Wednesday - 30 October 2024 - 4:52 AM

तो क्या पश्चिम बंगाल में पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिमों को मिलेगी नागरिकता

न्यूज डेस्क

इतिहास गवाह है कि पश्चिम बंगाल में कभी राजनीतिक घमासान थमी नहीं। पहले भी घमासान था और आज भी घमासान जारी है। बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल में शुमार भारतीय जनता पार्टी आए दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए कोई न कोई मुश्किल खड़ी कर ही देती है। एक बार फिर बीजेपी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने के कानून में बदलाव किया जाए।

यह सच है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा चुनौती पश्चिम बंगाल में मिली थी। टीएमसी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पायी थी। उन्होंने जितनी सीटें जीतने का दावा किया था, उतना वह जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थीं। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अच्छा प्रदर्शन किया था।

लोकसभा चुनाव के बाद भी बंगाल में राजनीतिक घमासान रूकी नहीं। बीजेपी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लगातार चुनौती दे रही है।

बीजेपी पूरी तरह से विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर सारी सियासी चाल चल रही है। बीजेपी के मंसूबों को टीएमसी भी समझ रही है, इसलिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की क्लास लेने को मजबूर हो गई। प्रशांत के कहने पर उन्होंने काफी बदलाव किया है।

फिलहाल एक बार फिर बीजेपी ने ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। पश्चिम बंगाल की भाजपा इकाई ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने के कानून में बदलाव किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि गैर मुस्लिम शरणार्थियों से छह साल भारत में रहने की शर्त हटाकर शपथपत्र लेकर नागरिकता दी जाए।

राजनीतिक दलों की सारी लड़ाई वोट बैंक की होती है। यदि बीजेपी इसे करने में कामयाब होती है तो निश्चित ही चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा।

ऐसा माना जा रहा है कि अगले महीने से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में सरकार फिर से नागरिकता (संशोधन) विधेयक को संसद की मंजूरी के लिए पेश कर सकती है। जनवरी में यह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में विरोध के चलते इसे राज्यसभा में नहीं रखा गया था।

इस मामले में बंगाल भाजपा के महासचिव सत्यांत बसु ने कहा कि भारत की स्थाई नागरिकता के लिए यहां छह साल रहने की शर्त को हटा देना चाहिए। इसके स्थान पर सरकार शरणार्थियों से एक शपथ पत्र ले सकती है। पार्टी ने इस मुद्दे को गृह मंत्री अमित शाह के सामने उठाया है।

गौरतलब है कि हाल के दिनों में कोलकाता में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों को संबोधित करते हुए इस बारे में बात की थी। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तंज कसते हुए कहा कि ‘मैं सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि उन्हें भारत छोडऩे के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। आप अफवाहों पर ध्यान न दें।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था।
12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी है।
अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।

इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी।

क्यों है विवाद?

इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है।

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