अभिषेक श्रीवास्तव
बूढ़ा पिट गया। बूढ़ी पिट गयी। जवान पिट गया। गर्भवती पिट गयी। पुलिस पिट गयी। पत्रकार पिट गया। यहां तक कि मूक, बधिर और विकलांग भी पिट गया। चौतरफा सब पिट रहे हैं जबकि किसी को नहीं पता कि बच्चा किसका चोरी हुआ और किसने चुराया।
एक दृष्टान्त । शनि बाज़ार में एक आदमी भाग रहा था। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उसके पास बच्चा नहीं था। लोग मानकर चल रहे थे कि बच्चा ही चुराया होगा। और क्यों भागेगा भला? लोगों ने उसे हुमच दिया। डर के मारे उसने किसी की जेब से चुराये पैसे निकाल कर दे दिए। पता चला नॉर्मल चोर है। बच्चा वाला नहीं। लोगों ने इस तथ्य को छुपा लिया, ताकि डर बना रहे।
एक आदमी ने मकान किराये पर लिया। अकेला था। ट्रक से सामान उतारा तो पड़ोस से आवाज़ आयी- अकेला है तो तीन कमरे का मकान क्यों? बच्चे चूंकि पूरे देश में चोरी हो रहे थे और उस आदमी के दाढ़ी भी थी, तो वह भी संदिग्धों की जमात में शामिल हो गया।
पत्नी बताती हैं कि दिल्ली की पालम कालोनी में एक चोर आता था। पहले बल्ब फोड़ता, फिर सेंध लगाता। लोग उसे कभी पकड़ नहीं पाये क्यों कि वह देह पर कड़ुवा तेल मल कर आता था। कोई पकड़े तो सट से फिसल जाए। आजकल चोर तेल नहीं लगाते। महंगा हो गया है। इसीलिए पकड़े जा रहे हैं। लिंच हो रहे हैं।
बचपन में गली में एक दाढ़ी वाला पोटली लटका कर आता था। नाना हमें भीतर खींच लेते थे। डराते थे कि चुरा ले जाएगा। इस डर से हम खाना खा लेते थे, दूध पी लेते थे। दाढ़ी वाला शख्से शॉलवाला या कारपेट वाला एक कश्मीरी होता था। बच्चे तो उसके भी रहे होंगे। उसके बच्चों को कैसे डराया जाता होगा, अब मैं सोचता हूं।
उसके यहां बिना दाढ़ी वाला कोई सांवला आदमी डराने के काम आता होगा। मां-बाप कहते होंगे- भीतर चल, चुरा ले जाएगा, इंडियावाला आ रहा है। आज घाटी के छप्पन लाख लोग घर में इंडियावाले के डर से दुबके पड़े हैं।
हुलिया बड़ी चीज़ है । हुलिया आदमी को संदिग्ध बनाता है। सबका हुलिया एक रहे तो समाज चोरमुक्त हो जाए। चोरमुक्त होने का मतलब चोरीमुक्त होना नहीं होता। चोरी तो होगी। कलियुग है। रामराज्य में लोग घर में ताले नहीं लगाते थे। जब तक रामराज्य न आवे, तब तक चोरमुक्त होना चोरी के अध्येवसाय में रिफॉर्म कहलाएगा । रामराज्य मुकम्मल क्रांति होगी।
इसीलिए कहा जा रहा है कि फिट रहो। फिट इंडिया मूवमेंट। आंदोलन है बाकायदा। किसी को कमज़ोर रहने का हक़ नहीं है। सब बराबर फिट होंगे। कोदो का आटा खाएंगे, दंड पेलेंगे, सांस छोड़ेंगे और बिलंड देह के स्वामी होंगे। इसके दो फायदे हैं।
अव्वल तो चोरी के संदेह में कोई पकड़ा नहीं जाएगा क्यों कि पकड़ने वाला भी समान डीलडौल का होगा। तो डरेगा पकड़ने में, पीटने में। आम तौर से चोर उचक्कें छहरहे, दुबले पतले होते हैं। फिट रहेंगे तो किसी को शक नहीं होगा।
दूसरे, अगर पिट भी गये भीड़ के हाथों, तो लिंच होने से पहले फिट इंडिया जिम की सदस्यता का कार्ड दिखा देंगे। भाई, अपने ही आदमी हैं, जान मत लो।
धीरे-धीरे चोर की अफ़वाह गायब हो जाएगी। चोरी होगी, लेकिन चोर नहीं मिलेगा। यही अपनी परंपरा है। बोफोर्स, 2जी, कोयला, राफेल से लेकर पहलू खान तक। यहां कर्म की महत्ता है, कर्ता की नहीं। कर्ता विनम्र है, नेपथ्य को चुनता है। उसे लाइमलाइट का शौक नहीं। वह कर्ममार्गी है। प्रधानजी की तरह। सोलह घंटे कोदो का आटा खा के दंड पेलता है लेकिन शक्ति प्रदर्शन नहीं करता। दुशाला ओढ़े रखता है। उसके भीतर मेवा चाभता है।
फिट इंडिया का तीसरा सबसे बड़ा फायदा देशहित में है। कुछ लोग कह रहे हैं कि मंदी आ रही है। आने दीजिए, अपना क्या है। हम तो कोदो का आटा खाते हैं। दंड पेलते हैं। लंगोट बांधते हैं। चोरी करते हैं। पकड़ाते भी नहीं। चोरों पर मंदी का असर नहीं पड़ता। पूरा देश फिट हो जाए तो मंदी गयी तेल लेने।
इस राष्ट्रीय आंदोलन में बेचारे बच्चे अकेले पड़ जाएंगे। बच्चों को फिट कैसे किया जाए यह सवाल अभी अनुत्तरित है। या हो सकता है हमें दिख न रहा हो ।कहीं बच्चे फिट करने के लिए ही तो नहीं चुराये जा रहे?
