सुरेंद्र दुबे
कल दिल्ली पुलिस ने जिस तरह 11 घंटे तक निर्वाध रूप से दिल्ली पुलिस मुख्यालय पर प्रदर्शन किया, उसने पूरे देश में पुलिस आंदोलन की एक नींव रख दी है। ये सही है कि पुलिस के साथ तरह-तरह की ज्यादतियां होती हैं, पर अनुशासन के नाम पर पुलिस वाले जुबान नहीं खोल पाते हैं। पर कल जब जुबान खुली तो उनका दर्द सामने आ गया और उन्होंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की भी लुहु-लुहु कर दी।
आंदोलन को पुलिस के हर वर्ग का समर्थन प्राप्त था, इसीलिए आंदोलन सफलता पूर्वक दिनभर चलता रहा। बड़ी विचित्र स्थिति हो गई। दूसरों को सुरक्षा देने वाली पुलिस खुद सुरक्षा मांग रही और दूसरों को न्याय दिलाने वाले वकील खुद न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
दिल्ली में पुलिस के आंदोलन का मतलब है केंद्र सरकार के विरूद्ध आंदोलन, क्योंकि वहां पुलिस दिल्ली सरकार के बजाए केंद्र सरकार के अधीन काम करती है। कड़क स्वभाव के लिए मशहूर गृहमंत्री अमित शाह की आंखों के सामने दिल्ली पुलिस का वकीलों के विरूद्ध आंदोलन चलता रहा। आईटीओ पर भीषण जाम लगा रहा। परंतु इन लोगों को हटाने की हिम्मत किसी में नहीं दिखी। हो सकता है कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को अपनी कुर्सी गंवा कर इसकी कीमत चुकानी पड़े।
शनिवार, 2 नंवबर को तीस हजार कोर्ट में पुलिस और वकीलों के बीच जमकर मारपीट हुई। मारपीट की शुरूआत गाड़ी की पार्किंग से हुई, जो धीरे-धीरे आगजनी और पुलिस वालों की जमकर पिटाई में बदल गई। पुलिस की गोली से एक वकील घायल हुआ इसलिए बाद में वकील आपा खो बैठे और पुलिस वाले की जमकर पिटाई कर दी।
पुलिस और वकील दोनों के दामन अर्से से दागदार हैं इसलिए यह समझ पाना मुश्किल है की गलती किसकी ज्यादा है। पुलिस आए दिन बेगुनाह लोगों को पिट देती है और निलंबन जैसी सजा झेलती रहती है। वकील भी कम नहीं है मौका मिल जाता है तो पुलिस की भी तुडईया कर देते हैं।
पूरी घटना का दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान ले लिया, जिसके बाद पुलिस अफसरों ने दो पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। वकीलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई इसलिए पुलिस आपा खो बैठे और दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर दिन भर प्रदर्शन करते रहे। इस प्रदर्शन में पुलिस वालों के परिवार के लोग भी शामिल थे, इसलिए किसी प्रकार की जोर जबरजस्ती से सरकार बचती रही। रात आठ बजे की करीब पुलिस वालों की जब सारी मांगे मान ली गई, तभी जाकर धरना समाप्त हुआ। दो अज्ञात वकीलों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली गई।
यानी दिल्ली पुलिस ने कल वकीलों के सामने अपनी नाक ऊंची कर ली। इसलिए आज सुबह से वकीलों ने हंगामा काटना शुरू कर दिया। दिल्ली की साकेत कोर्ट, रोहणी कोर्ट और पटियाला हाउस कोर्ट में वकीलों ने काम बंद कर दिया। यानी कि कल पुलिस के कारण दिल्ली की जनता परेशान रही और आज वकीलों के कारण कोर्ट में काम नहीं हो सका। जाहिर है वकील अपनी लड़ाई काफी आगे तक ले जाएंगे। अन्यथा पुलिस के सामने उनकी हेठी हो जाएगी।
दिल्ली पुलिस की कल यूनियन बनाने की मांग भी स्वीकार कर ली गई, जो अनुशासन बनाए रखने के मार्ग में आगे चलकर काफी बड़ा रोड़ा साबित हो सकती है। अभी तक इस देश में किसी भी पुलिस बल को यूनियन बाजी की इजाजत नहीं दी गई है। हो सकता है आंदोलन समाप्त कराने के उद्देश्य से ही ये मांग मान ली गई हो, पर अब सरकार के लिए इससे पीछे हटना काफी मुश्किल हो सकता है।
वकीलों के पास तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया जैसा ताकतवर संगठन पहले से ही है, इसलिए वकील पीछे हटेंगे इसकी संभवना कम ही है। हमारे सिस्टम के दो महत्वपूर्ण अंग पुलिस और वकील का इस तरह भिड़ना और अपनी जिद पर अड़ जाना एक गंभीर चिंता का विषय है। हो सकता है कि सरकार न्यायपालिका के बल पर कोई राह तलाशने की कोशिश करे। पर सरकार के स्तर पर कोई भी निर्णय लेना एक टेढ़ी खीर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)