न्यूज डेस्क
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी बहुमत के आंकड़े को छूने में जुट गई है। बीजेपी के पास जादुई आंकड़े से 6 विधायक कम हैं, गोपाल कांडा-रंजीत सिंह ने बीजेपी को समर्थन का वादा कर दिया है। बचे बाकी निर्दलीय विधायक आज दिल्ली में बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर सकते हैं। माना जा रहा है कि यही मुलाकात हरियाणा में अगली सरकार के लिए निर्णायक हो सकती है।
वहीं, दूसरी ओर महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत तो मिल गया है, लेकिन शिवसेना ने 50-50 का फॉर्मूला देकर बीजेपी पर दबाव बना दिया है।
मुंबई में उन्होंने खुले तौर पर कहा कि चुनाव से पहले बीजेपी के साथ जिन बिंदुओं पर बात हुई थी उसे लागू करने का समय आ गया है। जब वो इस बात को कह रहे थे तो उनका मकसद साफ था कि बीजेपी-शिवसेना दोनों दलों का सीएम ढ़ाई ढ़ाई साल के लिए होना चाहिये।
सामना में संपादकीय में शिवसेना ने एक तरह से परोक्ष तौर पर बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधा गया है। सामना में लिखा गया है कि अति उत्साह में मत आओ,. सत्ता की धौंस दिखाओगे तो याद रखो। इसके साथ ही दलबदल करने वालों नेताओं पर भी टिप्पणी की गई है जैसे दूसरे दलों में सेंध लगाकर और दल बदल कर बड़ी जीत हासिल की जा सकती है इस भ्रम को जनता ने तोड़ दिया है। पार्टी बदलकर और टोपी बदलने वालों को जनता ने घर भेज दिया है।
हालांकि, दोनों राज्यों के नतीजों के बाद पीएम मोदी ने कहा कि बीजेपी महाराष्ट्र इकाई और बीजेपी हरियाणा इकाई के सभी पदाधिकारी, सभी कार्यकर्ता, उन्होंने भी जनता का विश्वास जीतने में अथाह प्रयास किया, लोगों के आशीर्वाद प्राप्त किए, उनका भी बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में हमें पिछले चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, हरियाणा में सिर्फ 2 सीटों का बहुमत था, इसके बावजूद भी दोनों मुख्यमंत्रियों ने सबको साथ लेकर दोनों राज्यों की जो सेवा की और अविरत कार्य करते रहे, ये उसी का परिणाम है कि उनपर जनता ने दोबारा अपना विश्वास जताया है।
भाषण के दौरान पीएम मोदी ने कहा 2014 के पहले तक ये हमारी स्थिति थी, वैसी स्थिति में से जिस प्रकार से हमारी नई टीम को पांच साल वो भी सिर्फ दो का बहुमत था। इन सबके बावजूद पांच वर्ष काम करके फिर से आना हरियाणा के भाजपा को जितनी बधाई दें उतनी कम है। उन्होंने कहा कि बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर के 5 साल तक महाराष्ट्र में स्थिर शासन दिया और इस बार भी इस गठबंधन को महाराष्ट्र की जनता ने विजयी बनाया। पीएम मोदी ने कहा कि मैं हरियाणा और महाराष्ट्र के लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि हम उनकी सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार थी और कुछ माह पहले लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने के बाद तो ये माना जा रहा था कि महाराष्ट्र और हरियाणा में एक बार फिर बीजेपी की ही सरकार बनेगी। लेकिन बीजेपी से आखिर कहां चूक हो गई, जिसके वजह से महाराष्ट्र और दोनों जगह सीट कम हो गई। वो भी तब जब बीजेपी कश्मीर से अनुच्छेद 370, ट्रिपल तलाक, राम मंदिर, राष्ट्रवाद और कॉमन सिविल कोड को चुनाव मुद्दा बनाकर मैदान में उतरी थी।
हालांकि इसे बीजेपी की असफलता तो नहीं कहा जा रहा है क्योंकि दोनों ही राज्यों में पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही है। लेकिन यह सवाल जरूर उठ रहा है कि क्या राज्यों में पार्टी का ‘राष्ट्रवाद’ का मुद्दा उतना मजबूत नहीं बन पा रहा है जितना लोकसभा चुनावों में बना था? लोकसभा चुनावों के मुकाबले विधानसभा चुनावों में कम वोट मिलना बीजेपी को आत्ममंथन करने के लिए जरूर मजबूर करेगा।
ऐसा माना जा रहा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी सरकार के फैसलों को जोर-शोर से उठाए जाने की पार्टी की पॉलिसी पर लोकल मुद्दे और राजनीति भारी पड़ गई है। स्थानीय मुद्दों के अलावा शायद बीजेपी का राज्यों में जातीय गणित भी इस बार उतना फिट नहीं बैठा जैसा अब से पहले के चुनावों में बैठता रहा है। अब कहा जा रहा है पार्टी स्थानीय चुनावों में पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही लोकल मुद्दों पर ज्यादा फोकस करेगी।
विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी ने राज्य में बनते सरकार विरोधी माहौल को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया। स्थानीय मुद्दों को साइड लाइन किया जाना ही पार्टी को लोगों से दूर करने में अहम रहा। इसके साथ ही हरियाणा में जहां लोकसभा चुनावों में जाट समुदाय ने पूरी तरह मोदी के समर्थन में वोटिंग की थी, वहीं विधानसभा चुनावों में जाटों द्वारा बिल्कुल किनारे किए जाने से भी पार्टी चौंक गई है।