संजय भटनागर
उत्तर प्रदेश में 2017 में जब से योगी सरकार बनी है, कुछ मंत्री ऐसे रहे हैं जिनकी कार्यप्रणाली और कार्यक्षमता पर ढके दबे तरीके से सवाल उठते रहे हैं। मीडिया में भी जब तब इन मंत्रियों को लेकर तरह तरह की अटकले लगती रही हैं।
इन अटकलों को ठोस स्वर मिला जब केंद्र में मोदी सरकार का बड़े बहुमत से बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के माध्यम से यह सन्देश दिया कि मंत्रियों की छवि और कार्यकुशलता पार्टी के रडार पर रहेगी।
उत्तर प्रदेश में प्रतीक्षित मंत्रिपरिषद फेरबदल के पहले पार्टी की तरफ से कुछ ऐसे संकेत दिए गए जिससे सख्त तेवर पता चलते हैं। वैसे तो मंत्रिमंडल में मंत्रियों के आपसी संबंधों को लेकर विभिन्न रिपोर्ट आती रहती हैं लेकिन प्रदेश में दो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और डॉ दिनेश शर्मा को लेकर हमेशा ही सुगबुगाहट रही।
इन दोनों प्रमुख नेताओं और मंत्रियों पर केंद्र के हाल के निर्णयों से यही लगता है कि इनकी डगर इतनी आसान है नहीं जितनी लगती थी। जब दोनों इस पद पर आसीन हुए थे तब भी लोग चौंके थे क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली शायद ही मोदी और शाह की शैली से मेल कहती हो।
अब हालांकि लगता है , पार्टी ने भी यह बात मान ली है और संकेत दिए हैं कि कुछ तो करना ही पड़ेगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में शासन और प्रशासन के बारे में अभी भी जनता की राय मिश्रित है बावजूद लोक सभा में 80 में से 62 सीट पाने के ।
केशव मौर्य जब उप मुख्यमंत्री बनाये गए थे तब उनको भाजपा का उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग का चेहरा माना गया था और उन्हें सार्वजानिक निर्माण विभाग (पी.डब्लू.डी) जैसा बड़ा और मलाईदार विभाग भी दिया गया। बेहद व्यवहारकुशल मौर्य ने लोकप्रियता तो हासिल की लेकिन औसत प्रदर्शन और विभागीय भ्रष्टाचार की चर्चाओं के बीच अनेक बार पार्टी को मुश्किलों में डाला।
कद्दावर पिछड़े नेता होने के कारण केशव मौर्य को पार्टी कुछ बोल भी नहीं पाती थी। हाल ही में पार्टी ने एक और पिछड़े वर्ग के नेता स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाकर केशव मौर्य को एक सन्देश दिया। उसके बाद भाजपा के सर्वेसर्वा अमित शाह ने लखनऊ यात्रा पर मौर्य को कोई खास तवज्जोह नहीं दी और अपने सम्बोधन में उनका नाम भी गलत पुकारा जिसके लिए पार्टी में काफी उपहास भी हुआ ।
कहने का तात्पर्य यह है कि पार्टी ने मौर्य को जता दिया है कि अब अपने आप को पिछड़े वर्ग का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं समझें और उनका मानक भी वही है -अच्छी छवि और बेहतरीन काम।
यही नहीं भाजपा ने केशव मौर्या की वरिष्ठता नज़रअंदाज़ करते हुए उन्हें आगामी महाराष्ट्र विधान सभा के लिए सह-प्रभारी बनाया जबकि भूपेंद्र यादव प्रभारी हैं। पार्टी के इस कदम को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है और मंत्रिमंडल के अगले फेरबदल में उनको लेकर विभिन्न चर्चाओं का बाजार फिर गरम हो गया है।
कमोबेश प्रदर्शन के आधार पर दूसरे उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा के निष्प्रभावी प्रशासन को लेकर काफी चर्चाएं रहती हैं। वह पहले लखनऊ के मेयर थे और उनके बारे में कहा जाता था कि वह व्यक्ति तो अच्छे हैं लेकिन प्रशासक बेहद ख़राब। यही स्थिति सरकार में मंत्री बनने के बाद भी रही जब वह उच्च शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में कोई प्रभावी पहल नहीं कर पाए और आम जनता में भी उनकी छवि एक ढीले वाले मंत्री के रूप में ही रही।
लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी कहे जाने वाले दिनेश शर्मा के बारे में भी केंद्र ने एक बड़ा सन्देश दिया और हाल ही में उनकी सुरक्षा में बड़ी कटौती कर दी ।
भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि मंत्रियों के प्रदर्शन को लेकर पार्टी लीडरशिप बेहद सजग है और यह सन्देश स्पष्ट है कि भले ही उप मुख्यमंत्री हो , प्रदर्शन किसी भी नेता के अस्तित्व का एकमात्र आधार होगा। जनता से जुड़े सभी विभागों पर पार्टी की कड़ी नज़र है और इसमें कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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योगी मंत्रिपरिषद् के अधिकाँश सदस्य भी दोनों उप मुख्यमंत्रियों को लेकर खासे नाराज़ हैं। उनका कहना है कि इन दोनों को मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के बीच एक पुल का कार्य करना चाहिए जिसमे दोनों बुरी तरह असफल हैं।
मंत्रियों में नौकरशाहों के अपमानजनक रवैये को लेकर भी काफी क्षोभ है। उनका कहना है कि देखा गया है कि उत्तर प्रदेश में नौकरशाह बेहद मज़बूत हैं और वह विभागीय मंत्रियों की न सुनकर मनमानी करते हैं। अनेक मंत्रियों ने दोनों उप मुख्यमंत्रियों तक यह बात पहुंचाई लेकिन उन्होंने उसे अगले स्तर पर ले जाने की ज़रुरत नहीं समझी।
वैसे देखा जाये तो पार्टी दोनों वरिष्ठ नेताओं का इसके अलावा कुछ और नहीं भी करती है तो इतना पर्याप्त है क्योंकि राजनीती सदैव ही ‘परसेप्शन’ से चलती है और यह सन्देश भी काम तगड़ा नहीं है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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