Monday - 28 October 2024 - 5:05 PM

ऐसे में कैसे मुमकिन है शांतिपूर्वक प्रदर्शन !

नवेद  शिकोह

सीएए और एनआरसी विरोध प्रदर्शन में यदि शांति भंग हुई तो दोषी सिर्फ प्रदर्शनकारी ही नहीं सरकार भी है। धारा 144 लगी हो तो शांति के साथ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को पुलिस खदेड़ेगी ही और फिर शांति कैसे नहीं भंग होगी !

रास्ता यही है और तरीका भी यही है कि जब किसी विरोध प्रदर्शन/मार्च या रैली के आह्वान की तारीख के दिन धारा 144 लगा दी जाती है तो संभावित प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की व्यापक व्यवस्था की जाती है।

ऐसे में प्रतीकात्मक गिरफ्तारी देकर प्रदर्शनकारी शांतिपूर्वक गिरफ्तारी देते हैं। और ऐसे ही 19 दिसम्बर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तारी की व्यापक व्यवस्था करके कानून व्यवस्था भंग नहीं होने दी थी। विगत 19 दिसंबर को देश के कई राज्यों में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश सहित कई सूबों के तमाम ज़िलों में हिंसा के दौरान देश ने बड़ा नुकसान उठाया।

19 दिसंबर को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के लिए पहले ही आह्वान किया जा चुका था। इससे पूर्व दिल्ली के जामिया मीलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल और असम में इन मुद्दों को लेकर हिंसा की घटनाएं घट चुकी थीं।

इसलिए इस देशव्यापी प्रदर्शन से निपटने के लिए जिस प्रदेश ने अच्छे इंतेज़ाम कर लिए वहां हिंसा नहीं हुई और शांतिपूर्वक प्रोटेस्ट निपट गया। यूपी बेहतर व्यवस्था में चूक गया इसलिए यहां की कानून व्यवस्था भंग हो गई।

अयोध्या के राम मंदिर जैसे बहुप्रतीक्षित, एतिहासिक और संवेदनशील मामले के फैसले पर बेहतरीन क़ानून व्यवस्था क़ायम रखने में तारीफें बंटोरने वाली उत्तर प्रदेश की पुलिस पर अब सवाल उठने लगे हैं। लोग कह रहे हैं कि यदि पुलिस पहले से मुश्तैद रहती तो CAA-NRC को लेकर हिंसक विरोध की घटनाएं नहीं होतीं।

लाखों आम इंसान सड़कों पर उतर आयेगा क्या पुलिस के खुफिया तंत्र को ये जानकारी नहीं थी ! ऐसी जानकारी ना होना पुलिस की बड़ी विफलता थी। और यदि ये जानकारी थी तो व्यापक इंतेज़ाम क्यों नहीं किए गये। यदि धारा 144 लगायी थी तो भारी संख्या में गिरफ्तारी के लिए बसों के इंतेजाम क्यों नहीं किए गये। या प्रदर्शकारियों को विरोध प्रदर्शन के लिए कोई स्थान क्यों नहीं दिया गया।

144 पर भारी संख्या में मोहल्ले-मोहल्ले निकलने वालों की गिरफ्तारी के लिए बसों का इंतेजाम किया जा सकता था। या फिर विरोध प्रदर्शन के तय स्थान के बैराकैटिंग के पास प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके एक निश्चित समय तक पुलिस लाइंस इत्यादि में बैठाया जा सकता था।

देश का हर नागरिक सरकार के किसी भी फैसले पर असहमति व्यक्त करने का अधिकार रखता है। लोकतंत्र में शांतिपूर्वक विरोध प्रर्दशन करना सबका संवेधानिक अधिकार है। यहां तक तो ठीक है, लेकिन प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाज़ी, आग़ज़नी, दंगा,हिंसा, उपद्रव और उत्पाद असंवैधानिक- अलोकतांत्रिक है, अपराध है और नाजायज़ है। सरकारी सम्पत्ति और जनता को परेशान करने वाला कोई भी कृत्य जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है।

हमारे लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि विरोध प्रदर्शन जिस सरकार के ख़िलाफ होता है वो सरकार ही इस लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान और स्वागत करती हैं। और विरोध प्रदर्शन का इंतेजाम व शांति और सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम भी सरकार का प्रशासनिक तंत्र ही करता है। मौजूद वक्त में भी यही हो रहा है।

देश का एक तबका CAA-NRC के ख़िलाफ तमाम राज्यों में प्रोटेस्ट चल रहे हैं। और सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और सरकार के लोग कह रहे हैं कि विरोध कीजिए किंतु हिंसा मत कीजिए।

लेकिन इतना ही काफी नहीं है, अपने ही खिलाफ किसी आंदोलन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के बेहतर इंतेजाम करना भी सरकार की बड़ी परीक्षा होती है। यदि सुरक्षा के कारणों से किसी आंदोलन की किसी रैली/मार्च/विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाकर धारा 144 लगा भी दी जाती है।

तब संभावित प्रदर्ननकारियों की गिरफ्तारी/प्रतीकात्मक गिरफ्तारी का व्यापक इंतेजाम किया जाता है। यदि किसी बड़े आंदोलन से निपटने के लिए सरकार इस तरह की व्यवस्था ना करे और फिर धारा 144 के दौरान शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की अपेक्षा अव्यवहारिक ही कही जायेगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,  लेख उनके निजी विचार हैं)

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