सुरेंद्र दुबे
दलितों व पिछडों के आइकॉन बने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर कल दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट से जमानत पर रिहा होने के बाद आज फिर नागरिकता संशोधन कानून के विरूद्ध अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए दिल्ली की जामा मस्जिद पहुंच गए।
जाहिर चंद्रशेखर का इरादा सरकार को यह बताने का है कि वे जेल जाने से डरने वाले नहीं हैं और नागरिकता संशोधन कानून का लगातार विरोध करते रहेंगे जो न केवल मुसलमानों व दलितों तथा पिछड़ों के लिए भी घातक है।
हाल के कुछ वर्षों में सहारनपुर निवासी चंद्रशेखर दलितों व पिछड़ों के एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी छवि एक जुझारू नेता के रूप में उभरी है जो जनता के मुद्दे उठाने तथा धरना प्रदर्शन करने का सिलसिला बनाए हुए है। आज कल के नेताओं की तरह उन्हें जेल जाने या पुलिस की लाठी खाने से डर नहीं लगता है। यही एक विशिष्टता है जो उन्हें दलितों और पिछड़ों के अन्य नेताओं से अलग रखती है।
अब नेता ट्वीट करके राजनीति करने के आदी हो गए हैं। बहुत हुआ तो प्रेस कांफ्रेंस कर ली। इसके बाद भी आत्मा ने बहुत झकझोरा तो जनता को बहलाने के लिए धरना प्रदर्शन कर लिया। पर अपनी बात के लिए अड़े रहने और जेल तक जाने के लिए तैयार रहने का माद्दा अब नेताओं में नहीं रहा। पर चंद्रशेखर यह माद्दा दिखा रहे हैं। इसीलिए उनके इर्द-गिर्द युवकों की भीड़ बढ़ती जा रही है।
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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर की हैसियत बढ़ने से सबसे ज्यादा चिंतित बहुजन समाज पार्टी की सु्प्रीमो मायावती हैं जो इन्हें भावी प्रतिद्वंदी के रूप में देख रही हैं। मायावती सदैव इस बात को लेकर चिंतित रहती हैं कि दलित समाज में कोई नया नेता तो पैदा नहीं हो रहा है, जो उनके लिए आगे चलकर मुसीबत बनें। इसीलिए वह ताश के पत्ते की तरह पार्टी को फेंटती रहती हैं। पूराने पत्ते निकाल देती हैं और ताश की गड्डी पूरा करने के लिए ताश के नए पत्ते मिला लेती हैं।
पर यहां तो चंद्रशेखर न केवल ताश के इक्के के रूप में उभरते दिखाई दे रहे हैं बल्कि खुद अपनी ताश की गड्डी बनाने के चक्कर में हैं। चंद्रशेखर को अच्छी तरह मालूम है कि मायावती उन्हें पनपने नहीं देंगी पर एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह उनसे भिड़ने के बजाए समानन्तर रेखा खीचने में लगे हैं। वे मायावती को अपनी बुआ बताते हैं पर मायावती उन्हें भतीजा मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
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चंद्रशेखर पर कांग्रेस पार्टी की भी नजर है। कांग्रस की महासचिव प्रियंका गांधी कई बार उनसे मिल चुकी हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के साथ गठबंधन करने का न्यौता दे चुकीं हैं। पर चतुर सुजान चंद्रशेखर अपनी अलग पहचान बनाने में लगे हुए हैं। मायावती को बुआ कहकर दलित वर्ग में ये संदेश दे रहे हैं कि उनका मायावती से कोई टकराव नहीं है। वैसे भी वह एक भतीजे अखिलेश यादव का हश्र देखने के बाद मायावती के निकट जाने का कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं। कांग्रेस से भी दूरी बनाए हुए हैं ताकि उनकी छवि पर कोई दाग न लगे।
चंद्रशेखर को कल ही कोर्ट ने इस शर्त के साथ जमानत दी थी कि वे तिहाड़ से रिहा होने के बाद अगले चार सप्ताह तक दिल्ली में नहीं रहेंगे, क्योंकि दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। साथ ही जब तक मामले में चार्जशीट दायर नहीं होती है, तब तक वो हर शनिवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एसएचओ के सामने हाजिरी देंगे।
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खैर कोर्ट के जमानत की शर्त को ध्यान में रखते हुए चंद्रशेखर ने आज शाम ही दिल्ली से बाहर चले जाने को घोषणा की है पर जाते-जाते वह नेतागिरी तो दिखा ही गए। अब उन्हें हर शनिवार को भी सहारनपुर में अपनी नेतागिरी दिखाने का अवसर मिलेगा। जब पुलिस-थाने अपनी हाजिरी दर्ज कराने जाएंगे तो भीड़ के जरिए अपनी हैसियत दिखाने का मौका तो मिलेगा ही। कल शनिवार है। देखते हैं चंद्रशेखर सहारनपुर में कल क्या जलवा दिखाते हैं।