राजीव ओझा
पहले मैनपुरी उसके बाद इटावा का सैफई मेडिकल कॉलेज। बेटियों और महिला से जुड़ी ताबड़तोड़ तीन वारदातों ने समाज को झकझोर दिया। ख़ास बात ये कि ये बेटियाँ मेधावी थीं और अपने बूते कुछ बनने का सपना संजोये हुए थीं। लेकिन ऐसा हो न सका।
मैनपुरी के जवाहर नवोदय विद्यालय की छात्रा अनुष्का 16 सितम्बर को संदिग्ध हालात में हॉस्टल के कमरे में फंदे से लटकी मिली। प्रिंसिपल, वार्डन और दो छात्रों के खिलाफ गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज है। मामले की जांच की सिफारिश सीबीआई से की गई है। इसके बाद इटावा में सैफई मेडिकल कॉलेज की एमडी की स्टूडेंट डॉ. वंदना ने फांसी लगा कर जान दे दी। इसमें वंदना के पिता ने दो डॉक्टरों के खिलाफ उत्पीडन की रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके दो दिन बाद ही मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग की स्टूडेंट कंचन की गुमशुदगी की रिपोर्ट उसके पति ने दर्ज कराई।
आखिर बेटियों का उत्पीडन कौन कर रहा है? अलग अलग शहरों की इन बेटियों की जिंदगी का सफर अधूरा रह गया। हालात और कारण भी एक जैसे। कहते हैं अब इंटरनेट का जमाना है, सोशल मीडिया जैसे वृहद् प्लेटफॉर्म हैं, फेसबुक, वाट्सअप पर हमारे हजारों दोस्त हैं। फिर क्यों हम अपनी समस्याओं को अपनो से साझा नहीं करते। क्यों भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं।
डॉ. वंदना शुक्ला के परिजनों ने कॉलेज प्रशासन को दोषी ठहराया
आपको याद होगा 23 सितम्बर को अपने हॉस्टल के कमरे में फाँसी के फंदे से लटक पैथोलॉजी विभाग से एमडी द्वितीय वर्ष की छात्रा डॉक्टर वंदना शुक्ला ने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में एक मोड़ तब आया जब 28 सितम्बर को वंदना शुक्ला के पिता के के शुक्ला ने इटावा के जिलाधिकारी जे बी सिंह से मुलाक़ात कर एसएसपी को लिखी लिखित तहरीर में कॉलेज प्रशासन के दो डॉक्टरों मनी कृष्णा और दुर्गा तिवारी पर बेटी को परेशान करने, बेइज्जती करने एवं प्रताड़ित करने का आरोप लगाया।
वंदना के पिता ने लिखित तहरीर में कहा कि मरने से पूर्व वंदना ने इन दोनो व्यक्तियों पर प्रताड़ित करने की बात कही थी। पिता का कहना है कि इससे पूर्व भी वंदना कई बार कॉलेज प्रशासन की प्रताड़ना के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से आवाज उठा चुकी थी जिससे वह कॉलेज प्रशासन के आँखों की किरकिरी बनी हुई थी। वंदना कॉलेज की होनहार गोल्ड मेडलिस्ट छात्रा थी जिसकी कॉलेज प्रशासन द्वारा हत्या कर दी गयी। सैफई मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर अब सवाल उठाने लगे हैं।
डॉ. वन्दना के दोषियों को कब दंड मिलेगा
डाक्टर वन्दना के साथी बताते हैं कि वह बहुत कम बोलती थी, सौम्य और शांत स्वभाव की थी। क्या ऊपर से शांत दिखने वाली वन्दना के मन में कोई तूफ़ान था? वह अपने डिपार्टमेंट, अपने बॉस और अपने कॉलेज की व्यवस्था से नाखुश थी। ऐसा उसकी पिछली शिकायतों से लगता है। अगर ऐसा था तो उसने लिखित शिकायत क्यों नहीं की? क्या उसका कॉलेज प्रशासन से भरोसा उठ गया था?
इन हालातों पर निदा फाज़ली की गजल की ये लाइन याद आ रही हैं…
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी…फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी..
लगभग ऐसा ही केस मैनपुरी की अनुष्का का था। वह नवोदय विद्यालय के हॉस्टल में रहती थी। मेधावी थी लेकिन हालातों ने उसे एकाकी बना दिया। इस तनाव को वह अधिक झेल न सकी। बेटी के तनाव की गंभीरता को उसके पेरेंट्स समझ न सके और सोलह साल की अनुष्का भी फंदे पर लटकी मिली।
अब नर्सिंग की स्टूडेंट कंचन लापता
अब खबर आई है कि सैफई मेडिकल कॉलेज की नर्सिंग की स्टूडेंट कंचन भी अचानक 24 सितम्बर की दोपहर से लापता है। कंचन शादीशुदा थी। पति या परिवार से किसी विवाद की बात सामने नहीं आई है। उसकी गुमशुदगी को भी सैफई मेडिकल कॉलेज की वंदना गुप्ता के केस से जोड़ कर देखा जारहा है । ऐसे में कॉलेज के वाइस् चांसलर डाक्टर राजकुमार से भी सवाल किये जाने चाहिए। मेडिकल कॉलेज की अव्यवस्था के लिए पहली जवाबदेही उनकी ही है।
परेंट्स को बच्चों के करीब आना होगा
बेटियों के सपने इसतरह टूटने से व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। साथ ही उनके परिवार की जवाबदेही कम नहीं। दोषियोंदंड मिलेगा लेकिन इससे क्या बेटियां वापस मिलेंगी। इसके लिए पहली जिम्मेदारी परिवार की ही है। इसका हल भी परिवार से ही निकलेगा। पहले परिवार बड़े होते थे लेकिन समस्याएं छोटी होती थीं। अब परिवार छोटे होते हैं लेकिन स्मस्याएं बड़ी। एक या दो बच्चों वाले परिवारों में पेरेंट्स को ही अपने बच्चों के दोस्त और कौंसिलर दोनों की भूमिका में आना होगा। पेरेंट्स को अपने बच्चों को बताना होगा कि समस्याओं से अकेले जूझने से बेहतर है उनको पेरेंट्स से साझ करें। इसके पहले कि बच्चे हमेशा के लिए बहुत दूर चले जाएँ, परेंट्स को उनके बहुत करीब आना होगा।
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