राजेन्द्र कुमार
यूपी आईएएस एसोसिएशन देश के किसी राज्य में आईएएस का सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन के हर फैसले पर देश भर के आईएएस चर्चा करते हैं। करें भी क्यों ना। यही वह संगठन है, जिसने अपने संवर्ग में सबसे भ्रष्ट अफसर को चिन्हित करने की पहल की थी। जिसमे यूपी के तीन सबसे भ्रष्ट अफसरों के चयन को लेकर गुप्त वोटिंग हुई थी। इस प्रक्रिया से चिन्हित तीन आईएएस अफसरों के नाम सरकार को भेजे गए थे। इस समूचे अभियान में शामिल रहे और इसका समर्थन करने वाले युवा अफसरों की तब देश भर से बधाई मिली थी।
तब के युवा आईएएस अफसर आज सरकार की प्रमुख कुर्सियों पर कार्यरत हैं। ऐसे में सूबे की आईएएस एसोसिएशन को मजबूती मिलनी चाहिए थी। लेकिन अब ना तो सरकार में और ना ही आईएएस संवर्ग में किसी को भी आईएएस एसोसिएशन की परवाह है।
यही वजह है कि हर वर्ष दिसंबर में आईएएस वीक का आयोजन करने वाली आईएएस एसोसिएशन अभी तक सरकार से आईएएस वीक आयोजित करने का फैसला तक नही करवा सकी है। जबकि अखिलेश सरकार में यह आयोजन भव्यता से आयोजित होता था। इस आयोजन के दौरान तमाम तरह की गतिविधियाँ होती थी। मुख्यमंत्री इलेवन और आईएएस इलेवन के बीच क्रिकेट मैच होता था।
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मैच की कमेंट्री करते हुए एक आईएएस अफसर खुलकर बोलते थे। और खेल के दौरान मुख्यमंत्री तथा राजा भैय्या जैसे मंत्रियों के कैच छोड़ने वाले अफसरों की तैनाती अच्छे पदों पर की जाती थी। कुल मिलकर आईएएस वीक का आयोजन सरकार और आईएएस अफसरों के बीच संबंध बेहतर करने का मौका होता था।
परन्तु इस बार अभी तक आईएएस एसोसिएशन को आईएएस वीक आयोजित करने के लिए समय नही मिला है। जिसके लेकर अब यह कहा जा रहा कि कभी सूबे का सबसे मजबूत माना जाने वाला यह संगठन अब डिफंग हो चुका है। प्रवीर कुमार जब से एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से हटें है, उसके बाद से इस संगठन और सरकार के बीच संवाद घटा है, जिसे भांपते हुए सूबे के आईएएस अफसर अपने संगठन को मजबूत करने में रूचि नहीं ले रहें है।
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आईएएस एसोसिएशन ऐसे में अब कहा जा रहा है कि जो संगठन अपनी संवर्ग की हर साल होने वाले कार्यक्रम को लेकर पहल नही कर रहा वो एक रीढ़ विहीन संगठन में तब्दील हो गया है। और अब इसमें वह बात नहीं है जो नब्बे के दशक में थी।
पूजा कराओ
पीसीएस एसोसिएशन फिर विवादों में घिर कर चर्चा में है। पन्द्रह साल पहले इस एसोसिएशन का गठन हुआ था। तब से लेकर अब तक ये एसोसिएशन किसी ना किसी विवाद के चलते सुर्ख़ियों में रहा है। हालांकि यह एसोसिएशन सबका साथ और सबका विकास की बात करता है, लेकिन चंद पीसीएस अफसर की जागीर बन कर रह जाता है। बीते 15 सालों में पीसीएस एसोसिएशन में जहां कई विद्रोह हुए वहीं चेहरे बदले, लेकिन इसके बाद भी चंद पीसीएस अफसरों की मुठ्ठी से वह बाहर निकल पाया है।
अब फिर एसोसिएशन चर्चा में है तो इसकी वजह है, एसोसिएशन के अध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करते हुए पीसीएस अधिकारी समीर वर्मा का ऑडिटर के पद से इस्तीफा देना। वर्मा ने अध्यक्ष और सचिव से भी इस्तीफा मांगा है। इसके बाद एसोसिएशन के संयुक्त सचिव कपिल सिंह ने अध्यक्ष इंद्रमणि त्रिपाठी को सात पेज का पत्र लिखकर विद्रोह के बिगुल के स्वर को और तेज कर दिया है।
इनके अलावा कई पीसीएस अफसरों ने अध्यक्ष और सचिव की कार्यप्रणाली पर तीखे सवाल उठाए हैं। इन अफसरों का कहना है कि एसोसिएशन के अध्यक्ष ने मात्र अपनी नगर आयुक्त की कुर्सी बचाए रखने के लिए पीसीएस एसोसिएशन को साइड लाइन कर दिया है। और वह पीसीएस अफसरों के उत्पीड़न पर चुप्पी साध लेते हैं।
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इस विवाद को पीसीएस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष चंद्र प्रकाश मिश्र ने यह कह कर और हवा दे दी कि जब तक पीसीएस एसोसिएशन के अफसर अपने निजी स्वार्थ को त्यागेंगे नहीं तब तक एसोसिएशन मजबूत नहीं हो सकती है। खैर इस विवाद को बढ़ते देख कर नाम ना छापने की शर्त पर राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव ने कहा कि लगता है, ज्योतिष के बताये समय पर पीसीएस एसोसिएशन का गठन नही हुआ था। शायद यही वजह है कि अपने गठन के बाद से ही यह एसोसिएशन विवादों में घिरी रहती है। इसलिए किसी काबिल ज्योतिष से पूछ कर एसोसिएशन के दोष निवारण संबंधी पूजा करायी जाये। अब देखना है कि एसोसिएशन के पदाधिकारी उनकी सलाह पर अमल करते हैं या नही।