न्यूज डेस्क
बुजुर्गों की देखभाल बड़ा मुद्दा बन गया है। अक्सर यह सुनने में आता है कि प्रापर्टी तो सभी भाई-बहन ले लेते हैं लेकिन देखभाल नहीं करते। अधिकांश घरों में बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल सिर्फ एक ही बेटा करता है लेकिन मां-बाप की प्रापर्टी सभी में बराबर बंटती हैं। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बुजुर्ग मां-बाप देखभाल करने वाले शख्स के अपनी सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बुजुर्ग देखभाल करने वाली संतान (केयरिंग चिल्ड्रन) को दूसरे भाई-बहनों की तुलना में संपत्ति का बड़ा हिस्सा दे सकती है। इसे बुजुर्ग अवस्था का फायदा उठाकर संपत्ति अपने नाम कराने का मामला नहीं माना जाएगा। यह केस 1970 के दशक से जुड़ा हुआ है।
दरअसल भाइयों के बीच में संपत्ति को लेकर चल रहे एक विवाद पर जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि बिना किसी महत्वपूर्ण साक्ष्य के इस निष्कर्ष (पैरंट्स की उम्र का फायदा उठाकर संपत्ति अपने नाम कराना) पर पहुंचना सही नहीं होगा। इससे गलत संदेश जा सकता है।
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उन्होंने कहा कि ऐसी संतान जो माता-पिता के प्रति अपेक्षाकृत कम दायित्वों का निर्वाह करती है, उनकी तुलना में ज्यादा जिम्मेदारी निभाने वाली संतान पर ऐसे फैसलों से विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
माता-पिता की देखभाल सिर्फ स्वार्थ कारण नहीं- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी संतान को संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा देने के आधार पर इसे ‘जिम्मेदारी निभाने के बदले’ के तौर पर नहीं देख सकते। कोर्ट ने कहा कि एक शख्स ने अपने माता-पिता की देखभाल महज संपत्ति में अधिक हिस्से के लिए की, ऐसा नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि प्रतिदिन बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के बदले संपत्ति में अधिक हिस्से के कारण कमतर करके नहीं देख सकते।
5 दशक से चल रहा था केस
पिछले पांच दशक से संपत्ति के बंटवारे को लेकर केस चल रहा था। पिता की मौत के एक साल बाद से ही भाइयों के बीच संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा था। पिता ने अपनी संपत्ति में से बड़ा हिस्सा एक बेटे को दे दिया। दूसरे भाई ने इसे पिता पर बुजुर्ग अवस्था में प्रभाव डालकर संपत्ति अपने नाम करवाने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज किया था। ट्रायल कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दावे को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को ही मान्य ठहराया।