सुरेंद्र दुबे
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारतवर्ष में जो भी लोग रहते हैं वे सब हिंदू हैं। यानी कि फिर एक बार हिंदू ऐजेंडा या कि कहें देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की शुरूआत कर दी है। हो सकता है कि मोहन भागवत ने सोचा हो कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के बजाए अगर सारे देशवासी स्वयं ही मान लें कि वे हिंदू हैं तो हिंदू राष्ट्र बनाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा।
जनता को लगने लगा है कि जब हमें रोजी-रोटी चाहिए तो सरकार हमें एनआरसी और एनपीआर की थाली परोस रही है। कहावत है कि ‘भूखे भजन न होई गोपाला’। पर लगता है सरकार कहावत को बदल कर ‘भूखे भजन करो गोपाला’ का पाठ पढ़ाना चाहती है।
हमारे देश में धर्म और जाति पैदा होते ही निर्धारित हो जाते हैं। हमने जिस जाति व धर्म में जन्म लिया वह पैदा होते ही निर्धारित हो जाती हैं। अब अगर किसी मुस्लिम मां के गर्भ से पैदा हुए व्यक्ति को ये कहा जाए कि वह अपने को हिंदू मान ले तो ये संभव नहीं है, जब-तक की वह धर्म परिवर्तन न कर ले और जाति परिवर्तन करने की तो हमारे समाज में कोई व्यवस्था ही नहीं है।
इसकी जड़ें इतनी गहरीं हैं कि अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर लेता है तो परिवर्तित धर्म के बाद भी उस समाज के लोग उसका आदर या अनादर उसकी जाति के अनुसार ही निर्धारित करते हैं। मोहन भागवत किस तर्क से यह ज्ञान बांट रहे हैं कि इस देश में पैदा हुए सभी व्यक्ति हिंदू ही हैं। जाहिर है पूरा बयान राजनैतिक है, जिसके निशाने पर मुस्लिम समाज है।
जब सरकार और आरएसएस एक ही भाषा बोलने लगते हैं तो मुस्लिम समाज के लोगों का डर और भ्रम और ज्यादा बढ़ जाता है। पहले एनआरसी और अब एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) को लेकर पूरे देश में धरना प्रदर्शन चल रहे हैं।
जाहिर है पूरे समाज में एक तनाव का वातावरण है और असमाजिक तत्व इसका फायदा उठाकर हिंसा भी फैला रहे हैं, जिसमें अनेक लोगों की जाने गईं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तरह-तरह की सफाई दे रहे हैं कि एनपीआर से मुसलमानो को कोई खतरा नहीं है। विपक्षी दलों के लोग अनावश्यक मुसलमानों को भड़का रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल राजधानी लखनऊ में भी मुस्लिम समाज के लोगों को एनपीआर से न डरने का प्रवचन कर गए हैं। अगर प्रवचनों से ही समाज में व्याप्त भय व भ्रम दूर हो जाते तो हमारे समाज में तो हर मोहल्ले में रोज ही प्रवचन होते रहते हैं। इलेक्ट्रानिक चैनलों पर सैकड़ों बाबा रोज प्रवचन ही दे रहे हैं पर समाज में व्याप्त कुरीतियां, भय व भ्रम यथावत कायम है। मोहन भागवत ने भी प्रवचन देने के अंदाज में ही पूरे देश को हिंदू समझे जाने की बात कही है।
ये बात सबको अच्छी तरह से मालुम है कि देश की अर्थव्यवस्था एक संकट के दौर से गुजर रही है। नौजवानों के पास काम नहीं है। लोग रोटी की तलाश में भटक रहे हैं। अधिकांश उद्योंगों में उत्पादन में लगातार गिरावट आ रही है। कई उद्योग तो निगेटिव प्रोडक्शन की स्थिति में पहुंच गए हैं। पर इस पर न तो सरकार कोई प्रवचन देना चाहती है और न ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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