डॉ अभिनन्दन सिंह भदौरिया
25 दिसंबर सन 1900 बुंदेलखंड के स्वतंत्रता संग्राम के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि हमीरपुर जनपद की राठ तहसील के मंगरौठ गांव में हमीरपुर जनपद के स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व करने वाले गांधीवादी दीवान शत्रुघ्न सिंह का जन्म हुआ था।
दीवान साहब ओजस्वी वक्ता होने के साथ प्रखर गांधीवादी व्यक्ति थे उन्होंने सन 1919 में हमीरपुर जनपद की राठ तहसील में सर्वप्रथम कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। विद्यार्थी जीवन में उनके ऊपर राजकीय हाईस्कूल बाँदा के कर्मठ अध्यापक पंडित लक्ष्मी नारायण अग्निहोत्री के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने गांधी जी के प्रति आकर्षण पैदा कर दिया। उनके जीवन पर मलेहटा निवासी कुँवर मनोहर सिंह तथा क्रान्तधर्मी पंडित परमानंद जी का प्रभाव पड़ा जिसके कारण क्रांतिकारी राजनैतिक जीवन का अंकुरण हुआ।
सन 1917 तक दीवान साहब सशस्त्र संघर्ष के पक्षधर थे लेकिन 1917 के बाद भारतीय राजनीति में गांधी जी का प्रभाव दिखाई देने लगा था।
इस कारण दीवान साहब ने अपने क्रांतिकारी दल की एक बैठक बुलाई और कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की, इस बात को लेकर क्रांतिकारी दल के सदस्यों और दीवान साहब के बीच काफी वाद विवाद हुआ अंत मे निर्णय हुआ जो लोग कांग्रेस में शामिल होना चाहते है वो शामिल हो सकते है अन्ततः दीवान साहब गांधीमार्गी हो गए।
उसी समय एक महत्वपूर्ण घटना घटी जिसने दीवान साहब को गांधी वादी नेता के रूप में स्थापित कर दिया। घटना कुछ इस तरह थी कि राठ के तहसीलदार ने प्रबुद्धजनों की एक बैठक बुला कर उनसे सरकार को चंदा देने की अपील की। राठ कांग्रेसियों के कहने पर उन्होंने असहयोग करना स्वीकार कर लिया। दीवान साहब ने चंदा देने से साफ इंकार कर दिया और बैठक से बाहर चले गए।
यह भी पढ़ें : स्वामी ब्रह्मानन्द : बालक शिवदयाल कैसे बना बुंदेलखंड का मालवीय
तहसीलदार ने उनके इस अहसयोगी कदम के प्रति उन्हें सचेत किया लेकिन दीवान साहब अड़िग थे। अब सरकारी अधिकारी तिलमिला उठे थे और उन्हें जिलाधीश ने जेल भेजने की सारी तैयारी कर ली थी उसी समय दीवान साहब ने धारा 144 का उल्लंघन कर स्वयंसेवी के रूप में कांग्रेस में भर्ती होने की घोषणा कर दी। अधिकारियों ने इस मौके का फायदा उठाया और उनके नाम वारंट जारी कर साथियो सहित हमीरपुर जेल में बंद कर दिया। इसके बाद वह कई बार जेल गए।
उन्हें नेहरू, पंत, शास्त्री, विद्यार्थी एवं विनोबा जी जैसे चोटी के नेताओ का सान्निध्य प्राप्त था। दीवान साहब ने मई 1952 में मंगरौठ ग्राम को बिनोवा जी को दान कर दिया इसलिए उन्हें आज हिंदुस्तान का पहला ग्राम दानी होने का गौरव प्राप्त है, उन्होंने कुछ रचनात्मक कार्य भी किये, जिसमे जीआरवी इंटर कॉलेज राठ एवं मंगरौठ में पंडित परमानंद इंटर कॉलेज की स्थापना शामिल है। उन्होंने जीवन भर गांधीवादी विचारों का पालन किया। इसी लिए लोग उन्हें बुंदेलखंड का गांधी कहते है।
(लेखक एक पीजी कॉलेज में प्राचार्य है, समय समय पर लेखन का कार्य करते रहते है)
यह भी पढ़ें : रानी राजेन्द्र कुमारी : बुंदेलखंड की दूसरी लक्ष्मीबाई
यह भी पढ़ें : बुन्देलखण्ड के इस कवि को क्यों कहते हैं ‘गीतों का दानवीर कर्ण’