न्यूज डेस्क
देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं अब आम हो गई हैं। आए दिन देश के किसी न किसी जगह से ऐसी खबरें आती रहती हैं। पिछले दिनों देश की कई जानी-मानी हस्तियों ने चिंता जतायी थी और प्रधानमंत्री मोदी के नाम खुला खत भी लिखा था।
फिलहाल इस मामले में खबर यह है कि खुला खत लिखने वाले विभिन्न क्षेत्रों के 49 हस्तियों के खिलाफ गुरुवार को एफआईआर दर्ज किया गया है।
यह एफआईआर बिहार के एक वकील सुधीर कुमार ओझा की ओर से दो माह पहले बिहार की एक अदालत में याचिका दायर किया था। इस याचिका पर मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के आदेश के बाद यह प्राथमिकी दर्ज हुई है।
वकील ओझा ने बताया कि सीजेएम ने 20 अगस्त को उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी। इसके बाद गुरुवार को सदर पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज हुई।
ओझा का आरोप है कि इन हस्तियों ने देश और प्रधानमंत्री मोदी की छवि को कथित तौर पर धूमिल किया। इसके साथ ओझा ने सभी 49 हस्तियों पर अलगाववादी प्रवृत्ति का समर्थन करने का भी आरोप लगाया।
गौरतलब है कि 23 जुलाई को लिखे गए पत्र में इन लोगों ने मांग किया कि ऐसे मामलों में जल्द से जल्द और सख्त सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
पत्र लिखने वालों में गायिका शुभा मुद्गल, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फिल्मकार श्याम बेनेगल, फिल्मकार मणि रत्नम, अपर्णा सेन, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, अनुराग कश्यप सहित विभिन्न क्षेत्रों की कम से कम 49 हस्तियां शामिल थीं।
इस मामले में पुलिस ने बताया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। इसमें राजद्रोह, उपद्रव करने, शांति भंग करने के इरादे से धार्मिक भावनाओं को आहत करने से संबंधित धाराएं लगाई गईं हैं।
पत्र में लिखा गया था, ‘मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रही लिंचिंग की घटनाएं तुरंत रुकनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें देखकर हम चौंक गए कि साल 2016 में देश में दलितों के साथ कम से कम 840 घटनाएं हुईं। इसके साथ ही हमने उन मामलों में सजा के घटते प्रतिशत को भी देखा।’
पत्र के मुताबिक, ‘फैक्टचेकर डॉट इन डाटाबेस के 30 अक्टूबर 2018 के आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 तक धार्मिक पहचान के आधार पर घृणा अपराध के 254 मामले देखने को मिले। द सिटिजंस रिलिजियस हेट क्राइम वाच के अनुसार, ऐसे मामलों के 62 फीसदी शिकार मुस्लिम (देश की 14 फीसदी आबादी) और 14 फीसदी शिकार ईसाई (देश की दो फीसदी आबादी) थे।’
पत्र में कहा गया कि इनमें से लगभग 90 फीसदी मामले मई 2014 के बाद सामने आए जब देश में आपकी सरकार आई। प्रधानमंत्री ने लिंचिंग की घटनाओं की संसद में निंदा की जो कि काफी नहीं था। सवाल यह है कि वास्तव में दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई?
पत्र में आगे लिखा है, ‘हम महसूस करते हैं कि ऐसे अपराधों को गैर-जमानती बनाने के साथ जल्द से जल्द सख्त सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। अगर हत्या के मामलों में बिना पैरोल के प्रावधान के उम्रकैद की सजा दी जा सकती है तो ऐसी ही व्यवस्था लिंचिंग के मामलों में क्यों नहीं हो सकती है, जो कि अधिक क्रूर है? किसी भी नागरिक को अपने ही देश में भय के माहौल में नहीं जीना चाहिए।’
इन हस्तियों ने पत्र के आखिर में कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि हमारे सुझावों को एक चिंतित भारतीय और देश के भविष्य को लेकर व्याकुल नागरिक द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं के रूप में ही लिया जाएगा।’
गौरतलब है कि इन 49 हस्तियों के पत्र के जवाब में कंगना रनौत, प्रसून जोशी, समेत 62 हस्तियों ने खुला खत लिखा था। इन लोगों का कहना था कि कुछ लोग चुनिंदा तरीके से सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर करते हैं। इसका मकसद सिर्फ लोकतांत्रिक मूल्यों को बदनाम करना है। उन्होंने पूछा कि जब नक्सली वंचितों को निशाना बनाते हैं तब वे क्यों चुप रहते हैं?
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