शबाहत हुसैन विजेता
मौसम बदला तो डेंगू का डंक चुभने लगा। फुल ड्रेस कोड का फरमान सुना दिया गया। बच्चे स्कूल जाएंगे फुल आस्तीन शर्ट पहनकर। टीचर को भी हाफ आस्तीन शर्ट पहनने की इजाज़त नहीं है। सरकारी अमला जागा है जब मौतों की दस्तक शुरू हो गई है। जब एक प्रमुख सचिव अस्पताल के बेड तक पहुंच चुका है।
डेंगू जानलेवा है लेकिन वक़्त पर लोग जाग जाएं तो डेंगू का मच्छर पनपते ही उसे मसला जा सकता है। दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल ने एक महीना पहले दिल्ली के लोगों को डेंगू मच्छर के मुकाबले पर खड़ा कर दिया था। केजरीवाल ने हर संडे को सुबह 10 बजे 10 मिनट के लिए पूरी दिल्ली को डेंगू मच्छर की तलाश में लगा दिया था।
डेंगू का मच्छर साफ पानी में पनपता है। घर के भीतर और बाहर कहीं भी पानी जमा हो तो उसे वक़्त रहते हटा देने पर डेंगू का मच्छर नहीं पनप पाता है। इसके लिए घर के गमले चेक करना चाहिए। उनमें एक्स्ट्रा पानी जमा हो तो फेंक देना चाहिए। घर की छत और आंगन में कहीं भी थोड़ा सा भी पानी जमा रहने पर वह जानलेवा बन सकता है।
डेंगू लाइलाज नहीं है लेकिन यह जानलेवा हो सकता है। मच्छर जिसे भी अपना शिकार बना लेता है, उसके प्लेटलेट्स घट जाती हैं। प्लेटलेट्स कम होती हैं तो वह खून मांगती हैं। ज़्यादातर मरीज़ों को खून मिल भी जाता है लेकिन कुछ मरीज़ों का रेयर ब्लड ग्रुप होता है, जो पैसा खर्च करने के बाद भी मुहैया नहीं हो पाता और लगातार घटती प्लेटलेट्स मरीज़ के लिए जानलेवा बन जाती हैं।
अम्बेडकर नगर का उदयीमान शायर अमन चांदपुरी डेंगू का शिकार होकर पीजीआई में भर्ती हुआ। उसकी डाउन होती प्लेटलेट्स को एबी पॉजिटिव ब्लड से पटरी पर लाया जाता रहा लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद जब एबी पॉज़िटिव ब्लड मिलना बंद हो गया तो एक होनहार शायर की ज़िन्दगी खत्म हो गई।
अमन को अम्बेडकर नगर से लखनऊ के शेखर अस्पताल लाया गया था, वहां से उसे पीजीआई भेजा गया था। अमन के लिए लखनऊ के कवियों ने रात-दिन एक कर दिया, सोशल मीडिया पर ब्लड देने की अपील की गई। तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका।
अमन की मौत के बाद व्यवस्था जाग गई है। अमन चांदपुरी के इलाज की फाइल हेल्थ डिपार्टमेंट ने तलब की है। अफसर देखेंगे कि कहां- कहां उसका इलाज हुआ। कहाँ वह किस पोज़ीशन में था। मौत की वजह तो तय है, लेकिन लापरवाही कहाँ हुई यह तय करना बाकी है। उसकी फाइल की जांच के बाद ज़िम्मेदार अस्पताल और ज़िम्मेदार डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
ज़िम्मेदार पर कार्रवाई से क्या अमन चांदपुरी की वापसी हो जाएगी। हिन्दी और उर्दू साहित्य का जो नुक़सान हुआ, क्या उसकी भरपाई हो जाएगी।
कार्रवाई तो जनता और सरकार को मिलकर करनी चाहिए। वक़्त रहते रुके हुए पानी को हटा दिया जाए तो डेंगू का डंक तैयार ही न हो पाए।
बीमारियां जब पैर पसार लेती हैं तब सरकारी अमला जागता है। नगर निगम अगर हर दिन सफाई सुनिश्चित करे। नालों की सफाई निरंतर होती रहे, सड़कों पर कूड़े। का ढेर लगने ही न दिए जाएं। सीवर चोक होने की नौबत ही न आने दी जाए। तो शायद फागिंफ की ज़रूरत भी न पड़े। हर तरफ सफाई को ज़रूरी बना दिया जाए तो अस्पतालों को भी बड़ी राहत मिल जाये।
जब प्रधानमंत्री हाथ में झोला लेकर समुद्र तट की सफाई में जुट सकता है तो फिर आम आदमी को किस बात की शर्म है। बहुत से लोग इसे पीएम मोदी की नौटंकी भी करार दे सकते हैं, लेकिन यह नौटंकी करने से किसी को रोका तो नहीं गया है। सब मिलकर नौटंकी करें। दिखावे के लिए ही सही सभी लोग एक-एक झोला लेकर निकल पड़ें तो कहीं गंदगी नज़र भी न आएगी।
आज डेंगू का डंक चुभ रहा है, तो यह दर्द हो रहा है, लेकिन अगर अभी भी नहीं जागे और सोते रहे तो कुछ दिन बाद स्वाइन फ्लू सताएगा, मलेरिया की सौगात मिलेगी।
सड़क पर सफाई करने से शर्म आ सकती है लेकिन घर के भीतर की सफाई में शर्म कैसी? हालांकि अब तो सड़क साफ करना भी फैशन बन चुका है।
घर के अंदर सफाई रखी जाए, कहीं पानी का ठहराव न होने दिया जाए। घरों में तुलसी लगाई जाए, पपीता लगाया जाए। डेंगू हो जाये तो अनार का जूस दिया जाए। पपीते के पत्तों की कोपलें उबालकर पिलाई जाएं, गिलोय का काढ़ा पिलाया जाए।
मरीज़ को बचाने का हर जतन किया जाता है। किया भी जाना चाहिए लेकिन अगर मर्ज को शुरू ही न होने दिया जाए तो तमाम दिक़्क़तों से बचा जा सकता है। घर के भीतर का ज़िम्मा घर का हर सदस्य निभा ले तो घर के बाहर की सफाई के लिए नगर निगम को मजबूर किया जा सकता है।
डेंगू जानलेवा है लेकिन इससे लड़ा जा सकता है। डेंगू डराता है लेकिन अगर सफाई के प्रति जागरूकता आ जाये तो डेंगू भी डर सकता है। लोग कमर कस लें तो डेंगू मर भी सकता है। डेंगू से कुछ मौतों के बाद सरकार जागी है। बेहतर है कि खुद उसका शिकार होने से पहले लोग भी जाग जाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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