जुबिली न्यूज़ डेस्क
देशभर में नागरिकता की प्रमाणिकता को लेकर बहस जारी है। संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन कर रहा है तो कोई उसका समर्थन कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरी बीजेपी यह समझाने का प्रयास का कर रही है कि, किसी भी भारतीय नागरिक को ‘कागज और दफ्तर’ के चक्कर में परेसान नहीं होना पड़ेगा। लेकिन एक ऐसा तबका भी है जिसे ये डर बना हुआ है कि, कहीं उसे देश से बाहर तो नहीं निकाल दिया जाएगा या फिर ‘डिटेंशन सेंटर’ में ना भेज दिया जाए।
सोचने की बात यह है कि, आखिर सीएए, एनपीआर और एनआरसी का विरोध कर रहे लोग अपने देश के मुखिया पर भरोसा क्यों नहीं कर रहे ? इसका जवाब ढूंढने के लिए बहुत बड़ा गणितज्ञ या राजनीतिज्ञ या फिर समाजशास्त्री होने की जरुरत नहीं है बल्कि इसे आप एक छोटी सी घटना से ही समझ सकते हैं।
यह भी पढ़ें : कपिल सिब्बल की चुनौती- CAA-NRC पर मुझसे डिबेट कर लें मोदी-शाह
जी हाँ, दरअसल उत्तर प्रदेश के अमेठी जनपद में एक ऐसा मामला सामने आया है जहाँ एक जिन्दा व्यक्ति को खुद के जिन्दा होने का प्रमाण देना पड़ रहा है। अब ऐसे में लोग मोदी जी पर भरोसा कर भी लें तो सवाल ये है कि, इस लचर सिस्टम पर भरोसा कैसे करें।
अमेठी के मुसाफिरखाना तहसील में वृद्ध मोहम्मद इदरीश को 2 साल पहले आरोपी व तहसील कर्मियों की मिलीभगत से जिन्दा होते हुए भी मृत घोषित किए जाने का मामला कोई पहला या नया मामला नहीं है। सच तो यह है कि, भ्रष्टाचार की चाह में साहब लोग इस तरह के कारनामे हर रोज, हर जगह और हर विभाग में करते हैं। यहां तक की इस मुद्दे पर फ़िल्में भी बन चुकी हैं कि, कैसे जिन्दा आदमी को मार के उससे वसूली की जाती है। अब ऐसे माहौल में लोग क्यों न डरें ?
यह भी पढ़ें : दिल्ली चुनाव के लिए हुए बीजेपी-जेडीयू गठबंधन पर उठा सवाल
‘साहब मैं जिन्दा हूँ’
बता दें कि जिले की मुसाफिरखाना तहसील में मंगलवार को तहसील दिवस में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया। एक वृद्ध ने आरोप लगाया है कि, 2 साल पहले आरोपी व तहसील कर्मियों की मिलीभगत से जीतेजी मृत घोषित कर दिया गया और सरकारी अभिलेखों में भी दर्ज कर दिया। मामला अमेठी के मुसाफिरखाना तहसील के बाजार शुक्ल के शेख पुर गांव का है।