फैजान मुसन्ना
ईद के मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का नाजी और हिटलर को याद करना, अपने विरोधियों के खिलाफ क्रिकेट की तरह कोई आक्रामक रणनीति है या कुछ और?
खेल और राजनीति दोनों में, इमरान खान की एक ही रणनीति देखी जाती है , दुश्मन पर इतने हमले करो और ऐसे करो कि उसे एक मिनट के लिए भी आराम हासिल न हो । अब वही रणनीति इमरान खान विदेशी मामलों में भी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं ।
बीते दिनों में उन्होंने अपने देश में विपक्ष के लिए भी ऐसा ही किया और अब वे भारत के लिए भी यह रणनीति इस्तेमाल करना चाहते हैं ।
इमरान खान की इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि न तो वह वक्त देखते हैं न ही अवसर और न ही जगह, बस विपक्ष की आलोचना करना शुरू कर देते है। अमेरिका में पाकिस्तानियों की सभा को संबोधित करते हुए भी इमरान ने यही किया था ।
इमरान खान पाकिस्तान के कई पूर्व राजनेताओं सहित विपक्ष के लिए कई उपनाम प्रयोग करते हैं । एक पूर्व प्रधान मंत्री और पूर्व राष्ट्रपति के लिए चोर, एक डकैत, अली बाबा, चालीस चोर और भ्रष्टाचारी आदि शब्दों का प्रयोग वे भी करते हैं और उनके मंत्री और सलाहकारों को हर दिन एक ही भाषा का उपयोग करते हुए देखा जाता है ।
इस बार भी ईद के मौके पर उन्होंने पाकिस्तानी जनता को संबोधित करते हुए कहा – मुझे डर है कि आरएसएस हिंदू विचारधारा की विचारधारा, नाजी आर्यों के रूप में महज जम्मू-कश्मीर में नहीं रुकेगी बल्कि इसके बजाय, यह भारत में मुसलमानों के दमन का नेतृत्व करेगी ।
ईद के दिन उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर से तीन ट्वीट्स में कठोर भाषा का इस्तेमाल किया । इस बार उसके तीर का निशाना आंतरिक विपक्ष नहीं बल्कि भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी थी ।
उन्होंने कहा कि आरएसएस भारतीय जनता पार्टी की वैचारिक जड़ है और आरएसएस की तुलना जर्मन तानाशाह हिटलर के तरीकों से की।
इमरान ने कहा कि 20 वीं सदी में हिटलर के उदय के साथ पूर्वी और मध्य योरप नाजी जर्मनी के भौगोलिक विस्तार का आधार बन गया था । भाजपा के प्रयास केवल भारतीय कश्मीर तक सीमित नहीं रहेंगे , अगला लक्ष्य भारतीय मुसलमान होगा और फिर होगा पाकिस्तान।
इमरान खान ने कहा कि भारत के पाकिस्तान के बनने से कट्टर हिंदू कभी खुश नहीं थे और वे इसे समाप्त करना चाहते थे । इस संबंध में, उन्होंने 1971 में बांग्लादेश को स्थापित करने में भारत की भूमिका का हवाला दिया ।
हालांकि 1999 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने अपनी मिनार ए पाकिस्तान की यात्रा के समय कहा था कि पाकिस्तान एक वास्तविकता है, लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं ।
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5 अगस्त 2019 को कश्मीर पर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार के निर्णय एक बार फिर से पाकिस्तान सरकार की चिंताओं को जागा दिया है । इमरान खान भी यही भाव दिखा रहे हैं ।
भारतीय मुसलमानों की चिंता क्यों
जहां तक भारत में मुसलमानों की बात है, पाकिस्तान का सरकारी मीडिया और कुछ हद तक निजी मीडिया ने भी इसे “गरीब आबादी” के तौर पर दिखाया है। गाय काटने का मुद्दा, जहाँ भी आता है, पाकिस्तानी मीडिया उसे अतिशयोक्ति के रूप में दिखाता है और कुछ विश्लेषकों ने उन्हें पाकिस्तानी की रक्षा की पहली पंक्ति में रखने और मुस्लिम बनाने की पेशकश भी कर दी ।
पाकिस्तान के पूर्व राजदूत अकील नदीम ने अपने हाल ही में प्रकाशित एक लेख में बदलते समय में पाकिस्तान के विकल्प के बारे में लिखते हैं कि कश्मीर के ताज़ा हालात, मुसलमानों को एकजुट करने का एक तरीका हो सकता है और भारतीय कदम के खिलाफ खड़े होने के लिए पाकिस्तान सरकार सभी रास्तों पर ध्यान से विचार कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर भारत सरकार पाकिस्तान की सरकार के साथ कभी मित्रवत नहीं रह पाई है ।
आम तौर पर पाकिस्तान सरकार ने हमेशा कांग्रेस को अधिक संतुलित माना है, लेकिन भारतीय आम चुनाव से पहले, वह बयान इमरान खान को बीजेपी के पक्ष में एक इशारा के रूप में देखा गया कि अगर मोदी सरकार फिर सत्ता मे आती है तो यह कश्मीर के मुद्दे को हल करने में सक्षम होगी ।
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फिलहाल पाकिस्तानी अधिकारियों के लिए बीजेपी “असली दुश्मन” साबित करने का यह एक दुर्लभ अवसर है और साथ ही द्वीराष्ट्र के उस सिद्धांत को भी जिसके अनुसार हिंदू और मुस्लिम अलग-अलग समूह हैं।
भारतीय जनता पार्टी सरकार की विदेश और सुरक्षा नीति भी इमरान खान के आक्रामक रवैये के खिलाफ आक्रामक है और अब सवाल यह है कि क्या दो आक्रामक खिलाड़ी इस खतरे को शांति और प्रगति के मौके के रूप में देखते हैं?
(लेखक पत्रकार हैं और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार है )