न्यूज डेस्क
एक बार फिर अयोध्या को लेकर माहौल गर्म है। पूरे देश को अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसले का इंतजार है। कोर्ट किसके हक में फैसला देगा यह तो आने वाला वक्त बतायेगा लेकिन जिस विवादित भूमि पर मालिकाना हक का दावा किया जा रहा है, दरसअल वह जमीन राजस्व रिकार्ड में नजूल की दर्ज है यानी वह सरकारी जमीन है।
विशेषज्ञों की माने तो जिस फैसले का पूरा देश इंतजार कर रहा है उसमें जमीन का नजल भूमि दर्ज होना पेंच फंसा सकता है। इस विवादित जमीन की स्थिति देखते हुए नजूल की जमीन पर मालिकाना हक के बारे में कानूनी स्थिति देखनी होगी।
अगर नजूल की जमीन किसी को आवंटित नहीं की गई है या उसका किसी को उपयोग का लाइसेंस नहीं दिया गया है तो वह जमीन सरकार की होती है। ऐसी जमीन की मालिक सरकार होती है। हां, उस जमीन पर कोई कब्जेदार हो सकता है। कब्जे का प्रकार अलग अलग हो सकता है, लेकिन मालिक नहीं हो सकता।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि कानूनन तो नजूल की जमीन सरकार की होती है। इस जमीन पर अगर दोनों में से कोई भी पक्ष अपना मालिकाना हक साबित नहीं कर पाता तो ऐसी स्थिति में कोर्ट कह सकता है कि जमीन सरकार की है और सरकार जो चाहे कर सकती है। लेकिन ये मुकदमा इतना सामान्य नहीं है।
एससी कर सकता है विशेष शक्तियों का इस्तेमाल
राम मंदिर का माला आस्था और देश की अस्मिता से जुड़ा है। ऐसे में कोर्ट मुकदमें की प्रकृति और फैसले के परिणाम को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए न्याय के हित में सरकार को जमीन के बारे में निर्देश दे सकता है।
न्यायाधीश सिंह कहते हैं कि नियम के मुताबिक अगर किसी जमीन का मालिक न रहे तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाती है। इसे इस्चीट का सिद्धांत कहते हैं यानी अगर जमीन किसी की नहीं रही तो सरकार में निहित हो जाएगी।
बतातें चले कि हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे के नजूल प्लाट पर स्थित होने के बारे में सुनवाई की थी और फैसला भी दिया था।
हाईकोर्ट ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुकदमें में जो विवादित बिंदु तय किये थे, उनमें एक सवाल विवादित ढांचे के नजूल प्लाट पर स्थित होने को लेकर था। इसमें कहा गया था कि क्या विवादित इमारत अयोध्या के रामकोट में नजूल प्लाट खसरा संख्या 583 पर स्थिति है। (नजूल संपत्ति?)। अगर ऐसा है तो उसका क्या प्रभाव होगा।
इस मामले में क्या कहा था इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों ने
इस मामले में हाईकोर्ट के तीनों जजों के विचार अलग-अलग थे। जहां जस्टिस एसयू खान ने कहा था चूंकि वहां स्थित इमारत 6 दिसंबर 1992 को ढहा दी गई इसलिए वह संपत्ति किस प्लाट पर थी यह चिन्हित करने या सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं रही।
वहीं जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि वह इमारत रामकोट मोहल्ले में नजूल प्लाट खसरा नंबर 583 पर स्थिति थी, फिर भी इसका दोनों समुदायों के पक्षकारों द्वारा किये गए दावे पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने विवादित संपत्ति पर कोई दावा नहीं किया है।
जबकि जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने कहा था कि संपत्ति नजूल प्लाट संख्या 583 पर स्थित है और संपत्ति सरकार की है।
जमीन के नजूल होने पर राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति की वकील रंजना अग्निहोत्री कहती हैं कि अगर ऐसा होता है तो मुकदमा खत्म होने के बाद 1993 का अयोध्या अधिग्रहण कानून क्रियान्वित हो जाएगा, तब सरकार उस जमीन का जो चाहे कर सकती है।
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