सुरेंद्र दुबे
आज मकर संक्रांति है। इसके साथ ही मलमास का महीना खत्म हो गया। यानी कि आज से अच्छे दिन शुरू हो गए। कई महीनों से रूके शादी-ब्याह, मुंडन-छेदन और यज्ञोपवीत सहित सारे शुभ काम अब किए जा सकेंगे।
ये परिवर्तन खगोलीय स्थिति बदल जाने के कारण हुआ है क्योंकि सूर्य ग्रह अब मकर राशि में आ गए हैं। तो चलिए अब पूरे देश में शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे। यानी कि अच्छे दिनों की शुरूआत हो गई है।
प्रकृति द्वारा निर्धारित खगोलीय स्थितियों में परिवर्तन से अच्छे दिन निर्धारित समय पर शुरू हो जाते हैं। पर देश के अच्छे दिन कब आएंगे ये कोई नहीं बता सकता है। क्योंकि देश सूर्य कब मकर राशि में आएगा इसका निर्धारण केवल सरकार कर सकती है जो फिलहाल करती नहीं दिखाई देती।
पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर धरना प्रदर्शन चल रहे हैं। देश का दिल्ली स्थित ‘शाहीन बाग’ इस समय सीएए आंदोलन का अहिंसावादी आंदोलन का ‘मक्का मदीना’ बन गया है। पिछले एक महीने से हजारों लोग, जिसमें महिलाएं व दुधमूंहें बच्चे भी शामिल हैं, धरने पर इस उम्मीद में बैठे हैं कि कभी न कभी तो कोई सरकारी अफसर या कोई बड़ा नेता उनके बीच आकर नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे आंदोलन को आकर समाप्त कराएगा।
हम यहां सिर्फ शाहीन बाग का जिक्र सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यहां के आंदोलन से जनता की भावनाओं की नब्ज पहचानी जा सकती है। वैसे देश के तमाम विश्वविद्यालयों सहित लगभग 45 स्थानों पर इस कानून के खिलाफ एक तरह से सिविल नाफरमानी आंदोलन चल रहा है। सिविल नाफरमानी शब्द अंग्रेजों के जमाने में उनके विरूद्ध होने वाले शांति पूर्ण आंदोलन का प्रतीक माना जाता था।
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पर सरकार धरना देने वाले आंदोलनकारियों की भावनाओं की कद्र करने के बजाए एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। सरकार के समर्थन में भी देश के कई हिस्सों में रैलियां की जा रही हैं। पूरे देश में एक विचित्र सा दृश्य है जहां सरकार और एक बड़ी संख्या में जनता एक दूसरे के विरूद्ध लामबंद हो गई है। जब तक यह दृश्य बदलता नहीं तब तक कैसे कहा जा सकता है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह दुर्व्यवस्था के चंगुल में है। महंगाई साढ़े सात प्रतिशत पर पहुंच गई है और बेरोजगारी का आंकड़ा पिछले 45 साल में सबसे ऊंचे पायदान पर है। एसबीआई की एक रिपोर्ट की माने तो इस साल सोलह लाख नौकरियां और कम सृजित होंगी। कारों की बिक्री लगातार घटती जा रही हैं। नोटबंदी के बाद से बंद छोटे उद्योग अभी-भी बंद पड़े हैं। रियल्टी सेक्टर सन्निपात में चल रहा है। निर्माण कार्य ठप पड़ गए हैं। इसलिए इनमें काम करने वाले मजदूर अपने गांवों को लौट गए, जहां उनके लिए कोई काम नहीं है।
ईंट,सरिया तथा सीमेंट सबकी खपत कम हो गई है। इसलिए सरकार के खजाने में टैक्स की भी किल्लत हो गई है। ऑटो इंड्रस्ट्री में उत्पादन माइनस पर चला गया है। इसलिए इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी छा गई है और सरकार भी टैक्स के नाम पर ठनठन गोपाल है। यानी दोनों बुरे दिन से गुजर रहे हैं। पता नहीं इनकी मकर संक्राति कब आएगी और कब शुरू होंगे अच्छे दिन।
लगता है देर से ही सही सरकार को भी यह बात समझ में आ गई है कि देश की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बेरूखी को नजरअंदाज करना ही ठीक होगा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के बड़े उद्योपतियों से अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बतियाना मन में आशा तो पैदा ही करता है। देखते हैं कि सरकार बजट में छोटे-बड़े सभी उद्योंगो के लिए क्या क्रांतिकारी पैकेज देती है, जिससे देश में अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन शुरू हो सकें।
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