जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। वित्त विभाग के अंतर्गत आने वाले सहकारी समितियां एवं पंचायतों के लेखा परीक्षा विभाग के मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र दीक्षित को जांच में विभाग के वरिष्ठ सहायकों को शासनादेश से परे जाकर अधिक वेतन का भुगतान करने का दोषी पाया गया।
शासन ने इस आधार पर अपने आदेश संख्या ऑडिट -1-1090/दस-2019-322(5)/2012 लखनऊ दिनांक 10 दिसंबर 2019 के द्वारा मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र दीक्षित को निलंबित कर दिया। तब से विभाग बिना किसी मुखिया के संचालित किया जा रहा है।
ये भी पढ़े: यूपी लेखा परीक्षा विभाग: कागजों में चल रहा पदोन्नति का ऐसा खेल
ये है पूरा मामला
मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी सहकारी समितियां पंचायतें उत्तर प्रदेश लखनऊ के द्वारा विभाग में कार्यरत कनिष्ठ सहायक से वरिष्ठ सहायक के पद पर दिनांक 1.01.2006 के पश्चात की गई पदोन्नति पर वेतन निर्धारण हेतु शासनादेशों के विपरीत परिपत्र संख्या -सी-60/अ-3/2017 के द्वारा कर्मचारियों का अनियमित वेतन निर्धारित करके अधिक वेतन का भुगतान किया गया।
शासन में इसकी शिकायत की गयी और शासन ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष उत्तर प्रदेश लखनऊ कार्यालय में तैनात वित्त नियंत्रक आलोक अग्रवाल को इसकी जांच सौंपी। वित्त नियंत्रक ने जांच में गलत वेतन निर्धारण और अधिक वेतन भुगतान की शिकायत को सही पाया।
इसके लिये अवनीन्द्र दीक्षित, मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी को पूर्ण रूप से उत्तरदाई ठहराते हुए इसके फलस्वरूप राजस्व क्षति होने के साथ-साथ कर्मचारियों को अनियमित रूप से वेतन निर्धारण कराकर अनुचित लाभ पहुंचाये जाने की जांच रिपोर्ट में उल्लेख किया।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लखनऊ मण्डल के विभिन्न जिलों में तैनात निशा सिंह, स्वतंत्र कुमार, सुमाना परवीन, अखिलेश सोनकर, शिव बहादचर वर्मा, अजय कुमार व प्रभात कुमार के ही अभिलेख जांच में उलब्ध कराये गये।
सूत्र बताते हैं कि मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी, सहकारी समितियां पंचायतें, लखनऊ के मुख्यालय में तैनात लगभग 10 कर्मचारियों को भी अनुचित लाभ मिला है, लेकिन उनके अभिलेख जांच में नहीं दिये गये।
इसके अलावा पूरे प्रदेश में अनुचित लाभ पाने वाले कर्मचारियों की संख्या लगभग 50 है और यदि सही तरीके से जांच होती है तो कम से कम 2 करोड़ रूपये की राजस्व हानि संभावित है।
ये भी पढ़े: आखिर क्यों नहीं मिलेगा लेखा परीक्षा के कार्मिकों को सेवानिवृत्ति का लाभ
पहले भी निलंबित हो चुके हैं अवनीन्द्र
मिली जानकारी के अनुसार 1993 में मुरादाबाद मण्डल के रिजनल आडिट आफिसर के पद पर रहते हुए इन पर लिपकों की भर्ती में अनियमितता का आरोप लगा था और इनका निलंबन भी हुआ था।
मुख्यालय के बाबुओं पर हमेशा रहे मेहरबान
अवनीन्द्र दीक्षित हमेशा से बाबुओं पर मेहरबान रहे। जिसके कई उदाहरण हैं-
1.मुख्यालय में तैनात बाबुओं का शासन स्तर से ट्रांसफर होने पर भी उनको रिलीव नहीं किया।
2.ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों की पदोन्नति के लिए शासन ने 1991 से 1994 तक की वर्षवार रिक्तियां मांगी, लेकिन बाबुओं के कहने में आकर शासन को लिख दिया कि इससे सम्बन्धित अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध नहीं है, जबकि 2007 में मा. न्यायालय को सूचना दी चुकी थी। सिर्फ पैसे न मिलने और कामचोरी के कारण सूचना नहीं दी गयी। इस कारण वरिष्ठ लेखा परीक्षकों को भारी वित्तीय क्षति उठानी पड़ रही है। रिक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख मुख्यालय से गायब होने पर भी सम्बन्धित सहायकों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।