बच्चे देश का भविष्य़ हैं। यह वाक्य देश बनने से पहले से चला आ रहा है। मां-बाप नाजुक होते हैं। बच्चा हलका सा मुड़ जाये तो उनकी जान निकल जाती है। नाजुक मां-बाप बच्चों को कमज़ोर बनाते हैं, फिट नहीं। इसलिए बच्चो को उनसे दूर करना होगा । गोदी से छीन लेना होगा।
यह नुस्खा किसी ऋषि-मुनि ने बहुत पहले दिया था कि बच्चे स्टेट की जिम्मेदारी हैं। पैदा हम करें, लेकिन राज्यससत्ता उन्हें पाले। कल्याणकारी राज्य ऐसा ही होना चाहिए। ”मुंबई एक्सप्रेस” का डड्डू इस बात को जानता था, इसीलिए वह अपने अवैध बाप एसीपी साहब से प्यार करता था।
जब शरीर फिट हो रहा है तो मन क्यों पीछे रहे? सकारात्मक सोचिये। बच्चो का गायब होना शुभ संकेत है। राज्य उनकी जिम्मेदारी ले रहा है। उन्हें कल का योद्धा बना रहा है। जिस तरह चोर अदृश्य है उसी तरह राज्य भी अदृश्य है। मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस। मने काम होगा, करने वाला नहीं दिखेगा। वही, गीता वाली बात।
आउटलुक में कुछ साल पहले नेहा दीक्षित की एक कवरस्टोरी छपी थी जिसका कवरलाइन था, ”ऑपरेशन बेबीलिफ्ट”। इस पर राष्ट्रप्रेमियों ने उनके खिलाफ एफआइआर करवा दी थी, कि आखिर जुर्रत कैसे पड़ी बच्चा चोरों के नाम उजागर करने की? धर्म का काम बहीखाते में नहीं जाता, यह मामूली सी सनातन बात रिपोर्टर को नहीं पता थी। नतीजा, आज तक ट्रोल हो रही हैं।
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अमेरिकियों ने इस रिपोर्टर की अहमियत समझी और प्रेस स्वंतंत्रता पुरस्कार दे दिया। क्यों भला? वियतनाम जंग के आखिरी दौर में अमेरिका ने करीब साढ़े तीन हज़ार बच्चों को उठा लिया था ”ऑपरेशन बेबीलिफ्ट” के नाम से । ये बच्चे बाद में दुनिया के अलग-अलग देशों में पले-बढ़े और कालांतर में अमेरिका का राज दुनिया पर कायम हुआ।
रामराज्य अकेले अपने ही यहां लाएंगे तो स्वार्थी कहलाएंगे। पूरी दुनिया को एक हुलिये में रंगना है। वसुधैव कुटुंबकम । इसलिए ज़रूरी है कि हर जगह अपनी संततियां पहुंचें। धर्म की पताका फहरावें। तुलसी गब्बार्ड का नाम सुने हैं? इतनी मेहनत कर के रामराजियों ने उन्हे पाला पोसा है और आज वे अमेरिका की राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं। अमेरिका के आंगन में तुलसी रोपाएगी अब। अहा अहा…
कहने का मतलब बलिदान तो देना ही होगा। फिट रहना ही होगा। सकारात्मक सोचना ही होगा। रामराज्य करीब है, संतों ।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और व्यंगकार हैं )
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