न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी हुई नहीं है। सरकारी अस्पताल में सुविधाएं तो है लेकिन डॉक्टरों की कमी। कही डाक्टर हैं तो जरूरत की दवाएं नहीं हैं। ऐसे में आरोग्य स्वास्थ्य मेला लगाने का फरमान कहां तक सार्थक साबित होगा, ये तो समय बताएगा।
लेकिन सवाल ये उठता है कि जब सरकारी अस्पतालों में जरूरत की दवाएं ही नहीं मिलती तो भला आरोग्य स्वास्थ्य मेला लगाकर दवा कैसे देंगे?
बता दे कि मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन ने अपने पत्र संख्या 1275/पांच-7-2019, लखनऊ ने 24 दिसंबर 2019 के द्वारा प्रदेश के समस्त प्राथमिक एवं नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रत्येक रविवार को आरोग्य स्वास्थ्य मेला आयोजित करने का फरमान जारी कर दिया है।
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लेकिन इस आदेश में ये नहीं बताया गया है कि जब जरूरत की दवाई जनपदों में नहीं रहेगी और सीएमओ के पास दवा और टेस्ट रिजेण्ट के खरीदने को पैसे नहीं तो किस तरह से स्वास्थ्य मेले का आयोजन होगा। यह केवल एक जनता के लिये सियासी दिखावा ही साबित होगा।
इससे पहले भी कई बार सरकार की तरफ से तमाम मेले के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा करने का दावा किया जा चुका है, उसका हाल भी सामने आ चुका है।
स्वास्थ्य मेले में सुविधाएं जिनको देने का निर्देश है
ओपीडी सेवाएं, टीबी,मलेरिया, डेंगू, दिमागी बुखार, कालाजार, डायरिया एवं कुष्ठ रोगी संबंधी आवश्यक जांच और उपचार। उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मुख स्तन एवं सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग और यथोचित स्थल पर संदर्भ और फॉलोअप।
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना एवं मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना अभियान की जानकारी तथा पात्र लाभार्थियों को गोल्डन कार्ड वितरण। गर्भावस्था एवं प्रसव कालीन परामर्श सेवाएं। संस्थागत प्रसव संबंधी जागरूकता। नवजात शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा सेवा। टीकाकरण, परिवार नियोजन संबंधी सुविधाएं। बच्चों में डायरिया, निमोनिया के उपचार की सुविधाएं। समस्त आधारभूत जांच सुविधाएं ।
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दवाओं की किल्लत, बजट भी कार्पोरेशन ने दबाया
जनपदों में यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन जरूरत की दवाएं नहीं दे पा रहा है और जनपद के सीएमओ को बजट नहीं दिया गया कि वह जांच के लिये रिजेण्ट और इमरजेंसी दवा खरीद सके। कारपोरेशन ने पूरे साल का सारा पैसा अपने पास दबा लिया है, यह बताकर कि समस्त दवाएं, रिजेण्ट आदि डिमांड के अनुसार खरीद कर जनपदों को आपूर्ति करेगा।
बजट का दूसरे, तीसरे और चौथे क्वार्टर का 20% बजट जो सीएमओ को मिलना था वह भी पैसा नहीं दिया गया। दवा की इतनी किल्लत कभी नहीं देखी गयी। हर तरफ हाहाकार मचा है और कोई भी दवा जरूरत कि नहीं आ पा रही है।
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जनपदों में मुख्य दवा हैं ही नहीं
ग्रामीण इलाकों एवं मलिन बस्तियों में सबसे आवश्यक होता है बीवी लोशन क्योंकि इन क्षेत्रों में स्केबीज के मरीज काफी संख्या में आते हैं लेकिन बी बी लोशन पूरे साल कारपोरेशन ने सप्लाई नहीं किया। टेबलेट एसिक्लोफिनेक और डिक्लोफिनैक की भी आपूर्ति नहीं की गई है।
बच्चों की ऐण्टीबायोटिक सीरप एमाक्सीसिलीन, दस्त का सीरप मेट्रोनिडाजाल नहीं है और तो और इस समय भी पेरासिटामोल जैसी आवश्यक दवा सीएमओ को नहीं दी जा रही है। केवल दी जा रही है तो आयरन और कैल्शियम की गोलियां जिनमें कमीशन ज्यादा है।
हर्ट की महंगी दवा नाइट्रोग्लासिरीन भारी मात्रा में आपूर्ति कर दी, वह भी बिना डिमाण्ड किये ही। इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, हर्ट का कोई भी स्पेशलिष्ट डॉक्टर उपलब्ध नहीं है।
इस तरह से यह देखा जा रहा है कि बिना डिमांड लिए उन्हीं दवाओं की आपूर्ति कार्पोरेशन कर रहा है जिसमें भारी से भारी उनको कमीशन प्राप्त हो। मुख्य सचिव पहले जरूरी दवाओं की आपूर्ति तो करा लें, फिर मेले का आयोजन करायें, नहीं तो सरकार के खाते में एक नाकामी और जुड़ जायेगी।