सुरेंद्र दुबे
नए वर्ष 2020 का पदार्पण हो गया है। हर नया वर्ष अपने साथ पुराने वर्ष की तमाम समस्याएं और चुनौतियां अपनी पीठ पर लाद कर आता है। ढ़ेरों समस्याएं और चुनौतियां हैं, जिन पर कई महाकाव्य लिखे जा सकते हैं। पर आज हम T-20 मैच खेलने के मूड में हैं।
इस नए वर्ष में दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यह वर्ष इस मामले में भाग्यशाली कहा जा सकता है कि केवल दिल्ली और बिहार की जनता को वोट डालने जाना है। बाकी लोग अपनी-अपनी रूचि के टेस्ट मैच पूरे साल खेल सकते हैं।
बिहार में विधानसभा चुनाव की पटकथा जेडीयू के उपाध्यक्ष तथा देश के जाने-माने राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दिसंबर 2019 से ही लिखना शुरू कर दिया है। प्रशांत किशोर ने अपने ट्वीट के जरिए अपनी पार्टी के इरादे बता दिए हैं कि उनकी पार्टी भाजपा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को भी बता दिया है कि वे इस पद पर जेडीयू की सफलता के बल पर ही इस कुर्सी तक पहुंचे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हालांकि कह दिया है ‘ऑल इज वेल’। पर ऐसा है नहीं। पलटी मारने के लिए मशहूर नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला बदलने के मूड में लग रहे हैं। अगर मुस्लिम मतों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वह नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के साथ फिर से गठबंधन कर लें तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। बिहार में नंवबर 2020 में चुनाव होने हैं, तब तक गंगा में कितना पानी बह जाएगा यह अभी से बता पाना थोड़ा मुश्किल है।
बिहार के चुनाव को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणामों से जोड़ कर देखा जाए तो यह आभास होता है कि राज्यों में भाजपा की घटती लोकप्रियता को ध्यान में रखकर नीतीश कुमार कुछ नया खेल खेलने का प्रयास कर सकते हैं।
झारखंड, बिहार का पड़ोसी राज्य है, जहां भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। तमाम क्षेत्रिय क्षत्रप देश में भाजपा से दूरियां बनाने में मशगूल हैं। देखतें हैं नया राजनैतिक परिदृश्य क्या गुल खिलाता है।
दिल्ली विधानसभा के फरवरी में चुनाव होने हैं जहां इस समय अरविंद केजरीवाल का शासन चल रहा है। यहां की विधानसभा केंद्र शासित विधानसभा ही है इसलिए यह माना जा सकता है कि देश में एक विधानसभा और एक केंद्र शासित राज्य दिल्ली में चुनाव होना है। यानी कि T-20 के भी दो फुलफ्लेज्ड राजनैतिक खेल नहीं होने हैं। पर दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए भाजपा के लिए अरविंद केजरीवाल को उखाड़ फेंकना एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिसंबर में ही रामलीला मैदान में दिल्ली सरकार के विरूद्ध चुनावी बिगुल फूंक चुके हैं। भाजपा का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा इस समय नागरिकता कानून है, जिसको लेकर पूरे देश में धरना प्रदर्शन अभी तक जारी है। दिल्ली में कच्ची कॉलोनियों को पक्का बनवाने के दावे भाजपा कर रही है। अब ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि जनता के दिल में किसने पक्की जगह बनाई और किसके तिकड़म कच्चे रह गए।
दिल्ली का चुनाव इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की शानदार विजय के बाद भी भाजपा को चारों खाने चित्त होना पड़ा था। अरविंद केजरीवाल ने 70 में से 67 सीटें जीत कर सबकों आश्चर्यचकित कर दिया था। केजरीवाल को हराने के लिए भाजपा ने पूर्व आईपीएस अफसर किरण बेदी को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया था, पर जनता ने केजरीवाल पर भरोसा किया।
केजरीवाल कई महीनों से चुनावी मोड में ही चल रहे हैं और जनता को अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं। रिपोर्ट कार्ड बहुत शानदार है। जनता को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, अधिकांश कॉलोनियों में पानी की सप्लाई, कच्ची कॉलोनियों तक सड़के व सीवर सबकी गाथाएं बताई जा रही हैं। मोहल्ला क्लीनिक और बेहतर स्तर के सरकारी स्कूल के मामले में केजरीवाल ने शानदार रिकॉर्ड बनाएं हैं। जहां निजी स्कूलों का बोर्ड का परीक्षा परिणाम 93 प्रतिशत रहा है वहीं सरकारी स्कूलों के 96 प्रतिशत छात्रों ने परचम लहराया है। देखना होगा कि उपब्धियों की इतनी बड़ी लकीर के आगे भाजपा कितनी बड़ी लकीर खींच पाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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