राजीव ओझा
पृथ्वी पर जन्म ले रहा है एक और महाद्वीप। सब जानते हैं कि हमारी पृथ्वी हर पल बदल रही है। जैसी पहले थी वैसी अब नहीं और जैसी अब है वैसी आगे नहीं होगी पृथ्वी। कहा जाता है कि ब्रह्मांड में पृथ्वी करीब पांच अरब साल पहले वजूद में आई और आगले करीब पांच अरब साल तक रहेगी। लेकिन इसके काफी पहले पृथ्वी पर जीवन ख़त्म हो जायेगा।
करीब 18 करोड़ साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप अफ्रीका महाद्वीप से जुड़ा हुआ था। लेकिन कालांतर में टेक्टोनिक प्लेट खिसकने से भारतीय उपमहाद्वीप एशिया महाद्वीप से जुड़ गया। अब इसी तरह के बदलाव के साक्षी केन्या के लोग बन रहे हैं। कहा जा रहा है कि अफ्रीका महाद्वीप दो टुकड़ों में बाँट जाएगा और इसकी शुरुआत हो चुकी है।
बात बहुत पुरानी नहीं है। एक सुबह केन्या की रिफ्ट वैली में एक कस्बे के लोगों ने सुबह देखा कि धरती में करीब 50 फीट गहरी और 60 फीट चौड़ी दरार उभर आई है। यह दरार स्थानीय निवासी जगूना के घर के पास से गुजर रही थी। उसे लगा कि दरार उनके घर को निगल जायेगी। वह इतना घबरा गया कि जितनी जल्दी और जितना हो सका, उतना सामन उसने घर से निकाल लिया। पास पड़ोस के लोग भी इस लम्बी और गहरी दरार को देख चीखने लगे। यह दरार ऐसी वैसी नहीं है। इसके ट्रेस अफ्रीका महाद्वीप में 3700 मील लम्बे हैं।
भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि अफ्रीका के दो दुकड़ों में बंटने की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन घबराइये नहीं, रातों-रात ऐसा नहीं होने वाला इसमें करीब दस करोड़ साल लगेंगे जब। लेकिन इसमें कोई शक नहीं की पूर्वी अफ्रीकी दरार दिनों-दिन चौड़ी होती जा रही है क्योंकि इसके नीचे की टेक्टोनिक प्लेट एक दूसरे से दूर होती जा रहीं हैं। जो यह दरार केन्या में दिख रही है वह अचानक नहीं पड़ी। दरार काफी पहले से थी लेकिन ज्वलामुखी की राख इसमें भर जाने से यह दिखाई नहीं पड़ रही थी। लेकिन भारी बारिश की वजह से राख और नर्म मिटटी बह गई और दरार साफ़ दिखने लगी ।
यह वही भाग है जहां से पृथ्वी के भूगर्भीय संरचना और इतिहास के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां वैज्ञानिकों ने हासिल की हैं। फिलहाल इस दरार के उभरने से क्षेत्र के लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ा है। इस इलाके से गुजरने वाले हाई-वे में दरार पड गई है। आगे भी ऐसी दरार पड़ेंगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इस क्षेत्र में रेल लाइन बिछाने की योजना भी मुश्किल में पड़ती नजर आ रही है। इस दरार की वजह से कई करोड़ साल बाद इथोपिया, केन्या, तंजानिया, मोजाम्बिक, सोमालिया जैसे देश दो टुकड़ों में बाँट सकते हैं।
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इस तरह करोड़ों साल पहले भारतीय प्लेट का सफर में बदलाव हुआ था। करीब अठारह करोड़ साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भूभाग, भूमध्य रेखा से काफी नीचे अफ्रीका, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमरीका से जुड़ा हुआ था। इस विशाल महाद्वीप से अलग होकर भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसकने लगी और जहाँ एशिया से मिली वहीँ आज हिमालय रेंज है। लाखों साल में भारतीय प्लेट का खिसकना अभी जारी है। इसी लिए हिमालय की ऊंचाई लगातार बढ़ रही है।
खिसकाव दर और विविध पड़ाव को जानने में भारत-ऑस्ट्रेलिया-अंटार्कटिका में कालखंड-विशेष की चट्टानों का अध्ययन सहायक साबित हुआ है। भूवैज्ञानिक यह जान गए हैं कि धरती के इतिहास में कब-कब चुम्बकीय ध्रुवों में उलट-पलट हुई है। धरती की सात प्रमुख और अन्य उपप्लेट के खिसकाव की गति में काफी विविधता है, जो कुछ मिलीमीटर प्रतिवर्ष से लेकर 15 सेन्टीमीटर/वर्ष के बीच है। प्लेट के खिसकाव को इतनी सटीकता से नापने में संचार उपग्रहों औऱ धरती पर स्थित रिसीवर्स आधारित व्यवस्था का बड़ा योगदान रहा है।
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इस व्यवस्था में विविध उपग्रहों द्वारा धरती पर मौजूद रिसीवर्स को संकेत भेजे जाते हैं और रिसीवर्स इन संकेतों की प्राप्ति के समय, उपग्रह की स्थिति आदि ब्यौरों को नोट कर लेता है। बार-बार दोहराए जाने वाली इस प्रक्रिया के कारण प्लेट खिसकाव की गति नापी जा सकती है। फिलहाल बदलाव केन्या में दिखने लगा है।