न्यूज डेस्क
सफलता और असफलता एक दूसरे के पर्याय है। जिसने असफलता देखा है वहीं सफलता को सही मायने में महसूस कर पाता है। भले ही चंद्रयान 2 मिशन को झटका लगा है, भले ही लैंडर चांद पर पहुंचने में चूक गया हो, लेकिन जिस देश के पास के सिवन जैसे वैज्ञानिक है, उसके लिए इस मिशन की असफलता कोई मायने नहीं रखता। इसरो प्रमुख तक का सफर तय करने में सिवन ने चुनौतियों और उपलब्धियों दोनों को देखा है। एक गरीब किसान परिवार के घर में पैदा हुए के सिवन यदि आज रॉकेट मैन कहे जाते हैं तो जाहिर है यह सफर इतना आसान नहीं रहा है।
कल देर रात तक पूरे देश की निगाहे टीवी स्क्रीन से चिपकी हुई थी। हर कोई चंद्रयान-2 की सफलता को देखना चाह रहा था। उस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए सभी आतुर थे, लेकिन लैंडर विक्रम का कमांड सेंटर से संपर्क टूट गया, जब वह चांद की सतह से सिर्फ दो किलोमीटर दूर था। और इस मौके पर इसरो प्रमुख के सिवन की आंखे छलक आई।
ये बेहद भावुक करने वाला पल था जब इसरो चीफ के सिवन पीएम मोदी के गले लगकर रो रहे थे। मोदी ने सिवन की पीठ थपथपाई और हौसला बढ़ाया।
इसरो अध्यक्ष के सिवन ने कई चुनौतियां पार कर फर्श से अर्श का सफर तय किया है। के. सिवन का जीवन चुनौतियों और उपलब्धियों से भरा हुआ है।
के सिवन का जन्म तमिलनाडु के तटील जिले कन्याकुमारी के सराकल्लविलाई गांव में किसान कैलाशवडीवू के घर 14 अप्रैल, 1957 को हुआ। मां चेल्लम ने बड़े ही प्यार से नाम रखा सिवन। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में तमिल माध्यम से हुई।
सिवन पढ़ाई के साथ-साथ अपने अन्य भाई-बहनों के साथ खेतों में पिता के साथ काम करते थे। सिवन पढ़ाई में अच्छे थे, अत: पिता और परिवार के अन्य लोगों ने उन्हें प्रोत्साहित किया।
तमाम दुश्वारियों और आर्थिक विपन्नता के बावजूद सिवन ने नागेरकोयल के एसटी हिंदू कॉलेज से बीएससी (गणित) की पढ़ाई पूरी की, वह भी 100 प्रतिशत अंकों के साथ। अपने परिवार में वह स्नातक करने वाले पहले सदस्य रहे।
आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि इसके बाद उनके पिता ने अपने अन्य बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिलाने का फैसला किया। इसीलिए सिवन के अन्य भाई-बहन उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके।
इसके बाद उन्होंने 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आइआइएससी) से इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया। 2006 में उन्होंने आइआइटी बांबे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
इसरो से 1982 में जुड़े सिवन
के सिवन एमआइटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद 1982 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़ गए। उन्होंने पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) परियोजना में अपना योगदान देना शुरू किया।
इसरो ने उन्हें विभिन्न अभियानों में काम करने का मौका दिया। जीएसएलवी के परियोजना के अप्रैल 2011 में सिवन निदेशक बने। सिवन के योगदान को देखते हुए जुलाई 2014 में उन्हें इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर का निदेशक नियुक्तकिया गया। एक जून, 2015 को उन्हें विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक बना दिया गया। 15 जनवरी, 2018 को सिवन ने इसरो के मुखिया का पदभार संभाला।
इसलिए कहे जाते हैं रॉकेटमैन
इसरो में सिवन लगभग हर रॉकेट कार्यक्रम में काम किये। इसरो के अध्यक्ष का पदभार संभालने से पहले वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक थे, जो रॉकेट बनाता है। उन्हें साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूसेबल लांच व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान देने के कारण इसरो का रॉकेटमैन कहा जाता है।
सिवन ने 15 फरवरी, 2017 को भारत द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है।
15 जुलाई, 2019 को जब चंद्रयान-2 अपने मिशन के लिए उड़ान भरने ही वाला था कि कुछ घंटों पहले तकनीकी कारणों से इसे रोकना पड़ा। इसके बाद सिवन ने एक उच्चस्तरीय टीम बनाई, ताकि दिक्कत का पता लगाया जा सके और इसे 24 घंटे के अंदर ठीक कर दिया। सात दिनों बाद चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।
अपने एक साक्षात्कार में सिवन ने बताया था कि उनका बचपन बहुत अभावों से भरा रहा। उनके पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खेतों में काम करने के लिए मजदूरों का प्रबंध कर सकें। अत: परिवार के सभी लोगों खेती-किसानी में हाथ बंटाते थे।
उन्होंने कहा कि मेरा बचपन बिना जूतों और सैंडल के गुजरा है। जब मैं कॉलेज में था तो मैं खेतों में अपने पिता की मदद किया करता था। यही कारण था कि पिता ने दाखिला घर के पास वाले कॉलेज में कराया था। मैं कॉलेज तक धोती ही पहना करता था। जब मैं एमआइटी में गया तब पहली बार मैंने पैंट पहनी थी।
सिवन को खाली समय में तमिल क्लासिकल संगीत सुनना और बागवानी करना पसंद है। उनकी पसंदीदा फिल्म राजेश खन्ना अभिनीत आराधना (1969) है। उन्होंने एक बार पत्रकारों से कहा था कि जब मैं वीएसएससी का निदेशक था तब मैंने तिरुवनंतपुरम स्थित अपने घर के बगीचे में कई तरह के गुलाब उगाए थे।