जुबिली न्यूज़ डेस्क
इंडियन फाउंडेशन की ओर से आयोजित व्याख्यान में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा की सीटों को 543 से बढ़ाकर 1000 करने और राज्यसभा की सीटों में भी इजाफे की वकालत की है। उन्होंने दलील दी कि भारत में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के लिए मतदाताओं की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा है।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि लोकसभा की क्षमता को 1977 में संशोधित किया गया था जो 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था और उस वक्त देश की आबादी 55 करोड़ थी। उन्होंने कहा कि आबादी तब से दोगुने से ज्यादा बढ़ गई है और परिसीमन पर लगी रोक को हटाने के लिए यह मजबूत दलील है। उन्होंने कहा कि आदर्श रूप से इसे (लोकसभा में सदस्यों की संख्या) बढ़ा कर 1000 कर दिया जाना चाहिए।
इस सम्बन्ध में वरिष्ठ पत्रकार राजीव ओझा का कहना है कि, लोकसभा की सीटें बढ़ने से आम जनता को सीधे तौर पर फायदा होगा। क्षेत्र के लोग अपने सांसद तक आसानी से पहुंच सकेंगे। हालांकि ऐसा करने से राजस्व में भी भार बढ़ेगा। सांसदों पर खर्च होने वाली भारी भरकम राशि भी दोगुनी हो जाएगी।
वाजपेयी की तारीफ की और मौजूदा सरकार को आगाह किया
इस दौरान मुखर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आम सहमति बनाने वाले नेता के तौर पर तारीफ की। मुखर्जी ने कहा कि वाजपेयी ने सबको साथ लेकर काम किया। वहीं उन्होंने संशोधित नागरकिता कानून के खिलाफ देश भर में जारी प्रतिरोध और छात्रों पर पुलिस बर्बरता के परिप्रेक्ष्य में आगाह किया है।
मुखर्जी ने कहा कि बहुमत का अर्थ सबके साथ लेकर चलना होता है मनमानी करना नहीं। उन्होंने चेताया कि जो सरकारें मनमानी पर उतर आती हैं उन्हें जनता अगले ही चुनाव में बाहर का रास्ता दिखा देती हैं। प्रणब मुखर्जी ने सत्तारुढ़ दलों को ‘बहुसंख्यकवाद’ के खिलाफ आगाह किया। उन्होंने कहा कि लोगों ने उन्हें संख्यात्मक बहुमत दिया होगा लेकिन अधिकतम मतदाताओं ने कभी किसी एक पार्टी को समर्थन नहीं दिया।
मुखर्जी का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष सत्ताधारी दल पर बहुसंख्यकवादी सरकार चलाने का आरोप लग रहा है। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर अपना संदेह भी जताया।
इसके आलावा मुखर्जी ने नया संसद भवन बनाए जाने के पीछे के तर्क पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, मुझे बहुत हैरानी होती है कि नये संसद भवन से भारत में संसदीय व्यवस्था के कामकाज में कैसे मदद मिलेगी या सुधार होगा।
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