Friday - 25 October 2024 - 6:28 PM

VIDEO: सरकार के आगे नहीं झुकेंगी लखनऊ के शाहीन बाग की महिलाएं

न्यूज डेस्क

दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले एक माह से आंदोलन कर रही महिलाओं ने शायद ही यह सोचा होगा कि उनके आंदोलन की आग इतनी जल्दी पूरे देश में फैल जायेगी, लेकिन ऐसा हो रहा है। धीरे-धीरे ही सही महिलाएं घर की देहरी पार कर अपने बच्चों की मुस्तकबिल के लिए नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ सड़क पर उतर रही है। सबसे बड़ी बात है कि आंदोलन करने वाली महिलाएं एक-दूसरे से ही हिम्मत-प्रेरणा ले रही हैं।

पिछले एक माह से इस कड़कड़ाती ठंड में शाहीन बाग में महिलाए केन्द्र सरकार के साथ-साथ मौसम के साथ लोहा लिए हुए हैं। इनके बुलंद हौसले की वजह से ही अब इस आंदोलन की आग उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र,  आंध्र प्रदेश और कोलकाता जैसे राज्यों तक पहुंच गई है। इसके साथ ही देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों के छात्र भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलनरत हैं।

पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और कानपुर में आम महिलाए सीएए के विरोध में पार्क में इकट्ठा हुई तो लोगों ने उन्हें बहुत तवज्जों नहीं दिया। पर एक सप्ताह नहीं बीता उंगलियों पर गिनी जाने वाली संख्या हजारों में तब्दील हो गई। फिर क्या था इनसे प्ररेणा लेकर लखनऊ के चौक स्थित घंटाघर पार्क में एक नया शाहीन बाग बन गया।

लखनऊ के घंटाघर पर प्रदर्शन करती महिलाएं।

लखनऊ जो कि यूपी की राजधान है और राजनीति का सबसे बड़ा राजनीति का केन्द्र है, इस धरने ने बीजेपी सहित सरकार के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी है। उन्हें डर है कि लखनऊ में दिल्ली का शाहीन बाग कहीं बन न जाए। जाहिर है कि इससे विपक्ष की बाछे खिल गई हैं और सीएए का विरोध करने वाले नागरिकों में उत्साह का संचार हुआ हैं। ये भीड़ अगर यूं ही बढ़ती रही तो भाजपा,खासकर योगी आदित्यनाथ के लिए चिंता बढ़ाने वाला होगा। भले ही चुनाव में अभी ढ़ाई वर्ष बाकी हैं पर कब कौन सा आंदोलन किसी पार्टी के लिए नासूर बन जाए यह कहना मुश्किल है।

लखनऊ में कल देर रात घंटाघर का नजारा देखने लायक था। घने कोहरे में बिना टेंट के ये महिलाएं पूरी रात डटी रहीं। इन महिलाओं ने अनिश्चितकालीन प्रदर्शन शुरु किया है। घरों का काम निपटाकर धरना स्थल पर कई महिलाए अपने बच्चों के साथ पहुंची।

प्रदर्शन करने वाली महिलाओं के हाथों में सीएए और एनआरसी वापस लेने संबंधी नारे लिखे बैनर और तख्तियां थी। इनके प्रदर्शन का असर ही था कि जैसे ही प्रशासन को इस प्रदर्शन की जानकारी मिली पुलिस आयुक्त सुजीत पांडे अपने मातहत अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचे और उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें बैरंग लौटना पड़ा।

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प्रदर्शन करने वाली महिलाओं का कहना है कि सीएए एक काला कानून है। केंद्र की बीजेपी सरकार एनआरसी के माध्यम से मुस्लिमों का उत्पीडऩ करना चाहती है। देश के संविधान की जगह अपनी विचारधारा लोगों पर थोपना चाहती है। जब संविधान सबको बराबरी का अधिकार देता है, किसी में कोई भेदभाव नहीं करता तो सरकार धर्म के आधार पर कैसे लोगों को नागरिकता दे सकती है।

लखनऊ में आंदोलन शुरु करने वाली शबीह फातिमा का कहना है कि ‘अब पानी सर से ऊपर जा चुका है। मर्द हक-हकूक की आवाज उठा रहे हैं तो पुलिस उन्हें जेलों में बंद कर दे रही है। उन पर जुल्म कर रही है। इसलिए अब हम औरतों को संविधान बचाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा है। दिल्ली के शाहीनबाग, इलाहाबाद, कानपुर समेत कई जगहों पर हमारी बहने लगातार संघर्ष कर रही हैं, इस ठंड में सरकार से लड़ रही हैं, ऐसे में भला लखनऊ में हम कैसे चैन से बैठ सकते हैं।’

वहीं रेहाना कहती है ‘ये लड़ाई सिर्फ मुसलमानों की नहीं है, पूरे देश की है। इसलिए संविधान बचाने के लिए आज हमारे साथ बुजुर्ग महिलाओं से लेकर छोटे बच्चे भी प्रदर्शन में बैठे हैं। हमारा मकसद सबको ये बताना और समझाना है कि ये कानून कैसे एक समुदाय के साथ भेदभाव करता है, कैसे संविधान विरोधी है। हमारा प्रदर्शन अनिश्चितकालिन है और हम सरकार की मनमानी के आगे डटकर खड़े रहेंगे।’

प्रदर्शन करने वाली रिजवाना, रूखसाना जिया और फरेहा ने प्रशासन पर आरोप लगाया है कि हमारे कार्यक्रम को विफल करने के लिए रात में घंटा घर की बिजली काट दी गई। इतनी ठंड में हमें तंबू भी नहीं लगाने दिया गया।

प्रदर्शन में शामिल युवती वरीशा सलीम ने कहा कि यह प्रदर्शन दिल्ली के शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन की तर्ज पर ही है और जब तक एनआरसी और सीएए को वापस नहीं लिया जाता तब तक यह जारी रहेगा।

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