सुरेंद्र दुबे
भाजपा ने हरियाणा का किला तो फतह कर लिया। भले ही उसे जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला को बेमन से उपमुख्यमंत्री का पद सौंपने के लिए राजी होना पड़ा। खबर यह भी है कि दुष्यंत चौटाला की मां को भी मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है।
भाजपा को चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए इसलिए राजी होना पड़ा क्योंकि वह केवल निर्दलीयों के बल पर सरकार बनाकर सर पर तलवार नहीं अटकाए रहना चाहती थी। कल दोपहर दो बजे मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री की शपथ ले सकते हैं। यानी कि उनकी दीपावली शुभ हो गई।
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ी थी। वहां मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पेंच फंस गया है। इसलिए दीपावली के बाद ही सरकार बनने की संभावना है।
भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है। इसलिए शिवसेना 50-50 के फॉर्मूले के तहत ढ़ाई साल आदित्य ठाकरे और ढ़ाई साल देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पर अड़ी हुई है। अब ये फॉर्मूला कब बना था इसकी सच्चाई सिर्फ शिवसेना को मालूम है। क्योंकि भाजपाई इस फॉर्मूले को न तो नकार रहे हैं और न ही स्वीकार कर रहे हैं।
चुनाव के पहले भाजपा लगातार दो-तिहाई बहुमत की डींगे हाक रही थी, पर गठबंधन बमुश्किल बहुमत पार कर सका। अकेले भाजपा बहुमत में भी नहीं आई। यानी कि बगैर शिवसेना के भाजपा सरकार नहीं बना सकती।
भाजपा का सपना था कि वह अपने बलबूते बहुमत प्राप्त करेगी और सरकार भले ही शिवसेना के साथ मिलकर बनाए परंतु शिवसेना को घुटनों के बल बैठने पर मजबूर कर देगी, पर हुआ उल्टा। अब शिवसेना डिक्टेट कर रही है की उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए। पूरे ढाई साल के लिए वह भी भाजपा से पहले।
शिवसेना के मुखपत्र सामना में लगातार भाजपा पर प्रहार किए जा रहे हैं। एनसीपी नेता शरद पवार की तारीफ की जा रही है। इशारा साफ है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो वे पवार और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रयास कर सकते हैं। इस तरह का कोई संकेत कांग्रेस या एनसीपी खेमे से नहीं है। पर वो लोग भी मौज ले रहें हैं। जब ऐसी कोई स्थिति आएगी तब निर्णय लेंगे। अभी तो सिर्फ ख्याली पुलाव पक रहे हैं।
भाजपा की मुश्किल ये है वैसे ही हरियाणा में चौटाला के साथ सरकार बनाने के लिए मजबूर होने के कारण उनकी साख पर बट्टा लगा है। अब भाजपा नहीं चाहती कि महाराष्ट्र में शिवसेना के कारण उसे कोई राजनैतिक दांव झेलना पड़े। इसलिए वह उद्धव ठाकरे को मनाने में लगी है।
शिवसेना भी जरूरत से ज्यादा भाव खा रही है। उसके सामने भी भाजपा के साथ बने रहने का ही वास्तविक विकल्प है। पर सौदे बाजी में शिवसेना को उपमुख्यमंत्री का पद मिल सकता है। इसके संकेत मिल रहे हैं। उनके मंत्रियों की संख्या भी बढ़ सकती है और केंद्र सरकार में भी उनका कोटा बढ़ सकता है।
चुनाव से पहले भी शिवसेना आधे-आधे सीटों पर चुनाव लड़ने पर अड़ी हुई थी। परंतु अंतत: उन्हें 124 सीटों पर ही राजी होना पड़ा और भाजपा 164 सीटों पर चुनाव लड़ी। स्पष्ट है कि शिवसेना को अगर उपमुख्यमंत्री का पद मिल जाएगा तो बाकी मांगे वह छोड़ने को तैयार हो सकती है। भाजपा हाईकमान भी इस भरोसे में है कि शिवसेना उनका साथ छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली। बस सौदेबाजी चल रही है। शिवसेना की कोशिश है अधिक से अधिक हथिया लें और भाजपा चाहती है कम से कम पर पटिया लें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)