न्यूज़ डेस्क
राजस्थान के बाद यूपी में भी बसपा को करारा झटका लगा है। बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद रहे लालमणि प्रसाद हाथी से उतरकर साईकिल पर सवार हो गये है। जी हाँ उन्होंने बसपा का दामन छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है। लालमणि ने अपना इस्तीफा बसपा प्रमुख मायावती को सौंप दिया है। उधर बहुजन समाज पार्टी (bahujan samaj party) सुप्रीमो मायाती (Mayawati) को बड़ा झटका देते हुए बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पार्टी के कद्दावर नेता दयाराम पाल (Dayaram Pal) सपा शामिल हो गए। इसकी खुद जानकारी अखिलेश यादव ने प्रेस वार्ता में दी है। बसपा के बड़ा झटका इसलिए क्योंकि वह बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके है। मिठाई लाल भारती भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए है।
बता दें कि लालमणि और डायराम पाल काशीराम के सिपहसलारों में से रहे हैं । उन्होंने काशीराम के साथ मिलकर दलित समाज के लिए बसपा का गठन किया था। लालमणी ने अपना इस्तीफा सौपते हुए उन्होंने बसपा की मौजूदा नीतियों पर सवाल खड़े किये और कहा कि लगता है कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर और कांशीराम के मूवमेंट से पार्टी भटक गई है, जिसके चलते बहुजन समाज में आक्रोश पैदा हो रहा है।
कुछ ऐसी ही बाते दयाराम पाल ने भी कहीँ , सपा के दफ़तर में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में डायराम पाल ने पहले की बसपा को अब की बसपा से बहुत अलग बताया ।
सपा को बस्ती , आजमगढ़ में मिलेगे दिग्गज नेता
मिली जानकारी के अनुसार, लालमणि शुक्रवार को दोपहर में अखिलेश यादव की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी का दामन थाम सकते है। उनके सपा में आने से सपा का बस्ती में प्रभाव बढ़ सकता है क्योंकि बस्ती के सपा में दिग्गज नेता माने जाने वाले राजकिशोर सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इससे बस्ती में उनके पास कोई कद्दावर नेता नहीं था, जिसके चलते लालमणि ने अखिलेश यादव के साथ जाने का मन बनाया है।
इससे पहले लालमणि मौजूदा समय में सिद्धार्थनगर के जिला कोऑर्डिनेटर पर नियुक्त थे। लेकिन बसपा में राम प्रसाद चौधरी के राजनीतिक प्रभाव के चलते वे पार्टी में साइड लाइन चल रहे थे। इस वजह से इस बार उन्हें बसपा ने लोकसभा चुनाव में भी टिकट नहीं दिया था।
इसी तरह दयाराम पाल का प्रभुत्व आजमगढ़ मण्डल में है , वे गरेडिया समाज के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं ।
पहली बार गठबंधन में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे
लालमणि बसपा से शुरुआती दौर से जुड़े थे। पहली बार उन्होंने 1993 में सपा-बसपा गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में दोबारा बसपा से विधायक बने। 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें बस्ती से सांसद का टिकेट दिया और वो बसपा की उम्मीदों पर खरे उतरे और चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।
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लकिन उसके बाद बसपा ने उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दे दी और 2009 में उन्हें टिकट नहीं दिया। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में बस्ती से चुनावी किस्मत आजमाना चाहते थे, लेकिन इस बार भी मायावती ने उन्हें निराश किया।
दयाराम पाल बसपा कोटे से विधान परिषद में जा चुके हैं ।