न्यूज डेस्क
सदियों पुराने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की पीठ मामले पर विचार करने के लिए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट चैंबर में बैठेगी और मामले पर विचार करेगी।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी पक्षों को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के लिए तीन दिन का समय दिया गया। अगले तीन दिन में पक्षकारों को लिखित हलफनामा अदालत में सबमिट करना होगा।
उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले पर एक महीने के अंदर फैसला आ सकता है, हालांकि अदालत की ओर से फैसले की कोई तारीख निश्चित नहीं की गई है। जिसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं, दोनों पक्षों के वकील दावा कर रहे हैं कि फैसला उनके पक्ष में आने जा रहा है।
हालांकि, 40 दिन तक लगातार सुनवाई चलने के बाद मामले में नाटकीय मोड़ आ गया है। छह पक्षकारों में से एक पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ने पर सहमति दी है, लेकिन इसके लिए कुछ खास शर्तें भी तय की हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि 2.77 एकड़ की जमीन के बंटवारे के इस विवाद में वह समझौते तक पहुंच चुका है। पैनल के मुताबिक मुस्लिम पक्ष राम मंदिर के लिए कुछ शर्तों के साथ विवादित भूमि पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार हैं।
सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अनी अखाड़े का एक प्रतिनिधि (सभी 8 निर्मोही अखाड़े इसके तहत आते हैं), हिंदू महासभा और राम जन्मस्थान पुनरुद्धार समिति ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस सेटलमेंट में मुस्लिम पक्ष ने राम मंदिर को उचित स्थान देने के बदले कुछ शर्तों का भी जिक्र किया गया है।
सेटलमेंट के अनुसार मुस्लिम पक्ष की शर्त है कि 1991 के कानून का सख्ती से पालन किया जाए जिसके तहत 15 अगस्त 1947 से जारी व्यवस्था के अनुसार यह जगह सबके लिए प्रार्थना स्थल के तौर पर प्रयोग होती थी। इसके साथ ही अयोध्या में सभी मस्जिदों की मरम्मत और खासतौर पर दूसरे स्थान पर वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए जगह देने की भी शर्त रखी गई है।
हालांकि समझौते के लिए हुई मध्यस्थता में विवादित भूमि के दो बड़े दावेदार वीएचपी समर्थित राम जन्मभूमि न्यास और रामलला विराजमान और जमीयत उलेमा शामिल नहीं हुए। सूत्रों का कहना है कि मुस्लिम पार्टियों ने अपना दावा छोड़ दिया है और राम मंदिर निर्माण के लिए सहमति दे दी है। न्यास के लिए यह समझौता हर तरह से फायदे का ही है। सुप्रीम कोर्ट से यदि फैसला पक्ष में आता है तो भी उन्हें अधिकतम जमीन पर मालिकाना हक और मंदिर निर्माण का ही अधिकार मिल सकता है।
2 दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारूकी को पर्याप्त सुरक्षा देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त श्रीराम पांचू ने कोर्ट को बताया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की जान को खतरा है और उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं।
समझौते के लिए इन मुद्दों पर बनी है सहमति
1-बोर्ड ने देश के सभी धार्मिक स्थलों की 1947 से पहले वाली स्थिति बरकरार रखने के कानून को लागू करने की मांग की है। 1991 में लागू स्पेशल प्रॉविजन ऐक्ट के तहत धार्मिक स्थलों को दूसरे स्थान में परिवर्तिन न किया जाए। यह ऐक्ट रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में लागू नहीं होता है।
2- 2.77 एकड़ की विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष अपना दावा छोड़ेंगे। इसके बदले में सरकार अयोध्या में सभी मस्जिदों के मरम्मत का काम पूरा करे और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए दूसरी जगह मुहैया कराई जाएगी।
3- ऑर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया मैनेजमेंट मुस्लिमों के प्रार्थना के लिए कुछ मस्जिदों को खोले और कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिटी और मुस्लिम पार्टियां इसका फैसला करेंगी कि किन मस्जिदों को पूजा के लिए खोला जाए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल के सदस्य जस्टिस कलिफुल्ला, वरिष्ठ वकील पांचू और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि जमीयत धड़े के लिए भी इस सेटलमेंट को इनकार करना बहुत मुश्किल होगा।
मध्यस्थता पैनल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट अगर मुस्लिम पार्टियों के पक्ष में फैसला देती है तब भी मस्जिद निर्माण का दायित्व सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही दिया जाएगा। सेक्शन 51 ऑफ वक्फ ऐक्ट के तहत सुन्नी वक्फ बोर्ड ही विवादित भूमि की संरक्षक हो सकती है। ऐसी परिस्थिति में अगर मुस्लिम पार्टी विजेता बनते हैं तब भी वक्फ बोर्ड को अधिकार है कि वह जमीन पर अपना दावा छोड़ दे।