न्यूज डेस्क
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने समय के साथ खुद में बड़ा बदलाव लाया है। हाइटेक हो चुका संघ अब तक देश के महापुरुषों के सहारे अपने विचारों को प्रचारित और स्थापित कर रहा था। संघ ने अब इसमें भी बदलाव किया है। संघ ने अब विदेशी बुद्धिजीवियों की सहायता लेने की रणनीति बनाई है, जिनके विचार संघ से मेल खाते हैं।
इसी कड़ी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ छह दिसंबर को भारतीय मूल के दिवंगत और नोबेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपॉल की कृति पर चर्चा के बहाने बड़ा कार्यक्रम का आयोजन किया है। दरअसल नायपॉल ने बाबरी ढांचा विध्वंस का समर्थन किया था। उन्होंने इसे ऐतिहासिक संतुलन का कृत्य बताते हुए कहा था कि अयोध्या एक जुनून था, जिसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है कि आरएसएस दिवंगत नायपॉल को उनकी कृति के बहाने ठीक उसी दिन याद कर रहा है, जिस दिन अयोध्या में विवादित ढांचे को कारसेवकों ने ढहा दिया था।
संघ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ नेता इंदे्रश कुमार, सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती शिरकत करेंगे।
गौरतलब है कि संघ अपने विचारों को स्थापित करने के लिए देश के ही महापुरुषों जैसे स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, वीर सावरकर का सहारा लेता रहा है। इसके इतर संघ ने अपने सरसंघचालकों हेडगेवार, गोलवलकर की भी सहायता ली है। चूंकि आरएसएस ने समय के साथ अपने में बदलाव किया है इसलिए वह बुद्धजीवियों को लेकर भी अपनी रणनीति बदली है। इसी कड़ी में वह नोबेल पुरस्कार विजेता बीएस नायपॉल को उनकी कृति पर चर्चा के बहाने उन्हें याद करने जा रहा है।
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