Thursday - 31 October 2024 - 6:45 PM

क्या हम समझते है दशहरा का सही अर्थ

केपी सिंह

सभी को दशहरा के पुनीत पर्व की हार्दिक बधाई और शुभ कामनायें

दशहरे के बाद पूरी जगमग के साथ हम लोग दीपावली का त्यौहार मनायेगें जो कि रामराज की स्थापना की तिथि मानी जाती है। रामराज यानी ऐसा राज जिसके बारे में कहा गया है कि दैहिक, दैविक, भौतिक तापा। रामराज नहीं काहुहि व्यापा।

आधुनिक राजनीतिक विचारकों ने जिस चरम आदर्श राज्य की कल्पना की है उसमें वे मानते है कि राज्य पूरी तरह विलोपित हो जायेगा क्योंकि कितना भी कल्याणकारी क्यों न हो इन लोगो के नजरिये से राज्य अंततोगत्वा राज्य आम लोगों के दमन और शोषण की संस्था है।

लेकिन आधुनिक राजनीतिक विचारकों के पहले जो रामराज रहा है वह उनके यूटोपिया से बहुत आगे, साकार रूप में था। इस राज में बीमारी के नाम पर कैंसर जैसे जानलेवा रोग की बात तो दूर ,साधारण बुखार तक किसी को नहीं होता था। न बाढ न सूखा न अतिवृष्टि न भूकम्प और न ज्वालामुखी किसी प्राकृतिक आपदा की विनाशलीला से लोगो का सामना हो सकता था। चोरी, डकैती, राहजनी या ऐसा कोई अन्य उत्पात करने वालों बदमाशों की नस्ल का नाम तक लोगों को याद नहीं रह गया था।

स्वर्ग से भी अधिक खुशहाल और खुशनसीब रामराज भगवान ने इस पृथ्वीलोक पर कायम कर के दिखाया लेकिन यह समझना होगा कि रामराज न आता अगर दशहरे की परिणति पर भगवान राम ने अपने को न पहुचाया होता।

अयोध्या के साम्राज्य के युवराज घोषित होने के बाद राम ने वैभव और ऐश्वर्य में लीन होने की बजाय इन प्रवंचनाओं का त्याग कर के 14 वर्ष वनवासी जीवन में अपने आचरण को शुद्ध, निर्मल और पवित्रता की कसौटी बनाने की कठिन साधना की।

हर व्यक्ति के अन्दर देव और दानव अलग-अलग प्रवृत्तियों के रूप में उपस्थित होते है। दानव दशानन नहीं शतानन और बल्कि कई सहस्त्रानन है। 14 वर्षो में हर दिन अन्दर की बुराई के एक दानव को मिटाने की अभियान लीला भगवान राम ने चलाई ताकि लोगों को समझा सके कि धर्म का रास्ता क्या है।

रामराज भी राज्यविहीन स्तर पर पहुची उत्कर्ष व्यवस्था थी। ऐसी व्यवस्था जिसे लागू करने के लिये भगवान ने कोई संविधान नहीं गढा और न ही प्रशासन व पुलिस जैसी संस्थाओं के जोर का इस्तेमाल किया। रामराज की व्यवस्था का श्रोत था। राजा राम का खुद का उदात्त आचरण यानी उनकी सुन्नत। भगवान ने अपने को उद्दीपक उदाहरण बनाया ,जिससे वशीभूत बच्चा-बच्चा मंत्रबिद्ध सा उन्ही के अनुरूप आचरण करने को प्रेरित था।

क्या हम दशहरे के इस अर्थ को समझतें है। नहीं समझते है तो समझना होगा क्योंकि रामराज के शिखर पर पहुचने का सोपान है दशहरा जो भगवान राम की 14 वर्ष की संयम और निग्रह की तपश्चर्या की पूर्णाहुति है।

दशहरा हम पर कर्तव्यों का बोझ डलता है। दशहरे का अनुष्ठान तब सार्थक है जब इस दिन किसी एक बुराई के दानव से छुटकारा पाने की प्रतिज्ञा की जाये। पहली साल नशा न छोड सके तो क्रोध, लोभ या दूसरे को नुकसान पहुचाने की नीयत से झूठ न वोलने का संकल्प लिया जा सकता है। हर दशहरे पर इसकी अग्रसरता से अन्दर की बुराईयों के दमन का हमारा अभ्यास और मजबूत होगा और अपने में निखार लाने के लिये कठिन से कठिन प्रतिज्ञा की इच्छा शक्ति को हम अपने अन्दर मजबूत होता पायेंगें।

भगवान राम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया है। अगर हम उन्हें आराध्य मानते है तो विधिक मर्यादाओं के अनुशीलन में हमें उन देशों से आगे निकलने की होड करनी चाहिए। जो इसी गुण की वजह से विकसित होने का दर्जा प्राप्त कर सके है। हेलमेट और सीट बैल्ट को लेकर भारी जुर्माने के प्रावधान की बहुत आलोचना हो रहीं है लेकिन सरकार अगर यातायात नियमों के उल्लंघन के लिये एक भी रूपयें जुर्माना न वसूलने की धोषणा कर दे तो राम के उपासक होने के नाते ऐसे नियमों के स्वतः पालन की कटिबद्धता हमारे अन्दर होनी चाहिए।

सार्वजनिक हैण्डपम्पों को बुन्देलखण्ड में जहां पानी का घोर संकट है निजी जागीर बना कर इस पर समरसेविल लगवाने वाले लोग अगर भगवान राम की पूजा करते है तो वे जान लें की उन्हें इस पूजा का कोई फल नहीं मिलेगा। विधिक मर्यादा की अवहेलना देशद्रोह है, समाजद्रोह है और ऐसे लोग राम द्रोही भी है।

परमपरागत मर्यादाओं की संहिता पाप और पुण्य के कर्म विभाजन में निहित है । वृक्षों के बिना हमारी पूजायें सम्पन्न नहीं हो सकती। बरगद, आंवला , पीपल , बेलपत्र आदि तमाम वनस्पतियां किसी न किसी पर्व से जोडी गयी है जो विज्ञान सम्मत है इन वृक्षों में देवताओं के वास के मिथक की पुष्टि विज्ञान ने इनमें जीवन ढूढकर कर दी है। फिर भी किसी लोभ में हरे वृक्ष को काटने के पापाचरण से हम बाज नहीं आते। दशहरें को मर्यादा दिवस के रूप में मनाते हुये खुद हरे वृक्ष को काटने में भागीदार न बनने और किसी को हरें वृक्ष न काटने देने की प्रतिज्ञा भी इस अवसर पर ठानना समीचीन है।

क्या दशहरा की आयोजना की इस दृष्टि का वरण कर अपने सांस्कृतिक गौरव को हमें एक नया अवलंब प्रदान नहीं करना चाहिए।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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