इस भंगुर जगत में हर प्राणी खुद को अहिंसक मानता है। इसीलिए अपने बिरादर से कोई, कभी डरता नहीं। आदमी, आदमी से नहीं डरता। कुत्ता, कुत्ते से नहीं डरता। हां, आदमी कुत्ते से डर सकता है। कुत्ता भी आदमी से डर सकता है। आदमी के भीतर ही देखिए।हिंदू, मुसलमान से डर सकता है। मुसलमान, हिंदू से। आपस में डर नहीं होता। इसे सामुदायिक भावना कहते हैं।
दूसरे समुदाय के प्रति अभय भाव को भाईचारा कहा जाता है। यह वास्तव में होता नहीं। दिखाने की चीज़ है। भाई बनाने या दिखाने के लिए चारा डालना होता है। बिना चारे के पालतू गाय भी लात मारने लगती है। पालतू कुत्ते को खाना न दिया तो मालिक को ही काट खाएगा। कुत्ता दूसरे का भी हुआ तो बिस्कुट दिखाते ही पूंछ हिलाएगा।
कॉरपोरेट वाले कुत्तों का यह गुण बखूबी समझते हैं। इसीलिए हर कॉरपोरेट नौकर के यहां एक कुत्ता ज़रूर पाया जाता है। बात कोई पंद्रह-बीस साल पहले की है। दिल्ली के नवभारत टाइम्स में एक नया-नया ब्रांड मैनेजर आया। उसकी सजधज और तनख्वाह उसके सर्वगुणसंपन्न होने का सबूत थी। उसने चौथे माले पर मीटिंग बुलायी। आइआइएम से लाया अपना मौलिक आइडिया शेयर किया।
उसने कहा कि जो संपादकीय कर्मी जहां कहीं रहता है, उस इलाके में और अपने अपार्टमेंट में नवभारत टाइम्स की प्रति लेकर सुबह-सुबह लोगों के दरवाजे जाए। इससे अख़बार की ब्रांड वैल्यू बढ़ेगी। संपादक को सांप सूंघ गया।सहायक संपादक ने दाढ़ी खुजाते हुए, सकुचाते हुए चुटकी ली-
”साहब, मेरी तो शक्ल बहुत खराब है और ऊपर से दाढ़ी भी है। मान लें कि सुबह मैंने घंटी बजायी, उधर से कोई खूबसूरत महिला अलसाये हुए निकली और मेरा चेहरा देखकर उसने मेरे ऊपर अपना कुत्ता छोड़ दिया तब क्या होगा?”
कॉरपोरेट लीडर हर सवाल को गंभीर मानते हैं। जवाब देना उनका दैवीय कर्तव्य होता है। सवाल वैसे भी वाजिब था। मैनेजर ने कहा- ”आप एक पैकेट कुकीज़ साथ में लेकर जाएं। कोई जैसे ही कुत्ता छोड़े आप पर, आप कुकीज़ सामने कर दें।”
इसके बाद क्या हुआ, वह इतिहास नहीं है लेकिन अखबार में ज्वाइन करने के बाद यह घटना जब मुझे पता चली, तब तक मैं कुकीज़ का मतलब नहीं जानता था। बाद में पता चला कि कुकुर के बिस्कुट को कुकीज़ कहते हैं। बहुत लोग अब भी कुत्तों को रिझाने का यह सूत्र नहीं जानते। अभी हाल में जब यह पता चला तो खुद पर गर्व महसूस हुआ।
हुआ यों कि एक युवा पत्रकार पिछले महीने जानवरों की संस्था पेटा के दिल्ली स्थित दफ्तर में इंटरव्यू देने गया। भीतर घुसते ही गली के कुत्तों के झुण्ड से उसका सामना हुआ। यह उसकी पहली परीक्षा थी। उसने भरसक कोशिश की उन्हें दुलारने की, लेकिन सीसीटीवी सब देख लेता है। उसकी नौकरी नहीं लगी।
लब्बोलुआब यह है कि कुत्ता गली का हो तब भी चारा देने पर नहीं काटता। मनुष्य अपना हो तब भी चारा न मिलने पर काट खा सकता है। कुत्तों में आपस में काटने-खाने के मामले अतिदुर्लभ हैं। मनुष्य इस मामले में कमजोर है। जिजीविषा बड़ी चीज़ है, जो कभी-कभार उसे अपनों को काट खाने पर मजबूर करती है।
रूसी मनोवैज्ञानिक पाव्लोव ने एक अध्ययन किया था। एक चिम्पांजी को उसके बच्चे के साथ एक ग्लास चैम्बर में बंद कर दिया और भीतर पानी छोड़ने लगे। पानी चिम्पांजी की छाती तक पहुंचा तो उसने बच्चे को सिर पर उठा लिया। नाक तक पानी पहुंचा तो उसने बच्चे को हाथ में लेकर हाथ ऊपर कर दिया।
