनने की कीमत चुकाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को याद करने की कोई जरूरत नही समझी गई थी। उसी तरह से बहुजन महापुरुषों की इस चित्रावली को सजाने में बसपा के संस्थापक कांशीराम को भी परे कर दिया गया था।
वैचारिक क्रांति के रूप में अखिलेश का प्रस्तुतीकरण
अखिलेश यादव ने भी इस अवसर पर इस शादी को एक बड़ी वैचारिक क्रांति के रूप में प्रस्तुत करने में कोई कसर नही छोड़ी। अखिलेश यादव ने कहा कि जब तक हम लोग जातियों को नही तोड़ेगें तब तक आगे नही बढ़ सकते। उन्होंने डा. दिलीप और पल्लवी की शादी को जाति धर्म के बंधन तोड़ने वाला ऐतिहासिक कदम बताया और इसके लिए दोनों की पीठ थपथपाई। संभवतः पल्लवी बौद्ध हैं जिसका इशारा अखिलेश ने अपने भाषण में किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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