थोड़ी देर में पानी सिर तक आ गया। पंजे के बल खड़ा होना भी काम नहीं आया। एक बिंदु पर चिम्पांजी को लगा कि उसका दम घुट जाएगा। उसने बच्चे को नीचे पटका और उसके ऊपर खड़ा हो गया।
सोमालिया के अकाल में ऐसे मामले सामने आए हैं। सोलहवी और सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में लोगों ने भयंकर अकाल की स्थितियों में अपने परिजनों का मांसभक्षण किया। 1933 का उक्रेन का अकाल तो भयावह रहा है इस मामले में।
जब खाने को सामने मनुष्य नहीं मिला तो लोगों ने अपने गुदाज़ अंगों का मांस काटकर खाया। मनुष्यों में ऐसा दुर्लभ तो है, पर जीवन की अतिवादी स्थितियां भी उतनी ही दुर्लभ हैं। सामान्य दिनों में कोई किसी का कान नहीं काट खाता, जब तक कि वह माइक टायसन न हो।
अंग्रेज़ी में एक जुमला चलता है ”डॉग ईट्स डॉग”। यह कुत्तों को बदनाम करने के लिए बनाया गया है। अपनी प्रजाति के मांसभक्षण के मामले में मनुष्य कुत्तों से बदतर है। कुत्तों में यह परिस्थितिजन्य नहीं होता, कुछ दूसरे जैविक कारण होते हैं। मनुष्य परिस्थितियों का दास है।
हालात अनुकूल हैं तो भाईचारा। प्रतिकूल हुए तो भाई को ही अपना चारा बना लेता है। इसीलिए लोग कुत्ता पालते हैं। उससे खतरा सबसे कम होता है। वैज्ञानिक शोधों में भी बिल्ली पालने से बेहतर कुत्ता पालना बताया गया है।
हिंदू धार्मिक दृष्टि से भी कुत्ता पालना शुभ है। कुत्ता कालभैरव की सवारी है। उसे खिलाते-पिलाते रहिये। बदले में आपकी रक्षा करेगा। वेदों में ऐसा कहा गया है। कुत्ता केतु को काटता है। राहु के लिए कुछ और अनुष्ठान कर सकते हैं। केतु शमन के लिए कुत्ता पालिये। धर्मराज युधिष्ठिर भी कुत्ता लेकर ऊपर गये थे।
अमेरिका वाले अंतरिक्ष में गये तो कुतिया लेकर गये। आखिर विश्वगुरु वाली चेतना तो सब में है, चाहे भारतीय हो या अमरीकी। काल से बचने का उपाय है कुत्ता और उसकी अहर्निश सेवा। मनुष्य अपनी औकात जानता है।अपने नाम पर साल में एक भी दिन नहीं रखा उसने लेकिन कुत्तों के नाम पर अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाता है।
महाकाल से रक्षा करने के अलावा कुत्ता एक सुविधा भी है। आप उसे गाहे-बगाहे लतिया सकते हैं। गाय को लतिया कर देखिए, तुरंत दो-चार भेडि़ये उसकी रक्षा में आपकी जान ले लेंगे। दूसरे, गाय काफी बड़ी है।
ड्राइंग रूम के सोफ़े पर नहीं लेट सकती। आपके साथ सो नहीं सकती। मौके पर गोबर कर देगी। कुत्ते को प्रेशर बनेगा तो वह भाग कर बाहर जाएगा। इंटेलिजेंट जो है। आपके कहे पर नाचेगा, कूदेगा, गेंद ले आएगा, काटेगा, दुलराएगा। वास्तव में कुत्ता स्वभाव से गऊ है।
अंतरराष्ट्रीय कुत्ता दिवस पर मेरी कामना है कि आसन्न हिंदू राष्ट्र के निर्माता हिंदू उत्क्रांति के बाद कुत्ते को राष्ट्रीय पशु बनाने पर विचार करें। शेर वैसे ही लुप्त हो रहे हैं। गायों को बचाना पड़ रहा है।
इस मामले में कुत्ता आत्मनिर्भर है और जीवनरक्षक भी। वह जीवन, विवेक और निरंतरता का सच्चा प्रतीक है। सतयुग से लेकर कलियुग तक लगातार अपने साथ रहा है। वही हमें सतयुग में ले जाएगा। गाय का क्या है? वह मां है। काम खत्म हुआ तो तीर्थयात्रा पर भेज देंगे। वह उसी में संतुष्ट रहेगी। कुत्ता गुरु है। वह राह दिखाएगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं )
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